गत11 मार्च 2021 को ग्रेट ईस्ट जापान भूकंप की 10वीं वर्षगांठ मनाई गई, जिसमें लगभग 20,000 लोगों की जान चली गई थी। इस गंभीर अवसर पर मैं दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए प्रार्थना करता हूं और उन लोगों के लिए अपनी हार्दिक सहानुभूति व्यक्त करता हूं जिन्होंने इस आपदा में अपने प्रियजनों को खो दिया था। दस साल पहले जब जापान के उत्तर-पूर्वी हिस्से में भूकंप आया था, तब भारत के लोगों ने अपने घर से हजारों किलोमीटर दूर रहने वाले लोगों के लिए प्रार्थना की थी। भारत के द्वारा बहुत आवश्यक राहत सामग्री भी प्रदान की गई थी। भारत से भेजे गए हजारों कंबलों ने उन लोगों को गर्मी प्रदान की, जिन्होंने भूकंप और सूनामी में अपने घर खो दिए थे। बिस्कुट और पानी की बोतलों से लोगों को अपनी भूख-प्यास पर काबू पाने में मदद मिली। मैं जापानी सरकार और जापान के लोगों की ओर से इन महानुभावों के प्रति हार्दिक आभार प्रकट करना चाहूंगा। नेशनल डिजैस्टर रिस्पॉन्स फोर्स (एनडीआरएफ) के साहसी बचाव मिशन को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। अपनी पहली विदेशी तैनाती में एनडीआरएफ के 46 सदस्य ओनागावा शहर में खोज और बचाव में लगे रहे जहां 85 प्रतिशत इमारतें 14.8 मीटर ऊंची सूनामी में बह गईं और 800 से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवा दी।
मैं एनडीआरएफ कर्मियों को उनकी कर्तव्यनिष्ठा के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं, जिन्होंने ओनागावा के लोगों पर मर्मस्पर्शी छाप छोड़ी है। पिछले दस वर्षों में तोहोकू क्षेत्र के पुनर्निर्माण के प्रयास लगातार आगे बढ़ रहे हैं। ओनागावा का तो जैसे इस बीच पुनर्जन्म ही हो गया है। यदि आप एक पहाड़ी की चोटी पर चढ़ते हैं तो सीपाल-पियर ओनागावा पर शांत नीले समुद्र को उसके मनोरम रूप में देख सकते हैं। यह 2015 में प्रतीकात्मक रूप से खोला गया एक वाणिज्यिक केंद्र है। यह बात खास तौर पर उल्लेखनीय है कि यहां ज्वार-भाटा रोकने वाली ऊंची दृश्यमान अवरोधक दीवारें नहीं हैं। तबाही के अनुभव के बावजूद स्थानीय निवासियों का विचार समुद्र से किसी तरह की दूरी बनाने का नहीं है। समुद्र के साथ अपना तालमेल जारी रखने को लेकर वे उसी तरह दृढ़ संकल्प हैं, जैसा उनके पुरखे पीढ़ी-दर-पीढ़ी करते आ रहे हैं। इसके पीछे सिर्फ अतीत की यादों को सहेज कर रखने की भावना नहीं है। ओनागावा के इंजीनियरों ने सूनामी रन-अप बिंदुओं की सही पहचान करने के लिए मार्च 2011 की शुरुआत तक टाउन एरिया का सर्वेक्षण किया था। इससे बुनियादी ढांचे की जरूरतों को लेकर एक उद्देश्यपरक निर्णय को आधार मिला।
आपदा के एक महीने बाद ही ‘ओनागावा की पुनर्निर्माण परिषद’ गठित हो चुकी थी, जिसने सभी स्थानीय समूहों की भागीदारी के साथ पुनर्निर्माण की अवधारणा को लेकर काम करना शुरू कर दिया। इसने नागरिकों और टाउन हॉल के बीच साझेदारी बढ़ाने पर खास ध्यान दिया। इस प्रक्रिया में ओनागावा ने तय किया कि शहर की अर्थव्यवस्था की बुनियाद मत्स्य पालन ही रहे और पुनर्निर्माण की प्रक्रिया आर्थिक सुधार पर केंद्रित हो। पुनर्निर्माण परिषद के संकल्प और लगन की बदौलत वैज्ञानिक सबूतों तथा सामाजिक, आर्थिक दृष्टिकोण के आधार पर पुनर्निर्माण की अवधारणा को शीघ्र ही अंतिम रूप दे दिया गया। इससे बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण के लिए आवश्यक समय काफी कम हो गया और समुदायों के भंग होने की नौबत नहीं आई। ज्वार-भाटा रोकने वाली ऊंची दीवारों की आवश्यकता को खत्म करते हुए ओनागावा ने समुद्र के साथ रहने वाले शहर का अपना आकर्षण बरकरार रखा है।
कुल मिलाकर देखा जाए तो वह ओनागावा शहर, जो करीब-करीब ध्वस्त हो गया था और जिसे एनडीआरएफ की मदद उस समय मिली थी जब इसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी, अभी पुनर्जीवित हो गया है। ओनागावा के पुनर्निर्माण ने हमें दिखाया है कि ‘बिल्ड बैक बेटर’ का मतलब या है। इस नगर के पुनरुद्धार ने यह भी प्रदर्शित किया कि समावेशी लचीलापन से क्या कुछ हासिल नहीं किया सकता। 10 साल पहले भारत की सहानुभूति और सहायता प्राप्त करने के बाद अब जापान भारत में आपदा प्रबंधन क्षमता को मजबूत करने और लचीले बुनियादी ढांचे का निर्माण करने में योगदान दे रहा है। वह भारत के साथ अपने विशेषज्ञ ज्ञान को साझा करने का इच्छुक है। 2017 में जापान और भारत ने आपदा जोखिम न्यूनीकरण में सहयोग को लेकर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए, जिसके अंतर्गत द्विपक्षीय कार्यशालाएं हुई हैं और अनुसंधान संस्थानों तथा निजी क्षेत्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा दिया गया है।
जयिका का तकनीकी सहयोग भी चल रहा है। उत्तराखंड में वनों के पुनर्जीवन और आपदा रोकथाम उपायों से जुड़ी प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण तथा पहाड़ी क्षेत्रों में सड़क निर्माण क्षमता विकसित करने पर काम हो रहा है। जापान ‘आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन’ (सीडीआरआई) के माध्यम से लचीलापन बनाने में योगदान करने को तैयार है, जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने एक संस्थापक सदस्य के रूप में शुरू किया है। इस अंतरराष्ट्रीय मंच पर जापान और भारत का सहयोग मुक्त, खुले और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए हमारी साझा दृष्टि के अनुकूल होगा। मैं बता नहीं सकता कि अपने राष्ट्रीय संकट के समय में भारत के लोगों से मिले समर्थन के लिए हम कितने ऋ णी हैं। आपदा जोखिम में कमी लाने और एक लचीले समाज के निर्माण की भारत की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए हम उसके साथ मिल कर काम करने को प्रतिबद्ध हैं। कहने की जरूरत नहीं कि भारत 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर तेजी से बढ़ रहा है।
सातोशी सुजूकी
(लेखक भारत में जापान के राजदूत हैं, ये उनके निजी विचार हैं)