परिस्थिति बदले तो चिंता जरूर करो

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लोगों में कुछ दिनों से ओवरथिंकिंग यानी जरूरत से ज्यादा सोचने की प्रवृत्ति बढ़ी है। मैं हमेशा कहता हूं कि चिता और चिंता, इन शब्दों में सिर्फ अनुस्वार का अंतर है। पर जीवन के दृष्टिकोण से देखें तो बड़ा अंतर है। चिता एक बार जलाकर खत्म कर देती है, लेकिन चिंता पल-पल जलाती रहती है। जैसे कई बार लोग जिम जाकर ट्रेडमिल पर भागते हैं। इस पर भागते तो रहते हैं, लेकिन मंजिल पर पहुंच ही नहीं रहे हैं। हमारा मन भी वैसा ही है, हमें कहीं पहुंचा नहीं रहा है, बस फैक्ट्री की तरह चल रहा है। ट्रेडमिल पर भागने से कम से कम वजन तो कम होता है। लेकिन मानसिक ट्रेडमिल भी चल रही है, जिस पर मन भागे जा रहा है। इतने सारे विचार, इतनी चिंताएं नॉन-स्टॉप चलती रहती हैं। कल क्या होगा, इसकी चिंता से आज की उम्मीद की जो खुशी है, उसे खोना नहीं चाहिए। आगे क्या होगा किसी ने नहीं देखा है। आज का पता है कि वैक्सीन आ गई है, जिसे लगवाकर, बाहर जाकर मिलनेजुलने की थोड़ी आजादी मिल सकती है। लेकिन यह वैसीन क्या दूसरे वैरिएंट पर असरदार होगी?,

यह कब तक प्रभावी रहेगी। ये सवाल मन में उठ रहे हैं। मशहूर गाना है न, ‘हर घड़ी बदल रही है रूप जिंदगी, छांव है कभी, कभी है धूप जिंदगी, हर पल यहां जीभर जियो, जो है समां कल हो न हो।’ हम कल की बात में, आज की खुशी खो रहे हैं। भविष्य की चिंताओं की यही सबसे बड़ी समस्या है। मैं यह नहीं कहता कि योजना नहीं बनानी चाहिए। लेकिन भविष्य के बारे में सोचते-सोचते, आज की जो खुशी, शांति और अनुभव हैं, उन्हें नहीं खोना चाहिए। अगर हम तथ्यों को भी देखें तो हमें पता है कि कोविड का टीका आ गया है और फिलहाल तो इस संकट का मुकाबला हम कर पा रहे हैं। आगे ऐसा होगा क्या नहीं, हम नहीं जानते। हम यह जानते हैं कि आगे कुछ मुसीबत आ सकती है, लेकिन जैसे मौजूदा मुसीबत का मुकाबला कर पाए हैं, आगे भी समाधान ढूंढ लेंगे। और अगर हम यह सोचते रहें कि आगे कोई मुसीबत आएगी, तो जिंदगी में तकलीफ तो होगी ही न। वरना मरने के बाद तो जलने का भी एहसास नहीं होता।

जीवन में कुछ न कुछ तो होगा। इसका एक दूसरा पहलू भी है- अतिउत्साह और बेफिक्री। एक दृष्टि से देखें तो यह स्वाभाविक भी है। इतने समय तक हम लॉकडाउन में अंदर रहे हैं, तो थोड़ा-सा भी मौका मिलने पर लोग उत्साहित हो ही जाते हैं। जैसे पिंजरा अचानक खोल दिया जाए, तो पंछी तो तुरंत उड़ेगा ही। लेकिन पंछी को यह भी मालूम होना चाहिए कि बाहर जो शिकारी है, वह अभी गया नहीं है। इसलिए सावधान रहना जरूरी है। हाइवे पर असर बोर्ड पर लिखा रहता है, ‘नजर हटी, दुर्घटना घटी’। हमने देखा है कि हर चीज में जैसे ही हम लापरवाह हो जाते हैं, दुर्घटना जरूर होती है। रिश्तों में तनाव कैसे आता है? छोटी-छोटी चीजों को नजरअंदाज करने से। ज्यादातर रिश्ते छोटी-छोटी बातों से टूटते हैं, लापरवाहियों से टूटते हैं। इसी तरह कामकाज में भी कितनी बड़ी-बड़ी कंपनियों में बड़ी-बड़ी गलतियां हो गईं, छोटी-छोटी चीजें नजरअंदाज करने से। अध्यात्म भी ऐसा ही है।

रामायण में विश्वामित्र की कहानी है कि राम जी के साथ जब सारे अयोध्यावासी चले गए और गुहा के राज्य में जब सभी लोग सोए हुए थे, तो राम जी निकल गए। उन लोगों में सतर्कता की कमी थी। हम अगर सतर्क नहीं रहे, तो फिर वे हमारे रिश्ते हों, पेशा क्या हमारा आध्यात्म या सेहत ही यों न हो, लापरवाही से सबकुछ बिगड़ता है। सावधानी बरतने से हमारे रिश्ते, सेहत अगर बरकरार रहते हैं, तो सावधानी बहुत जरूरी है। एक जापानी कहावत है कि ‘दूसरे अगर सही चीज़ कर सकते हैं, तो मैं भी कर सकता हूं और अगर दूसरे सही चीज़ नहीं कर सकते, तो मुझे ज़रूर करनी चाहिए।’ लेकिन हमारे यहां कभी-कभी ऐसी सोच होती है कि ‘अगर दूसरे सही चीज़ कर सकते हैं, तो मैं क्यों करूं और अगर दूसरे सही चीज़ नहीं कर सकते तो मैं कैसे कर सकता हूं?’ इसलिए हमें जिम्मेदार बनना चाहिए। अगर खुद की नहीं सोच रहे हैं, तो कम से कम अपने परिवार की, दूसरों की सोचिए। हमारी संस्कृति ऐसी है, जहां हम दूसरों के बारे में सोचते हैं। तो फिलहाल हमें जरूरत से ज्यादा सोचने से बचना है और ज्यादा उत्साह को भी नियंत्रित रखना है।

गौर गोपाल दास
(लेखक अंतरराष्ट्रीय जीवन गुरु हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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