आई कांट ब्रीद

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कुछ भी हो, बड़ों की बड़ी बात होती है। अमरीका यूँ ही दुनिया का थानेदार नहीं है। शुरूआत कैसे भी हो लेकिन अंततः नंबर वन बन ही जाता है। आज भी कोरोना के संक्रमितों और मरने वालों की संख्या के हिसाब से दुनिया में नंबर वन है। लेकिन अब टेस्ट के मामले में भी सबसे आगे निकल रहा है। इतना पिछड़ने के बाद भी अंततः वह हालात को कंट्रोल में कर ही लेगा। हम भी जनसंख्या के मामले में जल्दी ही चीन से आगे निकल सकते हैं। कोरोना के मामले में शुरू में तो हमारी गति धीमी थी लेकिन अब तेजी पकड़ रही है। लेकिन यह कोई गौरव की बात है ? नहीं, चिंता और शर्म की बात है। तोताराम के आते ही हमने उसके सामने अपनी यही चिंता व्यक्त की तो बोला- यह तो मोदी जी ने बचा लिया, भाई ! नहीं तो पता नहीं क्या हो जाता ? क्या पता, आधा भारत की साफ़ हो जाता। मोदी जी ‘नमस्ते ट्रंप’ से निवृत्त होते ही कोरोना के मोर्चे पर आ डटे। और उसके बाद कभी यह, तो कभी वह। कोरोना की साले की साँसें फुला दी।

सोच रहा होगा, कहाँ फँस गया।और बीस लाख करोड़ का पॅकेज आने पर तो सब कुछ भूल-भालकर अपने खाते में 15 लाख रुपए आने का हिसाब लगाने लग गया होगा। हमने कहा- भ्रम मत पाल। कभी किसी छोटा-मोटा काम-धंधा करने वाले या मजदूर से पूछोगे तो वह भी यही कहेगा- क्या बताएँ मास्टर जी, इस लॉक डाउन के चक्कर में तो साँस ही नहीं आ रही है। और तू कह रहा है मोदी जी ने कोरोना की साँस फुला दी। बोला- कोरोना की छाती पर इतनी तालियाँ और इतनी थालियाँ बजने से उस की क्या हालत हो गई होगी यह केवल कल्पना ही की जा सकती है। कोरोना जब शुरू-शुरू में आया था तब देखा नहीं कैसे, बिहारी के दोहे की तरह ‘श्याम हरित द्युति’ हो रही थी। और अब, नीला-पीला, चितकबरा हुआ जा रहा है। पहले कितना अकड़ता हुआ आया था। तुझे पता है, इसका कोरोना नाम क्यों पड़ा ?

लगता है जैसे इसके सिर पर कोई ‘क्राउन’ (ताज ) है। तभी तो इसे क्राउन वाला कोरोना कहा गया है। अब तो कोरोना खुद ही मुँह छुपा रहा है । तभी अब बिना लक्षण वाला हुआ जा रहा है। ताली-थाली सुनकर और दीयों की रोशनी से चकाचौध होकर पगला सा गया है। कभी मंदा पड़ जाता है, कभी तेज; कभी किसी जगह से निकल जाता है तो कभी फिर-फिर वहीँ आ जाता है। कभी यहाँ प्रवासी मजदूरों में घुस जाता है तो कभी तबलीगियों में। अब अमरीका में घबराकर काले लोगों में घुस रहा है। हमने कहा- लेकिन अब तो मोदी जी खुद कह रहे हैं कि कोरोना के साथ रहना सीखना होगा। बोला- तभी तो श्रद्धालु लोग कोरोना को देखते ही सोशियल डिस्टेंसिंग भूल जाते हैं और दौड़कर कोरोना की ऐसे झप्पी भर लेते हैं जैसे ‘नमस्ते ट्रंप’ में मोदी जी ने लपककर ट्रंप को बाँहों में भर लिया था।

ऐसे में कोरोना खुद जार्ज फ्लायड की तरह चिल्ल्ला रहा है- आई कांट ब्रीद। हमने कहा- तो फिर देश में कोरोना के केस इतनी तेज़ी से क्यों बढ़ रहे हैं ? बोला- कोरोना के मामले में भारत की हालत दुनिया के अमरीका, ब्रिटेन, फ़्रांस जैसे देशों से बेहतर है। ये तो कुछ विपक्षी और देशद्रोही लोग हैं जो कोरोना-कोरोना चिल्ला रहे हैं।यदि हालत ठीक नहीं होती तो क्या लॉक डाउन खोल दिया जाता ? बस, भारत सरकार के महाधिवक्ता तुषार मेहता की बात मान और सकारात्मकता बनाए रख। सब ठीक हो जाएगा। इतने पर यदि तुझे कुछ समस्या लगे तो बता देना, जैसे सपरिवार कोरोना ग्रस्त हो गए आर्मीनिया के प्रधानमंत्री के लिए स्वास्थ्य लाभ की कामना कर दी, वैसे तेरे लिए भी कर देंगे। तुझे पता होना चाहिए शुभकामनाओं में बड़ी शक्ति होती है, वेक्सीन से भी ज्यादा।

रमेश जोशी
(लेखक देश के वरिष्ठ व्यंग्यकार और ‘विश्वाÓ (अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, अमरीका) के संपादक हैं। ये उनके निजी विचार हैं। मोबाइल -09460155700 l blog-jhoothasach.blogspot.com (joshikavirai@gmail.com)

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