भक्ति का मार्ग भक्त को प्रभु के निकट पहुंचा देता है। मनुष्य भक्ति के बल पर ईश्वर को इतना प्रसन्न कर लेता है कि जैसा वह चाहता है प्रभु भी उसी इच्छा का अनादर नहीं करते। जो भक्ति के मार्ग पर चलते हैं उन्हें सांसारिक मोह माया का कोई लोभ नहीं होता। वह केवल अपनी भक्ति में लीन रहता है। एक समय वह आता है जब वह प्रभु से अपनी हर इच्छा पूर्ण करा लेता है। ऐसा व्यक्ति लोगों के दु:ख दर्द भी दूर करने का प्रयास करता रहता है। इस बारे में एक कथा प्रचलित है कि किसी समय में एक नगर में एक एक बुढिय़ा माई थी। मिट्टी के गणेश जी की पूजा करती थी। रोज बनाए रोज गल जाए। एक सेठ का मकान बन रहा था। वो बोली पत्थर का गणेश बना दो। मिस्त्री बोले। जितने हम तेरा पत्थर का गणेश घड़ेंगे उतने में अपनी दीवार ना चिनेंगे। बुढिय़ा बोली राम करे तुम्हारी दीवार टेढ़ी हो जाए। अब उनकी दीवार टेढ़ी हो गई।
वो चिनें और ढा देवें, चिने और ढा देवें। इस तरह करते-करते शाम हो गई। शाम को सेठ आया उसने कहा आज कुछ भी नहीं किया। वो कहने लगे एक बुढिय़ा आई थी वो कह रही थी मेरा पत्थर का गणेश घड़ दो, हमने नहीं घड़ा तो उसने कहा तुम्हारी दीवार टेढ़ी हो जाए। तब से दीवार सीधी नहीं बन रही है। बनाते हैं और ढा देते हैं। सेठ ने बुढयि़ा बुलवाई। सेठ ने कहा हम तेरा सोने का गणेश गढ़ देंगे। हमारी दीवार सीधी कर दो। सेठ ने बुढिया को सोने का गणेश गढ़ा दिया। सेठ की दीवार सीधी हो गई। इस कथा का सार यही है कभी किसी व्यक्ति को तुच्छ नहीं समझना चाहिए क्योंकि हम उसकी उसकी आंतरिक शक्तियों का अनुभव नहीं कर सकते। दूसरा भाव यह भी है कि यदि कोई जरूरतमंद हमसे कोई सहायता चाहता है जिसका वह पात्र है तथा जो हमारे सामर्थ में है उसको पूर्ण करना चाहिए।