दायित्वों का निर्वहन जरूरी

0
281

कोरोना संक्रमण ने मात्र कुछ महीनों में ही सामाजिक, आर्थिक व धार्मिक स्थितियों पर अपना प्रभाव डाला है। सर्वाधिक प्रभाव आर्थिक क्षेत्र पर पड़ा है। परन्तु धार्मिक व सामाजिक क्षेत्र भी अछूते नहीं रहे। लॉकडाउन के समय स्वस्फूर्त चेतनावश लोगों ने जमकर भोजन बांटा। जबकि स्वयंसेवी संस्थाओं की भूमिका उल्लेखनीय नहीं रही। लोगों ने अपने सामथ्र्य के अनुसार एक दूसरे की सहायता की। यहां तक कि लोगों ने बेजुबान जानवरों की भी चिन्ता करते हुए उन्हें भोजन आदि दिया। इस दौरान सार्वजनिक कार्यक्रम बन्द हैं। लोग एक दूसरे के घरों पर नहीं जा रहे हैं। दोस्तों की महफिले नहीं जम रही हैं। बस मोबाइल पर हाल-चाल लिया जा रहा है। यहां तककि सामाजिकता निभाने में अग्रणी रहने वाले भारतीय अब अपने परिचितों व स्वजनों के अस्पताल में भर्ती होने पर उनका कुशलक्षेम लेने के लिए अस्पताल जाना पसन्द नहीं कर रहे हैं। ऐसा सतर्कता व संक्रमण के भय के मिश्रित कारणों से हो रहा है। यहां तककि मृत्यु होने पर औपचारिकता के नाम पर शव परिजनों को सौंपने में देरी की जाती है। इस समय कोरोना संक्रमितों का दाह संस्कार विद्युत शवदाह गृह में अधिक किया जा रहा है।

वैकुन्ठ धाम में दो मशीने थी। एक खराब थी जिसे ठीक कर लिया गया है फिर भी यहां दाह संस्कार के लिए लबी कतार लग जाती है। यही हाल राजधानी के गुलालाघाट का है। यहां विद्युत शवदाह गृह नहीं है। नगर निगम की सहमति के बाद भी अभी तक मशीन नहीं लग पायी है। एक आश्चर्यजनक बात यह है कि शवदाह गृह के कर्मचारी कोरोना संक्रमितों के दाहसंस्कार के लिए अतिरिक्त भुगतान की मांग कर रहे हैं। उधर कब्रिस्तान में पहले कोरोना संक्रमितों को दफन करने की अनुमति देने में आनाकानी की गई। अब कोरोना संक्रमितों के लिए कब्र खोदने के लिए मना करने के कई वाकया सामने आये हैं। वहीं धार्मिक गतिविधियों का भी स्वरूप बदला है। ईद-उल-अजहा के अवसर पर मजलिसे उलमा-ए-हिन्द के फेसबुक पेज और यूट्यूब के हुसैनी चैनल पर ऑनलाइन नमाज पढ़ाई जायेगी। राजधानी की ऐशबाग की रामलीला काफी प्राचीन व प्रसिद्ध है। रामलीला समिति के सचिव पं. आदित्य द्विवेदी के अनुसार इस बार रामलीला का स्वरूप बदला रहेगा। परपरागत मंचन की जगह इसका ऑनलाइन प्रसारण किया जायेगा। शादी-विवाह के स्वरूप भी बदल गये हैं।

धूम-धड़ाका व बैण्ड-बाजे की जगह शादी विवाह सादे ढंग से निपटाये जा रहे हैं। हां रस्मों का निर्वहन पूरी तरह से किया जा रहा है। संक्रमण काल में यह बात सामने आयी है कि किसी भी समस्या से लड़ाई बिना सबके सहयोग के नहीं लड़ी जा सकती। कोरोना संक्रमण में जहां काफी संया में लोगों ने निस्वार्थ भाव से काम किया है। संसाधनों की कमी की परवाह नहीं की। वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने नकली सेनेटाइजर बेचने की कोशिश की। शवदाह के लिए अतिरिक्त धनराशि की आशा की। कोविड अस्पताल के कपड़े न धुलने के लिए अस्पताल प्रशासन पर दबाव बनाया। सरकारी अस्पतालों में जगह न मिलने पर लोगों ने एबूलेंस में दम तोड़ दिया। ये घटनायें दिल को दुखा देने वाली हैं। हमें इस समय अपने दायित्वों का पूरे सामथ्र्य से निस्वार्थ भाव से निर्वहन करना चाहिये। यदि एक- एक हाथ आगे बढेंगे तो हम मुश्किल भरी परिस्थिति से निपट सकने के सक्षम होंगे। बस हमें अधिकारों पर कम ध्यान कर्तव्य पर अधिक ध्यान देना होगा। हमारा एक ही उद्देश्य होना चाहिये कि हमें कोरोना संक्रमण से मुक्ति के लिए हर सभव प्रयास करने हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here