बुद्धि कुंद, ऊपर से वायरस !

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इक्कीसवीं सदी के इंसान का दुर्भाग्य है जो भूमंडलीकृत गांव उसका नसीब है लेकिन बुद्धि और नेतृत्व में वह वैश्विक गांव आज लावारिस है। पृथ्वी के सात अरब 60 करोड़ लोग एक-दूसरे से जुड़े हैं, एक-दूसके को देख-समझ सकते है, पृथ्वी की दशा-दिशा, सेहत को समग्रता से बूझ सकते हैं। मिलेनियम पीढ़ी अपने मिलेनियम कालखंड में अंतरिक्ष में इंसानी बस्ती बसने की संभावना तक को जाने हुए है। मतलब ज्ञान-विज्ञान-बुद्धि और आधुनिकता से इंसान कहां से कहां पहुंचा है इसका बोध बांग्लादेश, भारत के गरीब को है तो अमेरिका के टेक्सास, वुहान के चीनी और रूस के साईबेरियाई नागरिक को भी है। ज्ञान-विज्ञान-बुद्धि की उड़ान ने इंसान को चांद-तारों के बीच पहुंचाया है बावजूद इसके सन् 2020-21 का लम्हा इंसान की कुंद व मूर्ख बुद्धि से शापित है! न जाने क्या हुआ, क्यों हुआ कि दुनिया गांव बनी लेकिन इंसान ठूंठ हुआ। विचार, विचारधारा, वैचारिकता की जगह छिछोरापन, प्रपंच, ढोंग, झूठ, अंधविश्वास, आस्था की वह सुनामी आई कि एक तरफ बुद्धि पर ताला है तो उसके परिणाम में सात अरब 60 करोड़ लोगों के दिलों-दिमाग में कही पैसे याकि भौतिकता की धुन है तो जिहादी जुनून है और प्रतिक्रियास्वरूप कहीं राष्ट्रवाद, कहीं नस्लवाद व कहीं पुरातनवाद-मूर्खवाद पसरा हुआ है। मानव सभ्यता का त्रासद पहलू है जो नई सहस्त्राब्दि की पहली इक्कीसवीं सदी के पहले बीस साल 19वीं-20वीं सदी के अनुभवों याकि इस्लाम, जिहाद, राष्ट्रवाद, साम्राज्यवाद, नस्लवादी, अंधविश्वासी कालखंड की ओर मनुष्यता को ले जाने वाले हुए।

अब आखिर में प्रकृति भी वायरस से गुजरी सदियों की महामारी का अनुभव करवा रही है। इंसान की बुद्धि को मूर्खताओं का वायरस लगा तो प्रकृति भी विषाणुओं से इंसान को संक्रमित कर रही है। पुराना वक्त जब लौटता है तो वक्त के लीडर भी पुराने वक्त के प्रतिनिधि होते हैं। मानव सभ्यता के इतिहास में पिछले दो सौ साल बुद्धि-ज्ञान-विज्ञान के यदि सर्वोत्तम लम्हे थे और इंसान ने विकास का सर्वोच्च वैभव पाया तो वह इंसान के सोचने, विचारने, विचार, विचारधारा, और उनसे निकली लीडरशीप की वैचारिक शिद्दत से था। अपना मानना है कि दो सौ साल के क्षणों में सन् 1969 (इंसान के चंद्रमा पर कदम रखने) से सन् 2001 (अमेरिका पर अलकायदा के हमले) के बत्तीस वर्ष पृथ्वी को भूमंडलीकृत, वैश्विक गांव बनवाने वाले थे। उसमें इस अवधि की समझदार लीडरशीप का योगदान भी था। रोनाल्ड रीगन, थैचर, गोर्बाचेव, येल्तसिन हों या देंग या सादात-बेगिन, नरसिंह राव या श्मडिट, मितरां, मंडेला की समझदारी, बुद्धि ने शीतयुद्ध खत्म कराया। क्षेत्रीय-वैश्विक सहयोग व उदारीकरण, खुले व्यापार से दुनिया गांव में बदली और पृथ्वी की सामूहिक चिंता का सिलसिला बना। उन 32 वर्षों में देशों की शक्ल जैसी बदली, मानव गरिमा में आजादी को जैसे पंख लगे उस पर यदि ईमानदारी से आज विचार हो तो आश्चर्य होगा कि ऐसा चुपचाप कैसे हो गया! दुनिया बदली, और गजब बदली। लोगों को खुली सांस मिली। वहीं पृथ्वी की आबादी में दो-तीन अरब लोग गरीबी रेखा से ऊपर उठे। भूमंडलीकृत गांव में गरीबी की ज्यादा चिंता होने लगी।

यहीं नहीं इबोला जैसे वायरसों से साझा कोशिशों से निपटा गया तो पृथ्वी की सेहत, जलवायु की चिंता का सरोकार वैश्विक बना। वह सब बुद्धि और बुद्धिजन्य लीडरशीप की बदौलत था। दुनिया को चलाने वाले प्रमुख देशों और वैश्विक संस्थाओं के प्रमुखों और नेताओं की समझदारी, बुद्धि, नेतृत्व क्षमता का वह कमाल था, जिससे देशों की सीमाएं टूटीं। संदेह नहीं इससे खतरा बना था कि सब एक दिशा में जा रहे हैं। इंसान में वैचारिक प्रतिद्वंदिता खत्म हो रही है और सब एक जैसे एक गांव के होते गए तो सोचना-विचारना बंद हो जाएगा। तब विचार शून्यता के खतरे होंगे। वह आंशका थी। वह सही साबित हुई जब बिन लादेन ने अमेरिकी सभ्यता के शिखर के प्रतिनिधि दो टॉवर का ध्वंस करके दुनिया को सोते से जगाया कि इस्लाम ने तो दुनिया को मध्यकाल में लौटाने की ठानी हुई है। ज्ञान-विज्ञान-बुद्धि की आधुनिक सभ्यता पर अल कायदा का वह हमला सबकी बुद्धि को कुंद कर गया। उस हमले से फिर वे परिस्थितियां बनीं, जिससे राष्ट्रवाद लौटा और डोनाल्ड ट्रंप, नरेंद्र मोदी और पुतिन जैसे वे नेता सत्ता में आए, जिन्हें अवसर को भुनाना आता है लेकिन अवसर बनाना नहीं! जो बुद्धि भ्रष्ट कर सकते हैं, बना नहीं सकते! जो झूठ से करिश्माई हो सकते हैं काबिल नहीं! मैं भटक गया हूं। मूल बात है कि सन् 2001 से दुनिया उन घटनाओं से संचालित है, जिनसे गुजरा वक्त लौटा है। इतिहास के भूत बोतल से बाहर निकले हैं।

राष्ट्रवाद, नस्लवाद, साम्राज्यवाद और तानाशाही का वह नया तानाबाना बना है, जिससे वैश्विक सरोकार, वैश्विक लीडरशीप, वैश्विक बुद्धि खत्म है और अहंकार, मूर्खताओं में, झूठ से लोगों को हांकने का व उनको कंट्रोल करने का जतन है। गौर करें डोनाल्ड ट्रंप पर। आज अमेरिका उनके कारण वायरस के आगे पस्त है। सोचें, इटली, स्पेन, जर्मनी, ब्रिटेन याकि यूरोपीय देश वायरस पर अंकुश में सफल हैं लेकिन अमेरिका फेल हो रहा है। वजह में यूरोपीय नेताओं बनाम डोनाल्‍ड ट्रंप की लीडरशीप, उनकी एप्रोच, काबलियत का फर्क है। अमेरिका अधिक संपन्न है, बेहतर मेडिकल व्यवस्था है, अमेरिका खुला हुआ मतलब विशाल भू भाग लिए हुए है और वहां ज्ञान-विज्ञान-अनुसंधान-बुद्धि-थिंक टैंक सब है बावजूद इसके अमेरिका कोविड-19 के आगे लाचार है तो एकमेव कारण डोनाल्ड ट्रंप और उनकी संघीय सरकार है। ट्रंप ने अपनी अहमन्यता, अहंकार, अपनी मूर्खताओं, नाकाबलियत में ऐसी गलतियां कीं, जिससे अमेरिका जैसा चुस्त, महाशक्ति देश और उसके नागरिक वह रिस्पांस, वह व्यवहार नहीं बना पाए जैसे इटली, जर्मनी, स्पेन आदि यूरोपीय देशों में बना। एक नेता से देश कैसे बरबाद होता है, कितने लोग मरते हैं या बीमार होते हैं इसका प्रमाण यदि डोनाल्ड ट्रंप और अमेरिका हैं तो ब्राजील और उसके बोलसोनारो भी हैं। रूस और उसके पुतिन हैं। भारत और उसके नरेंद्र मोदी हैं। चीन और उसके शी जिनफिंग हैं। मैं यहां चीन और शी जिनफिंग का जिक्र पूरी मानवता के संदर्भ में कर रहा हूं।

शी जिनफिंग ने वायरस और उसकी महामारी का दुनिया को जैसे एक्सपोर्ट होने दिया वह लीडरशीप के मूर्खतापूर्ण व्यवहार और सोच का प्रमाण है। जैसे शी ने प्रारंभ में समझदारी नहीं दिखाई वैसे ट्रंप, बोलसोनारो, पुतिन और नरेंद्र मोदी ने भी नहीं दिखाई। तभी पांचों से नतीजा इंसान की असंख्य मौतों का है, देशों की बरबादी का है। ये पांच नेता, ये पांच देश पृथ्वी की सात अरब 60 करोड आबादी में साढे तीन अरब आबादी लिए हुए हैं। मतलब दुनिया की कोई आधी आबादी इन पांच नेताओं की उंगलियों, इनकी जुबान, इनके दिमाग में अपनी बुद्धि, अपना जीवन गिरवी रखे हुए है। तभी कल्पना करके रखें कि इनसे आने वाले वक्त में कितने करोड़ लोग संक्रमित हो मौत से जूझ रहे होंगे। इन्होंने अपने-अपने व्यवहार से बीमारी दी है, बीमारी फैलाई है, अंधविश्वास, झूठ फैलाया है। इसलिए देर सबेर मानवता में यह विचार जरूर होगा कि सन् 2020-21 का कैसा लम्हा, जिसमें ऐसी लीडरशीप थी, जिसका सत्य, वैज्ञानिकता, बुद्धि से दूर-दूर तक नाता नहीं था। इन पांच नेताओं ने लोगों की बुद्धि को जैसा संक्रमित किया है वह कोविड-19 के वायरस से इसलिए अधिक घातक है क्योंकि इन पांचों नेताओं ने वायरस को अपना अवसर बना लोगों को मौत के कुएं में धकेला है। शी जिनफिंग ने यदि धूर्तता में वायरस को एक्सपोर्ट किया तो पुतिन, ट्रंप, मोदी, बोलसोनारो ने अपनी-अपनी अहमन्यता में यह हवाबाजी की कि मैं हूं न! हम 21 दिन में विजयी होंगे। रिओपन करो आर्थिकी। लॉकडाउन की जरूरत नहीं और मैं अमेरिका का राष्ट्रपति तो भला मैं कैसे मास्क लगा सकता हूं।

बजाओ ताली-थाली और जलाओ दीया! उफ! इक्कीसवीं सदी में, बुद्धि के काल में नस्ल विशेष कितनी जाहिल, मूर्ख, अंधविश्वासी हो सकती है, इसे दुनिया ने 2001 में बिन लादेन के हुंकारे के वक्त भी देखा था तो उसकी प्रतिक्रिया में उभरी राष्ट्रवादी लीडरशीप के हुंकारों से भी बार-बार देखने को मिल रहा है। पिछले बीस साल के लम्हों में ऐसा कुछ हुआ है, जिससे परिस्थितिजन्य वह लीडरशीप उभरी, जिसने अपने आपको बनाए रखने के लिए वे परिस्थितियां, वह सांचा बनाया, जिसमें न जनता के लिए सोचने को कुछ है और न व्यवस्था-नेतृत्व के लिए सोचने की गुंजाइश है। सिर्ब सबको लफ्फाजी, भावना, करिश्मे में बहते जाना है। अमेरिका ग्रेट, मैं ग्रेट, मेरे फैसले ग्रेट वाली डोनाल्ड ट्रंप की लफ्फाजी पुतिन का ट्रेडमार्क है तो ब्राजील के बोलसोनारो का भी है और नरेंद्र मोदी व शी जिनफिंग का भी है। इन पांचों नेताओं के साथ यदि पचास इस्लामी देशों व तानाशाह देशों के नेताओं, वहा की प्रजा को जोड़ लें तो पृथ्वी पर इंसान का मौजूदा लम्हा बेहद भयावह है। वह बुद्धिविहीनता के ऐसे अंधकार युग में रंगा हुआ है, जिसमें समझ नहीं आएगा कि कैसे तो एक तरफ अंतरिक्ष के स्पेस स्टेशन में विज्ञान बैठा है तो दूसरी और मूर्खतापूर्ण यह लफ्फाजी है कि कोरोना फ्लू का दूसरा नाम है और गर्मी से वायरस मर जाएगा!

हरिशंकर व्यास
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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