एक दिन शिव जी माता पार्वती को बता रहे थे कि कभी-कभी तप-तपस्या का परिणाम भी कितना अनूठा निकलता है। शिव जी ने बताया, मैंने एक बार लंबे समय तक आंखें बंद करके तपस्या की। वर्षों तक आंखें नहीं खोलीं, क्योंकि आंखें खोलने से तपस्या का प्रभाव कम हो जाता है। तप करते समय मेरा मन थोड़ा विचलित हुआ और मैंने आंखें खोल लीं। चूंकि लंबे समय बाद मैंने आंखें खोली थीं तो
आंखों से आंसुओं की कुछ बूंदें गिरीं। आंसुओं की बूंदें धरती पर जहां गिरी थीं, वहां वृक्ष उग आए। इन वृक्षों का नाम रुद्राक्ष पड़ा। शिव जी ने आगे कहा, मुझे रुद्र कहते हैं और आंख को अक्ष कहा जाता है, इसलिए ये वृक्ष रुद्राक्ष कहलाया। चूंकि ये मेरे तप का परिणाम है तो रुद्राक्ष के फल वर्षों तक लोगों को बहुत अच्छा प्रभाव देते हैं। इसलिए व्यक्ति को अपनी तपस्या में सावधान रहना चाहिए।
ये तो अच्छा हुआ कि मेरे आंसुओं की बूंदें धरती पर गिरीं और उनका सदुपयोग हो गया। इस कहानी की सीख ये है कि हम जो भी तपस्या करें, कोई अच्छा काम करें तो उसके फल को समाज में बिखेर देना चाहिए। ऐसा करने से समाज का भला होगा और हमें भी संतुष्टि मिलेगी कि हमारे अच्छे कामों से समाज को लाभ मिल रहा है।