दत्त पूर्णिमा आज : 24 गुरु थे भगवान दत्तात्रेय के

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इन्हें ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों ही रूप माना गया है

हर साल मार्गशीर्ष महीने की पूर्णिमा को भगवान दाात्रेय का प्राकट्य दिवस मनाया जाता है। शैव संप्रदाय के लोग इन्हें भगवान शिव का रूप मानते हैं। वहीं, वैष्णव संप्रदाय के लोग इन्हें भगवान विष्णु का रूप मानते हैं। वहीं कुछ लोग भगवान दाात्रेय को ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों का ही स्वरूप मानते हैं। दाात्रेय को नाथ संप्रदाय की नवनाथ परंपरा का भी अग्रज माना है। माना जाता है कि इनका पृथ्वी पर अवतार मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को प्रदोष काल में हुआ था, जो इस बार 29 दिसंबर मंगलवार को है। भगवान दाात्रेय के तीन सिर हैं और छह भुजाएं हैं। दाात्रेय जयंती पर इनके बालरूप की पूजा की जाती है। इनकी गणना भगवान विष्णु के 24 अवतारों में छठे स्थान पर की जाती है। भगवान दाात्रेय महायोगी और महागुरु के रूप में भी पूजनीय हैं। दाात्रेय एक ऐसे अवतार हैं, जिन्होंने 24 गुरुओं से शिक्षा ली।

महाराज दाात्रेय पूरे जीवन ब्रह्मचारी, अवधूत और दिगंबर रहे थे। मान्यता है कि वे सर्वव्यापी हैं और किसी प्रकार के संकट में बहुत जल्दी ही भक्तों पर कृपा करते हैं। दाात्रेय की उपासना में अहं को छोडऩे और ज्ञान द्वारा जीवन को सफल बनाने का संदेश है। या करें इस दिन: इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके भगवान दाात्रेय की पूजा करनी चाहिए। पूजा के बाद श्री दाात्रेय स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। इससे भगवान दाात्रेय प्रसन्न होते हैं और भक्त के सभी कष्टों को दूर करते हैं। संभव हो तो इस दिन व्रत करना चाहिए। इस दिन तामसिक आहार नहीं लेना चाहिए। पूरे दिन ब्रह्मचर्य और अन्य नियमों का पालन करना चाहिए।भगवान दाात्रेय के साथ ही भगवान विष्णु और शिवजी पूजा करनी चाहिए। पौराणिक कथा: पौराणिक कथा के अनुसार एक बार माता पार्वती, लक्ष्मी तथा सरस्वती को अपने पति व्रत धर्म पर बहुत अभिमान हो गया।

नारद जी इनका घमंड चूर करने के लिए बारी-बारी से तीनों देवियों के पास गए और देवी अनुसूया के पति व्रत धर्म का गुणगान करने लगे। ईष्र्या से भरी देवियों की जिद के कारण ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों अनुसूया जी का पति व्रत तोडऩे की मंशा से पहुंचे। देवी अनुसूया ने अपने पति व्रत धर्म के बल पर उनकी मंशा जान ली और ऋ षि अत्रि के चरणों का जल तीनों देवों पर छिड़क दिया, जिससे तीनों बालरूप में आ गए। देवी अनुसूया उन्हें पालने में लिटाकर अपने प्रेम तथा वात्सल्य से पालने लगीं। अपनी भूल पर पछतावा होने के बाद तीनों ने, देवी माता अनुसूया से क्षमा याचना की। माता अनुसूया ने कहा कि इन तीनों ने मेरा दूध पीया है, इसलिए इन्हें बालरूप में ही रहना होगा। यह सुनकर तीनों देवों ने अपने-अपने अंश को मिलाकर एक नया अंश पैदा किया, जिनका नाम दाात्रेय रखा गया।

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