उभरती अर्थव्यवस्थाओं ने विकसित होने के लिए 2010 के दशक में संघर्ष किया और अब उन्हें निराशावाद दबा रहा है। लोग हैरत में हैं कि डी-ग्लोबलाइजेशन के दौर में वे कैसे महामारी के दौरान का कर्ज चुकाएंगी और कैसे पहले जैसी गति से विकसित होंगी। इस पहेली का एक समाधान है तेजी से बढ़ी डिजिटल क्रांति। विकासशील देश अब कम से कम कीमत में आधुनिक विशेषज्ञता अपना रहे हैं, जिससे वे घरेलू मांग पूरी और प्रगति में पारंपरिक बाधाओं को पार कर पा रहे हैं।
पिछले एक दशक में दुनिया में स्मार्टफोन धारक 15 करोड़ से 4 अरब हो गए हैं। यानी आधी दुनिया जेब में कम्प्यूटर लेकर घूमती है। दुनिया का सबसे बड़ा उभरता बाजार पहले ही डिजिटल विशेषज्ञता के परिवर्तनकारी नतीजे दिखा चुका है। जब पिछले एक दशक में चीन के रस्टबेल्ट उद्योगों (स्टील, कोयला उद्योग आदि) में तेज गिरावट आई, तब टेक सेक्टर ने आर्थिक तंत्र बचाया। अब चीन के उभरते बाजार के दोस्त ऐसे ही डिजिटल इंजन से आगे बढ़ रहे हैं।
वर्ष 2014 के बाद से करीब 10 हजार टेक कंपनियां उभरते बाजारों में लॉन्च हुईं और इनमें लगभग आधी चीन से बाहर हैं। बांग्लादेश से लेकर मिस्र तक, ऐसे आंत्रप्रेन्योर हैं, जिन्होंने गूगल, एफबी जैसी अमेरिकी कंपनियों में काम किया और फिर घर लौटकर खुद की कंपनी शुरू की। सर्च के लिए रूस में, किराए की टैक्सी के लिए इंडोनेशिया में और डिजिटल फंड के लिए केन्या में स्थानीय कंपनियों का दबदबा है। यह डिजिटल क्रांति उभरती अर्थव्यवस्थाओं में उतनी ही आगे हैं, जितनी विकसित में।
सकल घरेलू उत्पाद में डिजिटल कंपनियों से कमाई की बड़ी हिस्सेदारी वाले 30 देशों में से 10 उभरती दुनिया के हैं। उदाहरण के लिए इंडोनेशिया इसमें फ्रांस या कनाडा से भी आगे है। 2017 के बाद से विकसित देशों की 11% बढ़त की तुलना में, उभरते देशों में डिजिटल आय 26% की वार्षिक गति से बढ़ रही है। ऐसा क्यों है कि गरीब देश, अमीरों की तुलना में तेजी से डिजिटल तकनीक अपना रहे हैं? एक कारण आदत और इसकी गैरमौजूदगी है।
पक्की दुकानों और कंपनियों से भरे समाजों में ग्राहक अक्सर मौजूदा प्रदाताओं से सहज हो जाते हैं और उन्हें छोड़ते नहीं। ऐसे देशों में, जहां लोगों को बैंक या डॉक्टर खोजने में भी मुश्किल होती है, वे सामने आने वाला पहला डिजिटल विकल्प चुन लेते हैं। बाहरियों को कम सेवाएं पाने वाली आबादियों पर डिजिटल सेवाओं का असर समझने में मुश्किल होती है। जिन देशों में स्कूल, अस्पताल और बैंकों की कमी है, वहां ऑनलाइन सेवाएं स्थापित कर कमी काफी हद कर पूरी की जा सकती है।
हालांकि केवल 5% केन्याईयों के पास क्रेडिट कार्ड है, लेकिन 70% डिजिटल बैंकिंग इस्तेमाल करते हैं। कई जगहों पर ‘डिजिटल बंटवारा’ कम हो रहा है। ज्यादातर बड़े देश, जिनमें इंटरनेट सब्सक्रिप्शन तेजी से बढ़ रहे हैं, वे उभरती दुनिया के हैं। पिछले दशक में जी20 देशों के इंटरनेट यूजर दोगुने हुए हैं, लेकिन सबसे ज्यादा संख्या ब्राजील और भारत जैसे विकासशील देशों में बढ़ी है। संवहनीय आर्थिक वृद्धि के लिए जरूरी उत्पादकता पर डिजिटल प्रभाव को जमीनी स्तर पर देख सकते हैं।
कई सरकारें, सेवाएं ऑनलाइन ला रही हैं, जिससे पारदर्शिता बढ़ी है और भ्रष्टाचार का खतरा कम हुआ है, जो शायद विकासशील दुनिया में बिजनेस में सबसे बड़ा डर है। साल 2010 के बाद से बिजनेस शुरू करने की लागत विकसित देशों में स्थिर है, जबकि उभरते देशों में औसत वार्षिक आय के 66% से गिरकर 27% पर आ गई है।
आंत्रप्रेन्योर अब कम खर्च में बिजनेस शुरू कर सकते हैं। यह तो अभी शुरुआत है। जैसा कि अर्थशास्त्री कार्लोटा पेरेज बताते हैं कि टेक क्रांति लंबी चलती है। कार और भाप इंजन जैसे इनोवेशन आधी सदी बाद तक भी अर्थव्यवस्थाओं को बदल रहे थे। तेजी से डिजिटाइजेशन का युग तो अभी शुरू ही हुआ है।
रुचिर शर्मा
(लेखक अर्थजगत से जुड़े हैं ये उनके निजी विचार हैं)