हरियाणा सरकार में शामिल जजपा पर अजीब दबाव है कि उसने बुधवार को खट्टर सरकार तो बचा ली लेकिन कृषि कानूनों की वापसी के लिए चल रहे आंदोलन में शामिल प्रदेश के किसानों की नाराजगी दूर करने का दबाव बाकी है। पार्टी के दस विधायकों में चार के सुर बागी भले ही हों लेकिन अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ एकजुट दिखे। विपक्ष का लाया प्रस्ताव 55 के मुकाबले 32 से गिर गया। जजपा के अधिकांश विधायक या किसान हैं या किसानों के बलबूते पर जीतकर आए हैं। उन पर प्रदेश के आंदोलित किसानों का दबाव है कि कृषि कानून की पक्षकार रही खट्टर सरकार से समर्थन लेकर किसानों का साथ दें। बजट सत्र के दौरान कांग्रेस के नेता व पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए बुधवार की शाम को हुई वोटिंग में सरकार जीत गई। हालांकि बजट सत्र में जिस तरह जजपा के चार विधायक बागी सुर दिखा रहे थे हैं उससे तो सरकार के भविष्य पर अनिश्चता के बादल छाए हुए थे लेकिन वोटिंग में साा पक्ष के विधायकों ने एकजुटता दिखाकर सरकार बचा ली।
हरियाणा में 88 विधायकों वाली विधानसभा में भाजपा के 40 व जजपा दस विधायक हैं। बहुमत के लिए 45 विधायक चाहिए थे। अब जजपा के विधायक किसान आंदोलन को लेकर दुविधा में हैं वह कृषि कानून की वापसी के लिए प्रदेश या केंद्र सरकार दबाव नहीं बना सकते। जबकि किसान संगठनों का दबाव है कि किसान हितों की रक्षा के लिए सरकार का साथ छोड़कर उनके साथ मैदान में आएं। किसान नेताओं का कहना है कि यदि वह सरकार के साथ ही रहते हैं तो आने वाले चुनाव में वह उनको सबक सिखाएंगे। पार्टी के टोहना से विधायक देवेंद्र बबली सरकार से इस बात पर खफा हो गए कि उन्हें सत्र में बोलने का मौका नहीं दिया वह इस्तीफा देने को तैयार हो गए। देवेंद्र बबली अकेले नहीं है उनके अलावा रामकुमार गौतम भी कृषि कानून को लेकर केंद्र सरकार से नाराज हैं। वह चाहते हैं कि उनकी पार्टी आंदोलित किसानों का साथ दे। उनका यह भी कहना कि असमंजस की स्थिति पैदा कर रहा है कि ये कानून केंद्र ने बनाए हैं खट्टर सरकार ने नहीं, इसलिए वह खट्टर सरकार के साथ हैं। यही बात वोटिंग में देखने को मिली। जजपा विधायकों ने किसान हितों की परवाह किए बिना पार्टी की गाइडलाइन को माना और सरकार बचाली।
जजपा के बरवाला से विधायक जोगीराम सिहाग ने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी कि वह आंदोलित किसानों के साथ हैं उन्हें चाहे विधायक पद से त्यागपत्र भी देना पड़े तो देंगे। इसके अलावा पार्टी के ईश्वर सिंह भी सरकार की कार्यशैली से नाराज चल रहे हैं वह भी गरीबों की भूमि के लिए आवंटन पर सरकार का जवाब चाहते हैं। अब कृषि कानूनों के विरोध में महम के विधायक बलराज कुंडू और चरखी दादरी के विधायक सोमबीर सांगवान सरकार से समर्थन वापस ले चुके हैं। ऐलनाबाद सीट से विधायक इनेलो नेता अभय सिंह चौटाला अपने पद से इस्तीफा दे चुके हैं। साथ ही कालका के कांग्रेस विधायक प्रदीप चौधरी को तीन साल की सजा होने के बाद उनकी विधानसभा सदस्यता रद कर दी गई है। इन सब के बावजूद मनोहर लाख खट्टर, जजपा अध्यक्ष दुष्यंत चौटाला व राज्य सरकार के गृहमंत्री अनिल विज का दावा सही साबित हुआ कि उनकी सरकार पर अविश्वास प्रस्ताव का कोई प्रभाव नहीं पडऩे वाला। अब खट्टर सरकार पूर्ण बहुमत में है। अब जजपा विधायकों पर दबाव है कि वह जनता विशेषकर किसानों के पास वोट मांगने किस मुंह से जाएंगे?