चीन की कारगुजारियों को लेकर पूरा देश आक्रोशित है। भारतीयों ने स्वैच्छिक रूप से चीनी उत्पदों के बहिष्कार का निर्णय लिया है जो कि देशहित में उपयुक्त है। भारत ने आजादी के आंदोलन के समय भी विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करके ब्रिटानिया हुकूमत को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। उस समय हमारी आवश्यकताएं सीमित थीं, हमारे सामने विदेशी उत्पादों का स्वदेशी विकल्प मौजूद था। साथ में वर्तमान समय की तरफ उपभोतावादी संस्कृति हावी नहीं थी। लोगों में एक भावना का संचार था। वर्तमान समय में हम तत्काल रूप में चीनी उत्पादों का पूर्ण रूप से बहिष्कार नहीं कर सकते। 2014 के बाद से लगातार चीन से आयात बढ़ा है। भारतीय कंपनियों ने अधिक मुनाफा के चकर में अपने उत्पादों के उत्पादन में चीनी कलपुर्जों का उपयोग करना शुरू कर दिया। बहुत सी कंपनियां तो अपने उत्पादों पर केवल अपना लेबल लगाती थीं। सारा सामान चीन का होता था।
कंपनियां केवल अपना लेबल लगाकर अपने गुडविल का लाभ उठाती थीं। यह प्रकृति केवल अधिक मुनाफाखोरी के कारण थी, योंकि चीनी सामानों के आयात से पहले यही कंपनियां अपने उत्पाद के सभी सामान स्वयं बनाती थीं या भारतीय कपनियां से खरीदती थीं। स्थिति यहां तक हो गई है कि फेंगशुई, पानी में कछुआ, छोटे बांस के चीनी पेड़ इत्यादि लोग घरों में शुभ के लिए रखने लगे। दीपावली पटाखे, लक्ष्मी गणेश की मूर्ति, झालर, पतंग की डोरी, चर्खी जैसे चीनी उत्पाद भी भारतीय बाजारों में पटे पड़े हैं। चीनी मांझे पर रोक के बावजूद लोग इसे खरीदते हैं। उत्पादों का हम बहिष्कार तो कर सकते हैं परन्तु जो सामान जरूरी है, उसका तत्काल बहिष्कार कैसे किया जा सकता है, जबकि चीन के व्यवहार को देखते हुए तत्काल उसे आर्थिक चोट पहुंचाने की जरूरत है। ऐसा हम चीनी उतपादों के बहिष्कार करके कर सकते हैं। परंतु हर बात सोचने वाली है कि जो देश हमारा परंपरागत विरोधी रहा हो, जिसने कई युद्ध थोपे हो।
पाकिस्तान को सैन्य व आर्थिक सहायता प्रदान करता हो। जिसने भारतीय क्षेत्र हड़प रखा हो, उस पर हम आर्थिक रूप से इतने निर्भर यों हो गए, यदि हम ध्यान दें तो पाएंगे कि नई स्टार्टअप कंपनियां जो कि 100 करोड़ से अधिक पूंजी वाली हैं, उनमें से पचास प्रतिशत कंपनियों में चीन का निवेश है। मेक इन इंडिया भी काफी हद तक चीन पर निर्भर है। ये उत्पाद भले ही भारत में बने हों, परन्तु इनमें कोई न कोई पार्टी चीन का बना होता है। प्लास्टिक का प्रचलन बहुतायत है। इसके दाने का आयात भारी मात्रा में चीन से होता है। नकली गहने, नकली मोती, श्रृंगार के सामान आदि भी चीन से आयात होते हैं। चीनी फोन व गजेट भी भारत में पसंद किये जाते हैं। यहां तक कि एप्पल व आईफोन चीन में असेबल होता है। एचपीए सैमसंग व मोटारोला के फोन व लैपटाप के डिवाइस अधिकतर चीन में बनते हैं।
गुगल व फेसबुक में चीनी कंपनियों का निवेश है। बिगवास्केट, पेटीएम, स्नैपडील, जोमैटो, वीआईजेयू, फ्लिपकार्ड, ओला, स्विगी में भी चीनी हिस्सेदारी है। कई लोकप्रिय ऐप चीनी हैं। औषधि क्षेत्र का अधिकतर कच्चा माल चीन से आता है। चीनी उत्पाद हमारे रोजमर्रा जीवन का इस तरह अंग बन गये हैं कि इनका तत्काल में पूर्ण बहिष्कार संभव नहीं है। विडबना यह है कि ऐसा नहीं है कि चीनी उत्पादों के मुकाबले हम अपना उत्पाद बाजार में नहीं ला सकते। परन्तु अधिक मुनाफा के चकर में अधिकतर उत्पादनकर्ता चीनी उत्पादों पर आश्रित हो गए। आज हम न केवल इसका सस्ता उत्पादन करके देश की पूंजी बचा रहे हैं वरन हम निर्यात करके विदेशी मुद्रा अर्जित कर रहे हैं। भारतीय उ़द्योग क्षेत्र को अगर हम बाजार दें तो हम चीनी सामान को टकर दे सकते हैं। बस हमें अधिक मुनाफाखोरी छोडऩी होगी।