अब शुक्रवार से 16 अटूबर तक अधिकमास रहेगा। इसे पुरुषोाम मास और मलमास भी कहते हैं। भगवान विष्णु ने इस माह को अपना श्रेष्ठ नाम पुरुषोाम दिया है। इसी वजह से अधिकमास में विष्णुजी की पूजा करने और उनके दस अवतारों की कथा सुनने की परंपरा है। विष्णुजी के अवतारों की सीख यह है कि बुराई का अंत जरूर होता है। हमें हर स्थिति में मन शांत रखना चाहिए और अधर्म से बचना चाहिए। हमेशा सकारात्मक रहें। तभी जीवन में सुख-शांति मिल सकती है। हर बार अधिकमास में जगह-जगह भागवत कथाओं का आयोजन होता है, लेकिन इस साल कोरोना महामारी की वजह से इस तरह के धार्मिक आयोजन नहीं हो पाएंगे। ऐसी स्थिति में अपने घर पर ही ग्रंथों को पढ़ सकते हैं, टीवी पर, सोशल मीडिया पर संतों की कथाएं सुन सकते हैं। अधिकमास में ध्यान करने की भी परंपरा है। यहां जानिए भगवान विष्णुजी के दस अवतारों से जुड़ी खास बातें… मत्स्य अवतार: चैत्र माह के शुल पक्ष की तृतीया पर भगवान विष्णु के पहले अवतार मत्स्य की जयंती मनाई जाती है। मत्स्य पुराण के अनुसार विष्णुजी ने पुष्पभद्रा नदी किनारे मत्स्य अवतार लिया था। प्राचीन समय में असुर हयग्रीव का आतंक बढ़ गया था और पूरी पृथ्वी जल मग्न हो गई थी। तब मछली के रूप में श्रीहरि का पहला मत्स्य अवतार हुआ।
मत्स्य स्वरूप में हयग्रीव का वध किया और जल प्रलय से पृथ्वी के सभी जीवों की रक्षा की थी। कूर्म अवतार: हर साल वैशाख माह की पूर्णिमा पर कूर्म जयंती मनाई जाती है। ये भगवान विणु का दूसरा अवतार माना गया है। इस अवतार के संबंध में कथा प्रचलित है कि प्राचीन समय में जब समुद्र मंथन हुआ, तब विष्णुजी ने कछुए का रूप लेकर अपनी पीठ पर मंदराचल पर्वत को ग्रहण किया था। देवताओं और दानवों ने वासुकि नाग को रस्सी की तरह मंदराचल की नेती बनाया और समुद्र को मथा था। इस मंथन में हलाहल विष निकला, जिसे शिवजी ने ग्रहण किया था। इसके बाद 14 रत्न निकले। अमृत कलश निकला। वराह अवतार: भाद्रपद मास में शुल पक्ष की तृतीया तिथि पर वराह जयंती मनाई जाती है। वराह यानी शुकर। इस अवतार का मुख शुकर का था, लेकिन शरीर इंसानों की तरह था। दैत्य हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को समुद्र में छिपा दिया था। तब ब्रह्माजी की नाक से विष्णुजी वराह स्वरूप में अवतरित हुए। वराहदेव समुद्र में गए और अपने दांतों पर पृथ्वी रखकर बाहर ले आए। इसके बाद उन्होंने हिरण्याक्ष का वध किया। हिरण्याक्ष नाम में हिरण्य का अर्थ स्वर्ण और अक्ष का अर्थ है आंखें। जिसकी आंखें दूसरे के धन पर लगी रहती हैं, वही हिरण्याक्ष होता है। नृसिंह अवतार: नृसिंह अवतार प्राचीन समय में वैशाख माह में शुलपक्ष की चतुर्दशी तिथि हुआ था। इस अवतार के संबंध में भक्त प्रहलाद की कथा प्रचलित है। प्रहलाद को असुर हिरण्यकशिपु से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने एक खंबे से नृसिंह अवतार लिया था।