कोरोना वायरस की महामारी के बीच सरकार संकट प्रबंधन की बजाय जनसंपर्क के प्रबंधन यानी पीआर एसरसाइज में जुटी हुई है। सरकार से सारे मंत्री और उनके विभाग इस प्रचार में लगे हैं कि सरकार ने या या कर दिया। इस समय इसका प्रचार करने की जरूरत नहीं है क्योंकि सरकार ने अगर बहुत कुछ कर दिया और लोगों को उसका लाभ मिलने लगा तो फिर उसे प्रचार के जरिए बताने की जरूरत ही कहां से आती है। असल में सरकार ऑक्सीजन की कमी, दवाओं की कालाबाजारी, बेड्स के लिए मारामारी, टेस्टिंग में हो रही देरी और मौतों की वजह से श्मशान-कब्रिस्तान भर जाने की खबरों से इतनी परेशान है कि उसे कुछ और समझ में नहीं आ रहा है तो इस बात का प्रचार कर रही है कि रेलवे ने कितनी ऑक्सीजन की ढुलाई कर दी और वायु सेना ने कितने घंटे उडान भरी। पिछले 15 दिन से रेल मंत्री और उनके मंत्रालय की ओर से वीडियो जारी करके बताया जा रहा है कि रेलवे किसी तरह से ऑक्सीजन की ढुलाई कर रही है। बुधवार को बताया गया कि पिछले 15 दिन में भारतीय रेलवे ने 62 सौ मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आपूर्ति की है। सोचें, दुनिया के सबसे बड़े रेल नेटवर्क ने 15 दिन में 62 सौ मीट्रिक टन ऑक्सीजन कहीं से कहीं पहुंचाया है तो इसे बहुत बड़ी उपलधि के तौर पर पेश किया जा रहा है।
हकीकत यह है कि 62 सौ मीट्रिक टम ऑक्सीजन देश की एक दिन की जरूरत से भी कम है। भारत सरकार के मुताबिक देश में हर दिन 66 सौ मीट्रिक टन ऑक्सीजन की जरूरत है। हालांकि यह जरूरत कम करके बताई गई है क्योंकि भारत में 72 सौ मीट्रिक टन ऑक्सीजन की उत्पादन प्रतिदिन हो रहा है और वह कम पड़ रहा है। इसका मतलब है कि भारतीय रेलवे ने पूरे 15 दिन में जितने ऑक्सीजन की ढुलाई की है उतने से देश की एक दिन की जरूरत भी पूरी नहीं होती है। लेकिन इसका प्रचार ऐसे हो रहा है, जैसे यह सबसे बड़ी उपलधि हुई। यह असल में पीआर डिजास्टर है। इसी तरह पीआर एसरसाइज के तहत सरकार की ओर से बताया गया कि पिछले 15 दिन में भारतीय वायु सेना के विमानों ने 14 सौ घंटे उड़ान भरी है और चिकित्सा सामग्री की ढुलाई की है। सोचें, इस खबर का या मतलब है? लोगों को अस्पताल में बेड्स नहीं मिल रहे हैं, ऑक्सीजन की मारामारी है, टेस्ट के इंतजार में लोग मर रहे हैं, बाजार से जरूरी दवाएं गायब हैं, श्मशानों में जगह नहीं मिल रही है, नदियों में लाशें बह रही हैं और सरकार बता रही है कि वायु सेना के विमान कितने घंटे उड़े और रेलवे ने कितने फेरे लगाए! उधर कोरोना वायरस की महामारी के बीच विपक्षी पार्टियां एक साथ आईं और सरकार को चिट्ठी लिख कर कई सुझाव दिए।
विपक्ष का साथ आना और सरकार को सुझाव दोनों अच्छी बातें हैं। पर विपक्ष अपने सुझावों में विवादित राजनीतिक मुद्दों को शामिल करके अच्छी भली पहल को बेपटरी कर दे रहा है। सोनिया गांधी से लेकर मल्लिकार्जुन खडग़े तक और राहुल गांधी से लेकर प्रियंका गांधी तक अपने निजी बयानों में प्रधानमंत्री से अपील में कह रहे हैं कि सेंट्रल विस्टा का काम रोक दिया जाए। इसी बात को 12 विपक्षी पार्टियों की ओर से लिखी गई चिट्ठी में भी प्रमुखता से शामिल कर दिया गया। कांग्रेस और विपक्ष को इस समय चाहिए कि वह सिर्फ कोरोना की टेस्टिंग, इलाज, बेड्स की उपलधता, दवा, वैक्सीनेशन आदि पर फोकस करे। इस समय देश के हर नागरिक को मुक्त वैक्सीन लगाने का मुद्दा अपने आप में बहुत बड़ा है। सरकार ने वैक्सीन के लिए 35 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान बजट में किया है, जिसे संसद ने मंजूरी दी है। सो, विपक्ष इसी बात के लिए दबाव बनाए कि सरकार इस 35 हजार करोड़ रुपए को खर्च करके देश के हर नागरिक को मुक्त में और जल्दी से जल्दी वैसीन लगावाए। अगर विपक्ष सिर्फ इसी बात पर एकजुट होकर जोर दे और सरकार को कठघरे में खड़ा करे तो ज्यादा बेहतर होगा और आम लोगों को उसका फायदा भी मिल सकता है। विवादित राजनीतिक मुद्दों को उठाते रहने से भाजपा और उसकी आईटी सेल को भी लोगों का ध्यान भटकाने में मदद मिलती है।