मैं पिछली बार नवंबर में भारत आया था। तब ‘महामारी’ जैसे शब्द का कहीं नामोनिशान भी नहीं था। महज छह महीने बाद अभी किसी और चीज के बारे में शायद ही कोई बात करता है। जैसा कि बिल गेट्स ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत के दौरान कहा कि कोविड-19 के मामले में भारत का अब तक का प्रयास उत्साहवर्द्धक है। सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के कारण भारत में जान और जीविका का नुकसान यूरोपीय और अमेरिकी देशों के मुकाबले काफी कम है। हमारा फाउंडेशन उत्तर प्रदेश और बिहार में तकनीकी सहयोग, डिजिटल उपकरण, स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षण समेत अन्य कार्यक्रमों के जरिए सरकार के इन प्रयासों में अपना योगदान कर रहा है। दवा की खोज दुनिया के बाकी देशों की तरह ही कोविड-19 के खिलाफ भारत की लड़ाई मुख्य रूप से सामाजिक दूरी, दुकानें बंद करने, लोगों को घरों पर रहने के आदेश और यात्राएं रद्द करने जैसे उपायों तक सीमित है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस बीमारी के इलाज के लिए कोई दवा उपलब्ध नहीं है और न ही अब तक कोई ऐसी वैक्सीन बनी है जो लोगों को इस बीमारी का शिकार होने से बचा सके। अच्छी बात यह है कि भारत इस वैश्विक चुनौती को भी संबोधित कर रहा है।
यहां के खोजियों, विद्वान वैज्ञानिकों और दवा निर्माताओं की क्षमता, दवाओं के निर्माण में उच्च स्तरीय सुरक्षा मानकों के पालन की भावना और सहयोग की परंपरा इस देश को वहां ला खड़ा करती है जहां से यह दुनिया को इस महामारी से बाहर निकलने का रास्ता दिखा सकता है। आखिर कोविड-19 को हराने के लिए जिन उपायों की जरूरत है, वे नई खोज से ही प्राप्त होंगे। समानता यह तय करेगी कि यह सभी के लिए न केवल उपलब्ध हों बल्कि किफायती भी हों। साथ ही इसमें वैश्विक सहयोग की आवश्यकता भी होगी क्योंकि इस चुनौती से निपटना किसी एक देश या एक कंपनी के लिए मुश्किल होगा। अगर हम उन पहलुओं पर विचार करें जिनमें भारत ने अब तक सफलता हासिल की है, तो हम जान पाएंगे कि यही वह समय है जब भारत दुनिया की अगुआई कर सकता है। जब बात हो नई खोज की तो वैश्विक स्वास्थ्य अनुसंधान एवं विकास के क्षेत्र में भारत पहले ही महत्वपूर्ण दर्जा प्राप्त कर चुका है। हमारे फाउंडेशन की सहयोगी सेरम इंस्टिट्यूट और भारत बायोटेक समेत विभिन्न भारतीय कंपनियों द्वारा बनाई गई वैक्सीन की बदौलत अब दुनिया भर में खसरा, न्यूमोनिया और रोटावायरस जैसी बीमारियों से पहले के मुकाबले कम बच्चों की मौत होती है। अब जबकि सबका ध्यान कोविड-19 पर है, ऐसे में यही दक्षता उच्च गुणवत्ता वाली किफायती वैक्सीन बनाने में भारत की वैक्सीन इंडस्ट्री के काम आएगी।
यही नहीं, भारत पहले ही कई ऐसी एंटी वायरल दवाएं बना रहा है जिनका इस्तेमाल कोविड-19 के हल्के संक्रमण के उपचार में किया जा सकता है। दवाइयों के उत्पादन और दुनिया भर में उनकी सप्लाई के लिए हमारा फाउंडेशन भारतीय फार्मा कंपनियों के साथ मिलकर बड़ी अमेरिकी दवा कंपनियों द्वारा निर्मित उत्पाद तकनीकें भारतीय दवा कंपनियों को देने की संभावना भी तलाश रहा है। केवल वैक्सीन और दवाइयों का विकास ही नहीं बल्कि उच्च मानकों के मुताबिक बड़ी मात्रा और कम लागत में इनके उत्पादन के मामले में भी भारत ने अपनी क्षमता को साबित किया है। इसीलिए भारत दुनिया भर के अति गरीब देशों में लाखों जिंदगियां बचाने में अहम भूमिका निभा सकता है। वैक्सीन और उपचार के अलावा भी भारत दुनिया को सबसे अलग हल देने की क्षमता रखता है। उदाहरण के तौर पर जांच और मेडिकल उपकरणों का तेजी से विकास और इस्तेमाल। भारत ने मूल टेस्ट किट से लेकर वेंटिलेटर तक ऐसे अनेक आधुनिक मेडिकल उपकरण विकसित किए हैं जिनका इस्तेमाल दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में भी किया जा सकता है जहां बिजली की आपूर्ति अनियमित या लगभग ना के बराबर है।
यहां आधुनिक तकनीक की भी अपनी भूमिका है। जैसे आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) का इस्तेमाल तेजी से जांच करने और कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग में किया जा सकता है। भारतीय स्टार्ट-अप्स पिछले कुछ समय से ऐसे पायलट प्रॉजेक्ट्स को सफलतापूर्वक अंजाम दे रहे हैं। यह तकनीक ऐसी जगहों के फ्रंटलाइन वर्कर्स के काफी काम आ सकती है जहां डॉक्टरों, रेडियोलजिस्ट और अन्य विशेषज्ञों की काफी कमी है। आखिर में वैश्विक साझेदारी के स्तर पर देखा जाए तो भारत ने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं, निजी कंपनियों, सार्वजनिक अनुसंधान संस्थानों और शिक्षाविदों के साथ मिलकर किए गए कामों में बेहतरीन नतीजे प्राप्त किए हैं। उदाहरण के तौर पर रोटा वायरस की वैक्सीन ‘रोटोवैक’ एक जॉइंट वेंचर है जिसमें भारत सरकार, भारत बायोटेक, अंतरराष्ट्रीय गैर लाभकारी संस्था पाथ, यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन, नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ और अन्य संस्थाएं शामिल हैं।
साझेदारी है जरूरी कोविड-19 संबंधी अनुसंधान एवं विकास कार्य में विश्व स्तर पर जारी प्रयास सफल होते हैं तो भारतीय दवा उत्पादकों ने दिखा दिया है कि वैक्सीन की राह देख रही दुनिया के लिए ढेरों किफायती वैक्सीन बनाने में साझेदारी बेहद जरूरी है। हमारा फाउंडेशन और भारत कोएलिशन फॉर एपिडेमिक प्रिपेयर्डनेस के संस्थानिक सदस्य हैं। यह संस्था कोविड-19 की वैक्सीन बनाने को लेकर दुनिया भर में जारी प्रयासों की देखरेख करती है। भारत को ACT जैसे बहुआयामी प्रयासों को तेज़ करने में भी भूमिका निभानी है क्योंकि अगर हम कोविड-19 को पीछे छोड़ना चाहते हैं तो ऐसे अंतरराष्ट्रीय प्रयास बेहद जरूरी हैं। मैंने पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से भारत के जबर्दस्त उभार को करीब से देखा है। इसीलिए मैं इसकी मजबूती और संभावनाओं में अन्य लोगों के मुकाबले कहीं ज्यादा यकीन रखता हूं। एक साझेदार के तौर पर बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन इस वैश्विक संकट का समाधान तलाशने में भारत के साथ खड़ा है।
मार्क सुजमैन
(लेखक बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के सीईओ हैं)