नमस्कार सुख

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सलाम के लिए मियांजी को यों नाराज किया जाए, इसे शिरोधार्य करके मैं सबको नमस्कार करता रहा, लेकिन किसी ने आगे से चलकर मुझे नमस्कार नहीं किया। इसका मुझे रंज भी कम न था। दतर में कोई पोजीशन नहीं होने से वैसे ही कोई नमस्कार नहीं करता था, रही कॉलोनी की बात तो विपन्नता ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा। अच्छा आदमी होने के कारण नमस्कार करना आजकल वैसे ही जरूरी नहीं रह गया है। एक दिन पत्नी ने भी कुरेदा आप कब तक सबसे नमस्कार करते रहेंगे? या हमें नमस्कार करने वाला अभी तक पैदा ही नहीं हुआ? मैंने कहा कि तुम ठीक कहती हो ऐसा हमारा नसीब कहां, जो कोई हमें आकर नमस्कार करे, लेकिन हमें ऐसा कुछ करना ही होगा कि दस-बीस लोग हमें भी जब कभी मिलें तो नमस्कार करें, लेकिन हालात इतने विपरीत है कि नमस्कार करने वालों की जमात बनाना फिलहाल मुश्किल है। पत्नी बोली चमत्कार को नमस्कार है। हमारी माली हालत पतली होने से हम किसी प्रकार का चमत्कार भी नहीं कर सकते।

वरना परचूनी वाले से नकद सामान उठाकर तथा मोहल्ले में कुछ दबे हुओं को उधार देकर हम नमस्कार के लिए बाध्य कर सकते हैं। गुप्ता जी को देखो कितने लोग नमस्कार करते हैं। उधार देकर ब्याज वसूलते है, परन्तु नमस्कार मुफ्त में लेते हैं। वरना आदमी तो एकदम लचर हैं। उन्हें नमस्कार करने की और कोई वजह नहीं है। बोलचाल में एकदम रूखे और बेहूदा, परंतु नमस्कार करने वालों का तांता लगा हुआ है। जब तुम जानती हो कि गुप्ताजी धनान्य हैं तो फिर और या वजह दूंडनी है। हमने आर्थिक मोर्चे पर विफलता हासिल की है, इसी का परिणाम है कि नमस्कार करने वाला कोई नहीं मिला, लेकिन मैं तुहारी इस बात से सहमत हूं कि यदि हम प्रयास करें तो दस-पांच लोग इसके लिए अपने तरीके से मैनेज कर सकते हैं? मैंने पत्नी को समझाया तो वह बोली तो यह योजना छुपा यों रखी है। उस पर अमल करो और नमस्कार सुख भी प्राप्त करो। दुखों की भरमार में एक सुख यह भी मिल जाए तो बहुत संतोष मिलेगा।

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