हिंदू राष्ट्र : संत का अनशन क्यों ?

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संत परमहंसदास भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करवाने के लिए अन्न-जल त्यागकर अनशन पर बैठ गये हैं। महाराज ने संकल्प लिया है कि जब तक उनकी मांग पूरी नहीं हो जाएगी, तब तक उनकी भूख हड़ताल समाप्त नहीं होगी। इतना ही नहीं संतश्री का यह कहना है कि अगर देश का बंटवारा धर्म के आधार पर नहीं हुआ तो बंटवारे का कोई औचित्य नहीं है। संत परमहंसदास अपनी इस बात के साथ एक मांग और जोड़ते हैं- ‘पाकिस्तान और बांग्लादेश का भारत में विलय करके अखंड भारत की घोषणा कर देनी चाहिए।’

अपनी मांग और इच्छा से संत परमहंसदास छह महीने पहले ही पत्र लिखकर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुयमंत्री को अवगत करा चुके हैं। मुझे या आपको ही नहीं संत परमहंसदास जी को भी इस बात का पूरा भरोसा होगा कि उनकी मांग मानी जाने वाली नहीं है। क्योंकि भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन ही है, बाकी कोई चमत्कार हो जाए तो कुछ भी हो सकता है। हिंदू राष्ट्र से लोगों को इतना परहेज नहीं है, जितना हिन्दुत्व राष्ट्र से है। लोगों को लगता है कि हिंदू राष्ट्र की आड़ में हिन्दुत्व राष्ट्र बनाने का प्रयास किया जा रहा है। हिन्दुत्ववादी विचारधारा के सत्तासीन होने के बाद से हिंदू राष्ट्र की मांग ने जोर पकड़ा। किसी ने दावा किया कि 2021 तक ये काम पूरा हो जाएगा, तो किसी ने कहा कि 2023 तक भारत हिंदू राष्ट्र बन जाएगा। तमाम लोग इस बात को लेकर आशंकित हैं कि हिन्दुत्ववादी राष्ट्र में कट्टरपंथी हिंदुओं का राज होगा और उनका विरोध करने वाले हिंदू भी अल्पसंयकों की तरह दोयम दर्जे के नागरिक बनकर रह जाएंगे।

हिंदू राष्ट्र की चर्चा ने 2014 के बाद से जोर पकड़ा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी एक समय कह चुके हैं कि हिंदू राष्ट्र की अवधारणा गलत नहीं है। एक भाजपा सांसद तो अनेक बाद दोहरा चुके हैं कि देश को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए संविधान में संशोधन किया जाये। और भी तमाम नेताओं के बयान हिंदू राष्ट्र के पक्ष में आते रहते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का तो यह मुख्य एजेंडा है ही। संघ का गठन ही हिंदुओं को आक्रामक और एकजुट करने के लिए 1925 में कांग्रेस छोड़कर आए हेडगेवार ने किया था। संघ के दूसरे प्रमुख गुरु गोलवलकर ने डॉ. हेडगेवार की लाइन को ही आगे बढ़ाया। उन्होंने तो मुसलमानों को आजाद भारत में नागरिक अधिकार तक न दिये जाने की पुरजोर वकालत भी की थी। इस बात को स्वीकार करने वालों की संया कम नहीं है, जो मानते हैं कि भारत की जो दुनिया में साख है वह उसकी लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष छवि के कारण है। भारत का संविधान किसी भी सरकार को इस बात की अनुमति नहीं देता है कि वह कोई भी ऐसा कानून बनाए जो धर्म के आधार पर भेदभाव का हथियार बने। हिंदू राष्ट्र बनाने का मतलब है कि भारत एक धार्मिक देश बन जाएगा। जिसमें धर्म के आधार पर दूसरे धर्मों के विरुद्घ भेदभाव होगा। हो सकता है हिंदू राष्ट्र में धार्मिक नेता तय करें कि कौन सा कानून बने और उसे कैसे लागू किया जाए।

आज हिन्दुस्तान में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्घ, पारसी सभी लोग समरसता और सद्भाव के साथ रहते हैं। हिन्दुत्व राष्ट्र में हिंदुओं के अतिरित शेष धर्मावल के साथ किस तरह का व्यवहार होगा। यह भविष्यवाणी कोई भी नहीं कर सकता है। लेकिन भेदभाव की आशंका से इंकार भी कोई नहीं कर पाएगा। ‘सर्वधर्म संभाव’ भारतीय संस्कृति की शान है। यदि इसी भाव को सींचकर देश को प्रगति के पथ पर आगे, और आगे बढ़ाने का सामूहिक सार्थक प्रयास किया जाए तो यह हिंदू, हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तानियों के लिए गर्व का विषय होगा। अगर बहुत गौर से देखें, ठंडे दिल से सोचें तो आज भी हम हिंदू राष्ट्र में ही रहते हैं, हिंदू बहुसंयक आबादी वाले देश को आप या कहेंगे, या समझेंगे?

(लेखक राकेश शर्मा वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार है)

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