महाकवि कालिदास की प्रमुख कृति ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम’ में एक प्रेरक प्रसंग है। माता गौतमी आधीरात में दुष्यंत के महल के बाहर पहुंचती हैं और सैनिक से पूछती हैं-‘या मैं इस समय राजा दुष्यंत से मिल सकती हूं?’ इस पर सैनिक कहता है-‘अवश्य माता, एक नागरिक होने के नाते ये आपका मौलिक अधिकार है। आप घंटा बजाइए, सोता हुआ दुष्यंत महल से बाहर जरूर आएगा।’ एक लोकतांत्रिक भारत वो था और एक लोकतांत्रिक भारत में हम जी रहे हैं जहां ‘राजा’ से मिलना प्रजा के लिए असंभव है। ‘राजा’ से प्रश्न करना अपराध की श्रेणी में आता है। ‘राजा’ की नींद में खलल डालना राष्ट्रद्रोह माना जाता है। ‘राजा’ अपने हिसाब से प्रजा का भाग्य लिखने को स्वतंत्र है और प्रजा ‘राजा’ द्वारा पत्थर पर खींची गई लकीर का अनुसरण करने को मजबूर। ये कैसा लोकतंत्र है? विरोध के स्वरों को दबाने के लिए सत्ता भांति-भांति के प्रयोग करती है। विरोध को लोकतंत्र के लिए आवश्यक कहा गया है, लेकिन जहां तंत्र, लोक के अधीन न होकर लोक ही तंत्र के शिकंजे में हो तो या कहा जा सकता है? एथेंस के दार्शनिक प्लेटो ने अब से शताब्दियों वर्ष पूर्व कहा था कि लोकतंत्र से ही तानाशाही जन्म लेती है। ज्तो या हम लोकतंत्र का वही स्वरूप देख रहे हैं?
प्लेटो ने एक और महत्वपूर्ण बात कही है-‘उचित विवेकपूर्ण और बुद्धिमत्तापूर्ण फैसले करें, मूल्यों का राज हो न कि भावनाओं का।’ज्लेकिन आज राजनीति में लोकतांत्रिक मूल्य ताक पर उठाकर रख दिये जाते हैं और विशेष विचारधारा की धरती से उपजी भावनाओं के वशीभूत लोक बोले तो जनता के साथ व्यवहार किया जाता है। लोगों को भेड़ों की तरह हांकने का काम किया जाता है। जबकि यह आचरण लोकतंत्र की मर्यादा के विपरीत ही माना जाएगा। पिछले दिनों सरकार के कुछ कार्य आलोचना के शिकार हुए। सरकार आलोचनाओं के कटघरे में खड़ी दिखाई दी। एक ओर जहां रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क के एडिटर-इन-चीफ अर्नब गोस्वामी को कथित व्लॉट्सएप चैट लीक मामले में सरकार पूरी राहत देती नजर आई है, वहीं दूसरी ओर लोगों पर अप्रमाणिक तथ्यों के आधार पर शिकंजा कसती दिखाई दी। वायरल चैट के स्क्रीन शॉट्स के आधार पर खूब सवाल उठाये गये कि पुलवामा हमले और बालाकोट पर भारत की सर्जिकल स्ट्राइक की जानकारी अर्नब को पहले से कैसे थी? इन प्रश्नों के उत्तर अभी तक नहीं मिले हैं जबकि यदि इस मामले में लेशमात्र भी सच्चाई है तो यह निश्चित रूप से राष्ट्रद्रोह का मामला बनता है, योंकि कथित रूप से अर्नब ने अपने चैनल की टीआरपी बढ़ाने के लिए इन सूचनाओं का इस्तेमाल किया।
लेकिन अर्नब स्वतंत्र है, उस पर कोई प्रत्यक्ष कार्रवाई होती दिखाई नहीं दी है। दूसरा मामला पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि का है, जिसे किसान आंदोलन को लेकर चर्चा में आये टूलकिट मामले में पुलिस ने जेल के सींखचों के पीछे डाल दिया। अदालत ने दिशा रवि को जमानत दे दी। लेकिन दिशा रवि को जमानत मिलना उतनी बड़ी खबर नहीं है, जितनी बड़ी खबर जमानत देते हुए माननीय अदालत द्वारा की गई तल्ख टिप्पणियां हैं। कोर्ट ने कहा-‘सरकार के जमी गुरुर पर मरहम के लिए देशद्रोह के केस नहीं थोपे जा सकते।’ यह टिप्पणी बहुत बड़ी बात कहती है, बहुत बड़ा संदेश और संकेत देती है। माननीय न्यायधीश ने ऋ ग्वेद की ऋचा-‘आ नोभद- कतवो यनतु विशवतोह्यदुष्धासो अपरीतास उदिभ्द’ का उल्लेख करते हुए कहा-‘हमारे सांस्कृतिक लोकाचारों को अलग-अलग राय के लिए हमारे सम्मान को व्यक्त करते हैं।
‘वैसे श्लोक का शाब्दिक अर्थ है-‘हमारे पास चारों ओर से ऐसे कल्याणकारी विचार आते रहें जो किसी से न दबें, उन्हें कहीं से बाधित न किया जा सके और अज्ञात विषयों को प्रकट करने वाले हों।’ माननीय न्यायधीश ने कहा-‘एक लोकतांत्रिक राष्ट्र में नागरिक सरकार के विवेक के रखवाले होते हैं। इन्हें केवल इसलिए सलाखों के पीछे नहीं डाला जा सकता क्योंकि उन्होंने राज्य की नीतियों पर असहमति जताई। नागरिक को मौलिक अधिकार प्रदान करने और संचार हासिल करने के सर्वोत्तम साधनों का मौलिक अधिकार है। संचार पर कोई भौगोलिक बाधाएं नहीं हैं। बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी में वैश्विक दर्शकों की तलाश का अधिकार शामिल है।’ टूलकिट पर आये इस फैसले से सरकार की, पुलिस की किरकिरी हुई लेकिन कोई भी यह समझने की भूल न करे कि कुछ भी करने-कहने को स्वतंत्र हैं। ‘कुल मिलाकर माता गौतमी’ सोच समझकर घंटा बजाये।
राकेश शर्मा
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)