हाल ही में देश को दो तूफान का सामना करना पड़ा। तोते और यास नामके तूफानों ने देश के दक्षिण और पश्चिम क्षेत्र में जमकर कहर बरपाया। दोनों बार राहत कार्य के लिए सेना लगानी पड़ी। आजादी के 74 साल बाद भी हम स्थानीय स्तर पर आपदा प्रबंधन के लिए स्वतंत्र व्यवस्था विकसित नहीं कर पाए। जब-तब जरूरत पड़ती है, सेना को बुलावा भेज दिया जाता है। ऐसा आपात काल में तो ठीक है। रोज-रोज नहीं। बार-बार आने वाली अपदाओं से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने 2005 में आपदा प्रबधंन प्राधिकरण बनाया। प्रदेशों में इसकी शाखांए विकसित की गईं। इसका उद्देश्य आपदा प्रबंध के लिए अलग से पूरा तंत्र बनाना था। कुछ प्रदेशों में जनपद में इसके कार्यालय खोलकर वालियंटर बनाने का काम किया गया। योजना था कि गांव? गांव तक ऐसे प्रशिक्षित कार्यकर्ता तैयार करना जो आपदा आते ही अपने आप राहत कार्य में लग जांए।केंद्र सरकार का सोच था कि आपदा बाढ़ भूकंप और महामारी को आने से नहीं रोका जा सकता।
आपदा आने के बाद के लिए गांव? गांव तक प्रशिक्षित तंत्र विकसित कर लिया जाए। वह तंत्र आपदा आते ही राहत कार्य के लिए खुद सक्रिय हो जाए उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में ये तंत्र विकसित करने पर काम हुआ। वालियंटर भी बनाए गए। ब्लाक लेबिल तक कुछ कार्य किया भी गया। इस दौरान ऐसे भवन बनाने की तकनीकि विकसित की जाने लगी जो आपदा में प्रभावित न हों। सोच ये थी कि ऐसे भवन बनाने से आपदा में मकान आदि नही गिरेंगे। इससे मौत कम होंगी। भवन बनाने वाले कारीगरों तक को प्रशिक्षण दिया गया। बाद में ये कार्य बट्टे खाते में डाल दिया गया। योजना बंद कर दी गई। योजना के बदं होने से निराशा होकर वालिंटियर अपने घर बैठ गए। जरूरत इस बात की कि ये कार्य अनवरत चलता रहता। स्काउट- एनसीसी-एनएसएस की तरह छात्रों को भी इसके लिए प्रशिक्षित करने का कार्य होना चाहिए। इसके लिए अलग से गांव-गांव तक कार्य किया जाए। देश के प्रत्येक गांव में प्रधान और वार्ड सदस्य हैं। विकास समिति हैं। ग्राम प्रधान के अधीन आपदा प्रबंधन यूनिट भी सक्रिय होनी चाहिए। ऐसे स्थानों समुद्र तक के इलाकों में तो इनकी हर समय जरूरत है। आज आवश्यता पडऩे पर पुलिस, अर्ध सैनिक बल को लगा दिया जाता है।
गंभीर हालात को देखते हुए सेना बुला ली जाती है। युद्ध जैसे हालात न होने पर इनका प्रयोग किया जाना चाहिए। किंतु यह भी ध्यान रखना चाहिए कि सेना यदि युद्ध में व्यस्त हो तब या हो। इसके लिए हमारी अगल से पूरी तैयारी होनी चाहिए। लद्दाख सीमा पर चीन के आचरण को देखते हुए हमें सेना वहां लगानी पड़ी है। एक साल से वहां दोनों देशो सेनाएं आमने-सामने हैं। भूटान में डोकलाम विवाद और चीन के विस्तारवादी इरादों को देख भूटान सीमा पर भी हमारी सेना सक्रिय है। पाकिस्तान का रवैया कभी हमसे मैत्री पूर्ण नहीं रहा। चीन के उकसावे में हमारी मदद पर सदा पला-बढ़ा नेपाल भी अब आंख दिखा रहा है। ऐसे में सेना का दूसरे कार्य में प्रयोग उचित नहीं। शांति काल में ही सेना का प्रयोग होना चाहिए। देश में आने वाली आपदा के लिए,आपदा में राहत कार्य के लिए पूरा तंत्र अलग होना चाहिए। स्कूल और कालेज स्तर से ही इसके लिए वालिंयटर तैयार किए जाने चाहिए। ऐसी व्यवस्था बने कि देश को आपदा में सेना के प्रयोग की जरूरत बहुत ही गंभीर हालत में हो।
अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)