कृषि की मजबूती को प्रयास जरूरी

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कोरोना काल में जब देश को सबल देने वाले सभी पिलर एक-एक करके कमजोर पड़ रहे थे, तब खेती-किसानी ही थी, जिसने अर्थव्यवस्था को सहारा दिया। महामारी के दौर में एकमात्र कृषि ने ही वृद्धि दर्ज की। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि हम खेती और किसानों की मजबूरी के लिए हर जरूरी कदम उठाएं। ऐ हर वो प्रयास करें जिससे हमारा कृषि क्षेत्र उन्नत हो। ऐसा ही एक प्रयास बुधवार को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने खरीफ की फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढ़ाकर किया है। देश में खरीफ की फसलें उन्हें कहा जाता है जिनकी बुआई जून-जुलाई में की जाती हैं। सितंबर-अटूबर में इनकी कटाई होती है। धान, मका, ज्वार, बाजरा, मूंग, मूंगफली, गन्ना, सोयाबीन, उड़द, तुअर, कुल्थी, जूट, सन, कपास आदि को खरीफ की फसल कहा जाता है। न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी गारंटेड मूल्य है जो किसानों को उनकी फसल पर मिलता है। भले ही बाजार में उस फसल की कीमतें कम हो। इसके पीछे तर्क यह है कि बाजार में फसलों की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव का किसानों पर असर न पड़े।

उन्हें न्यूनतम कीमत मिलती रहे। सरकार हर फसल सीजन से पहले सीएसीपी यानी कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइजेस की सिफारिश पर एमएसपी तय करती है। यदि किसी फसल की बंपर पैदावार हुई है तो उसकी बाजार में कीमतें कम होती हैए तब एमएसपी उनके लिए फिस एश्योर्ड प्राइज का काम करती है। यह एक तरह से कीमतों में गिरने पर किसानों को बचाने वाली बीमा पॉलिसी की तरह काम करती है। सरकार ने तिल के समर्थन मूल्य में 452 रुपये, तुअर और उड़द दाला पर 300 रुपये बढ़ाई गई है। धान का मूल्य 1,868 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 1,940 रुपये किया गया है। कैबिनेट की बैठक में फैसला लिया गया कि बाजरे का समर्थन मूल्य 2150 रुपये से बढ़कर 2250 रुपये प्रति क्विंटल होगा। सरकार के इस फैसले ने किसानों को सीधा लाभ होगा, लेकिन केवल इतना ही काफी नहीं है। नए कृषि कानूनों को लेकर किसानों में भ्रम की स्थिति है। सरकार कहती है कि खरीद-बिक्री की मौजूदा व्यवस्था में किसी तरह के बदलाव की बात नवा कानून नहीं करता। कृषि कानून लागू होने के बाद भी एमएसपी की व्यवस्था जस की तस लागू रहेगी, लेकिन कंपनियों की खरीदारी से अपना बंधा कम रह जाने के डर से कई जगहों पर आदतियों ने अपने हाथ खींचने शुरू कर दिए हैं।

कुछ स्थानों पर कागजात को लेकर सती बढ़ जाने के चलते किसानों को अपना धान न्यूनतम समर्थन मूल्य की आधी कीमतों पर निजी व्यापारियों के हाथों बेचना पड़ा। जिस कानून का मकसद बाजार में कांपिटिशन बढ़ाकर किसानों को बेहतर मूल्य दिलाने वाले हालात पैदा करना बताया गया था, उसी से परेशान होकर किसानों दिल्ली की सीमाओं पर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। हालांकि इन आंदोलनकारियों में सवाधिक संया पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश या फिर कुछ हद तक राजस्थान के किसानों की है। यह भी कड़वी सच्चाई है कि न्यूनमत समर्थन मूल्य की घोषणा चाहे देश के हर किसान के लिए होती हो, लेकिन इस पर अमल केवल इन्हें राज्यों में हो पाता था जहां आंदोलन किया जा रहा है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि सरकार हर संभव स्तर पर आंदोलनकारियों से बातचीत शुरू करे, कम से कम अपने इरादे को लेकर उनका भरोसा हासिल करे और कृषि विशेषज्ञों के जरिये तीनों कानूनों के जमीनी असर का अध्ययन करवाए। जब किसानों के दिल से भ्रम खत्म हो जाएं तो उसके बाद ही इन कानूनों को अमल में लाया जाए।

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