जीएसटी पर केंद्र की मजबूरी 

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वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी के मुआवजे की भरपाई को लेकर केंद्र सरकार जैसे तेवर दिखा रही थी वह तेवर कौंसिल की पिछली बैठक में नहीं दिखी। सोमवार को हुई कौंसिल की बैठक में सरकार का रुख नरम रहा और बाद की प्रेस कांफ्रेंस में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि सरकार ने एक बार भी इससे मना नहीं किया है कि वह राज्यों के मुआवजे का भुगतान नहीं करेगी। उन्होंने उसी प्रेस कांफ्रेंस में यह भी कहा कि आज रात यानी सोमवार की रात को ही राज्यों को 20 हजार करोड़ रुपए जारी हो जाएंगे। सोचें, जो सरकार इस बैठक से थोड़े दिन पहले तक कहती रही थी कि केंद्र के पास पैसा नहीं है, मुआवजे के लिए जीएसटी के ऊपर लगाए गए सेस की वसूली कम हुई है और इसलिए राज्यों को रिजर्व बैंक से या किसी और वित्तीय संस्था से कर्ज लेना चाहिए, उसने तत्काल 20 हजार करोड़ रुपए जारी कर दिए।

इसका मतलब है कि सरकार जिस कानूनी दांव-पेंच के आधार पर राज्यों को दबाने का प्रयास कर रही थी वह बहुत कारगर नहीं लग रहा है। असल में केंद्र सरकार ने देश के सबसे बड़े कानूनी अधिकारी अटॉर्नी जनरल से राय मांगी थी। उन्होंने राय दी थी कि केंद्र सरकार मुआवजे का भुगतान करने को बाध्य नहीं है। उन्होंने इसके लिए कानून में एक लूपहोल निकालते हुए कहा था कि कानून में नहीं लिखा है कि अगर मुआवजा देने के लिए लगाए गए सेस की वसूली कम होती है तो केंद्र सरकार पैसा अपने पास से देगी। इस आधार पर केंद्र ने तेवर दिखाए थे।

इसके बाद केंद्र सरकार ने कांग्रेस और दूसरे विपक्षी शासन वाले राज्यों पर दबाव बनवाने के लिए अपने शासन वाले राज्यों और अपनी सहयोगियों पार्टियों व सद्भाव रखने वाली पार्टियों के शासन वाले राज्यों से कर्ज के विकल्पों पर सहमति लेनी शुरू कर दी। कोई 20 राज्यों ने केंद्र सरकार की ओर से सुझाए गए कर्ज लेने के मॉडल पर सहमति दे दी। केंद्र ने कहा था कि राज्य मुआवजे की रकम के बराबर कर्ज ले लें और जीएसटी सेस की वसूली का पैसा आने पर उससे वह कर्ज चुका दें। इस विपक्षी राज्य सरकारों ने कहा कि कर्ज केंद्र सरकार ले और वहीं चुकाए। इससे बचने के लिए केंद्र ने यह तकनीकी पहलू उठाया कि राज्यों के हिस्से वाले कर के ऊपर कर्ज लेना है इसलिए केंद्र यह कर्ज नहीं ले सकती है।

असल में जीएसटी कानून का मसौदा तैयार करने वाले वित्त मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह ने मुआवजे का प्रावधान किया था। कहा गया कि अगर 2015-16 में राज्यों को मिले कर राजस्व के ऊपर हर साल 14 फीसदी की बढ़ोतरी नहीं होती है तो उससे राज्यों को होने वाले नुकसान की भरपाई केंद्र सरकार करेगी। इसके लिए जीएसटी के ऊपर मुआवजा सेस भी लगाया गया। लेकिन पिछले साल से ही अर्थव्यवस्था की हालत खराब होने लगी और मुआवजा सेस की वसूली कम होने लगी। कोरोना का संकट आने के बाद तो वसूली पूरी तरह से खत्म हो गई। तभी राज्य सरकार मुआवजा चुकाने में आनाकानी कर रही है।

ऊपर से सरकार ने राजस्व की कमी को दो हिस्सों में बांट दिया है। एक हिस्सा मुआवजा सेस की कम वसूली है, जो रकम 97 हजार करोड़ की है। दूसरा हिस्सा एक लाख 38 हजार करोड़ रुपए का है, जिसके बारे में सरकार कह रही है कि कोरोना वायरस की वजह से जीएसटी कानून के अमल में दिक्कत आई है और इसकी वजह से वसूली कम हुई है। विपक्षी राज्य इसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि जीएसटी कानून पर अमल का काम केंद्र सरकार का है। इसलिए इस वित्त वर्ष में पूरी दो लाख 35 हजार करोड़ रुपए की संभावित कमी का जिम्मा केंद्र सरकार ले और राज्यों को इसका भुगतान करे।

इस पर विचार के लिए 12 अक्टूबर को फिर से जीएसटी कौंसिल की बैठक होनी है। विपक्षी शासन वाले राज्य किसी दबाव में नहीं आए हैं और वे इस मांग पर अड़े हैं कि केंद्र सरकार कर्ज ले। केंद्र सरकार की कर्ज लेने की क्षमता ज्यादा है और जीएसटी कानून की तरफदारी करते हुए उस समय के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कई बार कहा था कि केंद्र को कम ब्याज पर कर्ज मिल सकता है। तो केंद्र को कर्ज लेना चाहिए और राज्यों के नुकसान की भरपाई करनी चाहिए। पर केंद्र यह रास्ता खोलने से इसलिए हिचक रही है क्योंकि उसे पता है कि आने वाले दिनों में भी अर्थव्यवस्था की स्थिति सुधरनी नहीं है। आखिर कोरोना से बहुत पहले 2018 के आखिरी दिनों में ही हालात बिगड़ने लगे थे। ऐसे में अगर अगले दो साल तक स्थिति नहीं सुधरती है तो केंद्र को बहुत कर्ज लेना होगा। इसलिए वह अपना पिंड छुड़ाना चाहती है।

दूसरी ओर कांग्रेस और विपक्षी पार्टियों के शासन वाले खुद कर्ज लेने के पूरी तरह खिलाफ हैं और चाहते हैं कि केंद्र कर्ज ले। पश्चिम बंगाल, पंजाब, छत्तीसगढ़, केरल, दिल्ली, तेलंगाना, तमिलनाडु, पुड्डुचेरी आदि ने चिट्ठी लिख कर कर्ज लेने के विकल्प का विरोध किया है। कई ऐसे राज्य भी हैं, जिन्होंने केंद्र के दबाव में कर्ज लेने का विकल्प चुन तो लिया है पर चाहते हैं कि जीएसटी कौंसिल में इसे खारिज कर दिया जाए। जीएसटी कानून के मुताबिक अगर उसमें कोई प्रस्ताव पास करना है या किसी तरह का बदलाव करना है तो कम से कम 20 राज्यों का समर्थन चाहिए होगा। केंद्र सरकार नहीं चाहती है कि कौंसिल की बैठक में वोटिंग की नौबत आए। वोटिंग की नौबत आने पर अभी तक सरकार का साथ दे रहे कुछ राज्य पीछे हट सकते हैं, जिससे केंद्र की किरकिरी होगी। तभी मजबूरी में केंद्र सरकार ने पहली किश्त जारी की है और विपक्ष की बात नए सिरे से सुनने पर राजी हुई है।

अजित कुमार
(लेखक पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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