श्रमिकों को रोजगार एक चुनौती

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कोरोना संक्रमण के दौरान प्रदेश में लौटे प्रवासी मजदूरों को यहां रोजगार मुहैया कराना एक चुनौती है। पहले तो लॉकडाउन के दौरान शुरू में दिहाड़ी मजदूरों का पलायन हुआ। उसके बाद स्किल श्रमिकों का वेतन अल्पआय की नौकरी व छोटे स्वरोजगार में लगे लोगों का अपने मूल स्थान पर पलायन शुरू हुआ जो कि अनलॉक-1 तक जारी रहा। परंतु अब इनका पलायन पुन: महानगरों व औद्योगिक क्षेत्रों की ओर शुरू हो गया है। हालांकि यूपी सरकार की योजना है कि इन श्रमिकों को यहीं पर रोजगार उपलब्ध कराया जाए। अभी मनरेगा के तहत रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है। ग्राय विकास विभाग के अनुसार प्रदेश में 15.91 लाख प्रवासी श्रमिक आये जिनमें से 8.90 लाख प्रवासी श्रमिकों को उपलब्ध कराया गया। प्रदेश में 23 जून तक 690.83 लाख मानव दिवस सृजित करने का लक्ष्य था जिसके सापेक्ष 1061.85 लाख मानव दिवस सृजित किए गए, जो कि लक्ष्य का 154 प्रतिशत है। यह यूपी में मनरेगा के तहत प्रवासी श्रमिकों को उपलब्ध कराये गये रोजगार का आंकड़ा है।

यह आंकड़ा उत्साहवर्धक है परन्तु समस्या यह है कि जो श्रमिक कार्यकुशल है या सेवाक्षेत्र में नौकरी करते थे वे मनरेगा में कार्य करना पसंद नहीं कर रहे हैं। यूपी के अन्य विभाग लघु उद्योग, खादी एवं ग्रामोद्योग प्रवासी श्रमिकों को रोजगार उपलध कराने का प्रयास कर रहे हैं परंतु इन प्रयासों का संरचना खड़ा होने का परिणाम सामने आने में अभी वक्त लगेगा। प्रवासी श्रमिकों को रोजगार उपलध कराने के लिए परंपरागत उत्पाद वाले जिलों में प्रयास हो रहे हैं। एक जिला एक उत्पाद कार्यक्रम प्रवासी मजदूरों को स्थानीय स्तर पर रोजगार देने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। चीनी सामानों पर निर्भरता कम करने को लेकर स्थानीय उत्पादों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इस वजह से बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिकों को उनकी कार्यकुशलता के अनुरूप कार्य मिल सकता है। भारत में अभी तक फ्रूट कैंडी का आयात चीन व मलेशिया से होता था। प्रतापगढ़ में आंवला का उत्पादन बहुत अधिक होता है। अभी तक औ़द्योगिक उत्पाद के रूप में लड्डू बर्फी, मुरबा व शैपू आदि का उत्पादन होता था परन्तु अब यहां फ्रूट कैंडी का उत्पादन हो रहा है।

इसकी मांग भी बढ़ रही है। अभी तक 30 करोड़ रुपये के आंवला उत्पादों का व्यापार होता था परन्तु विदेशी कैंडी की मांग कम होने पर इसके उत्पादन में निश्चित वृद्धि होगी। इसी तरह गोरखपुर में स्थानीय उद्यमियों ने चीन से आयातित लक्ष्मी गणेश के विकल्प के रूप में टेराकोटा के शिल्प वाला उत्पाद भारतीय बाजार में उतारने की पूरी कवायद कर दी है। दीपावली में 1.50 करोड़ दीये व लगभग 10 लाख प्रतिमाओं की खपत होती है। अब चीनी उत्पाद की जगह गोरखपुर का उत्पाद लेगा। इसी तरह मुरादाबाद में पीतल उद्योग, अलीगढ़ में खिलौना, वाराणसी में रेशम उद्योग, मेरठ में कैंची, आगरा का जूता उत्पादन, बरेली का मांझा व पतंग, कानपुर का होजरी उत्पाद व लखनऊ का झालर व लाइटिंग उत्पाद, फिरोजाबाद का कांच उद्योग में उछाल आया है। अगर ये उद्योग अपनी रफ्तार पकड़ लेंगे तो प्रवासी मजदूरों का प्रदेश से पुन: दूसरे राज्यों के महानगरों व औ़द्योगिक नगरों की तरफ पलायन रुक जायेगा। वर्तमान का यथार्थ है कि बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों को कृषि क्षेत्र में नहीं खपाया जा सकता। इन श्रमिकों को औद्योगिक क्षेत्र में ही रोजगार मुहैया कराना होगा। इसके लिए सबसे मुफीद लघु व मध्यम उद्योग है।

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