बड़ा अजीब सा लगता है कि जिस देश में नारियों के समान का आदेश दिया गया हो या जिसके धार्मिक ग्रंथों में लिखा हो कि जहां नारी की पूजा की जाती है, वहां देवता वास करते हैं। उस देश में एक गर्भवती पर ससुराल पक्ष का अत्याचार करना बड़ा अटपटा लगता है और ये घटना सरकार के उस अभियान का मुंह चिढ़ाती है जिसमें बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा दिया गया है। मध्य प्रदेश जिसे देश के सर्व विकसित प्रदेशों में गिना जाता है वहां एक पांच माह गर्भवती के ऊपर एक लड़के को बिठाकर पैदल नंगे पांव उबड़-ााबड़ रास्तों पर तीन किलोमीटर तक न केवल घुमाया गया बल्कि ससुर सहित तीन जेठों द्वारा पत्थर मारना और क्रिकेट के बल्ले से पिटाई करना 21 वीं सदी के विकास के दावे पर कलंक है। हमेशा की तरह इस तरह के मामलों में हमारी जिम्मेदार पुलिस भी लापरवाह बन जाती है। यही हुआ गुना जिले बांसखेड़ी की पुलिस ने आरोपितों के खिलाफ उन धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जिसमें आसानी से जमानत मिल जाती है। पीडि़त महिला का दोष सिर्फ इतना था कि उसका पति स्वयं दो माह पहले अपने दोस्त के घर यह कहकर छोड़ गया था कि वह अब उसे नहीं रख सकता।
ये अबला उसके पास शरण लिए हुए थी। पहले तो जब उसके पति को अपनी पत्नी पर विश्वास नहीं था, जिसके चलते वह अपने दोस्त के पास छोड़ गया था तो ससुराल के अन्य लोगों को क्या जरूरत थी कि वह इसे वापस लेने आएं। यदि वह लेने भी आए थे तो उन्हें इस अपमानजनक जुलूस निकालने की जरूरत क्या थी? इस घटना से आरोपी पक्ष ने यही साबित करने का प्रयास किया कि आज भी इक्कीस वीं सदी में पुरुष प्रधान समाज है जहां नारी को केवल उपयोग की वस्तु समझा जाता है। इस घटना को देखकर ऐसा लगता है कि आज भी हम प्राचीन काल में ही जी रहे हैं, जहां नारियों का केवल घर की दहलीज तक सीमित कर दिया जाता था। यदि इस वैज्ञानिक युग में इस तरह की घटनाएं होती रही और सरकार द्वारा इन पर कोई अंकुश नहीं लगाया गया तो हम उन्नति नहीं अवोन्नति के मार्ग पर चले जाएंगे। इस घटना से उन लोगों को बल मिलेगा जो दुनिया में आने से पहले ही बेटियों को भ्रूण हत्या के रूप में मार रहे हैं। सरकार को आरोपितों के खिलाफ कार्रवाई इसलिए भी करनी चाहिए क्योंकि हम ऐसे देश में वास कर रहे हैं जहां देवताओं के साथ देवियों की पूजा की जाती है।
जिसकी सभ्यता व संस्कृति में नारियों के सम्मान करने का आदेश दिया है। जहां कहा जाता है कि नारियों के समान वाले स्थान पर देवताओं का अवतरण होता है। इस घटना से कहीं भी ऐसा नहीं लगता कि जिससे यह कहा जा सके कि हम वैज्ञानिक युग में जी रहे हैं जहां नारियों का समान अधिकार दिए गए हैं। हमारी केंद्र सरकार जो नारियों का धार्मिक आधार पर चिंतन करते हुए तीन तलाक का कानून बना सकती है? वह इन पीडि़त महिलाओं के लिए क्या कदम उठा रही है, जिन्हें पुरुष प्रधान समाज में घर के अंदर सिसकने को मजबूर किया जा रहा है? उन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई करेगी, जिन्होंने इस मामले में अपनी लापरवाही का सुबूत देते हुए आरोपियों के खिलाफ हल्की और जमानती धाराएं लगाई हैं? हालांकि जिले के पुलिस कप्तान इस मामले में आरोपियों पर सत धाराएं लगाने का वादा कर रहे हैं। फिर भी आला अधिकारियों को इस मामले में नए सिरे से जांच- पड़ताल करते हुए आरोपितों के खिलाफ सत कार्रवाई करनी होगी ताकि एक सभ्य समाज में महिलाओं का वही सम्मान किया जाए जिसकी वो अधिकारी हैं।