अप्रैल के पहले सप्ताह में अमेरिकी नौसेना के सातवें बेड़े के विध्वंसक युद्धपोत गाइडेड मिसाइल डिस्ट्रॉयर यूएसएस जॉन पॉल जोंस ने विशेष आर्थिक क्षेत्र वाले भारतीय समुद्री इलाके से होकर गुजरने का दुस्साहस तो किया ही, अपमानित करने वाले लहजे में यह भी कहा गया कि अमेरिका ने इसके लिए भारत से इजाजत लेने की जरूरत नहीं समझी। भारत के आंगन में घुसने और इसके लिए कोई अनुमति नहीं लेने की बात चिल्लाकर कहने का अमेरिकी फैसला भारत-अमेरिका सामरिक साझेदारी को भी शक के दायरे में खड़ा करेगा। इस घटना ने 1971 के उन दिनों की याद दिला दी, जब भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान का पक्ष लेते हुए अमेरिका ने सातवें बेड़े के ही युद्धपोत यूएसएस एंटरप्राइज को बंगाल की खाड़ी में भेज दिया था। हालांकि वह शीतयुद्ध का दौर था। इसलिए अमेरिका द्वारा सीटो (साउथ ईस्ट एशिया ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन) और सेंटो (सेंट्रल ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन) के संकट में पड़े अपने साथी पाकिस्तान के लिए खड़े हो जाना स्वाभाविक था। आज जब भारत और अमेरिका पूरी तरह बदले हुए भूराजनीतिक समीकरण में नवगठित चतुर्पक्षीय गुट क्वाड्रीलैटरल फ्रेमवर्क यानी क्वाड के साझेदार देश हैं, जिसका इरादा मिलकर चीन की दादागीरी से मुकाबला करना है, तो उसने भारत को दुनिया की नजरों में नीचा दिखाने वाला कदम क्यों उठाया?
खासकर तब जब अमेरिका हिंद-प्रशांत और क्वाड की अपनी नई समर नीति के संचालन में भारत की केंद्रीय भूमिका देखता है। रोचक बात यह भी है कि अपने घोषित दोस्त और सामरिक साझेदार भारत के इलाके में अवैध घुसपैठ करने का काम अमेरिका ने तब किया, जब करीब एक महीना पहले ही अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन के साथ भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान के प्रधानमंत्रियों ने शिखर बैठक करके अपने सामरिक और आर्थिक हितों की रक्षा के लिए सामूहिक तालमेल के साथ चलने का संकल्प लिया था। इसके दो सप्ताह बाद 25 मार्च को अमेरिकी रक्षा मंत्री ऑस्टिन ने भी भारत का दौरा कर उसके साथ अमेरिकी सामरिक साझेदारी को गहरा करने का संकल्प जाहिर किया। भारतीय सामरिक हलकों में यह विश्वास पैदा किया कि अमेरिका भारत का भरोसेमंद और समकक्ष साझेदार बन चुका है। भारत के सुरक्षा कर्णधार भले ही इस कृत्य को नजरअंदाज करते हुए अमेरिका सहित क्वाड के अन्य साझेदार देशों के साथ सहयोगी रिश्तों को गहरा करने की दिशा में आगे बढ़ते रहें, लेकिन भारतीय जनमानस इसे अब स्वीकार करने में संकोच करेगा कि क्वाड से भारत के सामरिक हित सधेंगे। यह धारणा मजबूत होगी कि अमेरिका क्वाड का इस्तेमाल केवल अपनी वैश्विक दादागीरी चमकाने के लिए करना चाहता है।
अमेरिका ने भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र में अतिक्रमण को इस आधार पर जायज ठहराया है कि ऐसा अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत किया गया है। लेकिन अमेरिका ने इस कानून से जुड़ी समुद्री संधि अनक्लास (यू एन कन्वेंशन ऑन लॉ ऑफ द सी) पर दस्तखत ही नहीं किए हैं। इस संधि में लिखा है कि कोई भी देश दूसरे देश के विशेष आर्थिक क्षेत्र वाले तटीय इलाके में सैन्य घुसपैठ नहीं करेगा। इस संधि पर भारत और चीन ने दस्तखत किए हैं। इसके बावजूद चीन के युद्धपोत भारतीय समुद्री आर्थिक इलाके के दो सौ मील के अंदर घुस आते हैं तो भारत उन्हें खदेड़ देता है। अमेरिका ने यह तर्क दिया है कि ऐसा कर वह अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत अंतरराष्ट्रीय समुद्री इलाके में नौवहन की आजादी को सुनिश्चित करना चाहता है। भले ही अमेरिका ऐसा कर चीन को यह संदेश देना चाहता हो कि वह मित्र भारत के समुद्री इलाके में उसी तरह अपने पोत भेजता है जैसे कि दक्षिण चीन सागर के चीन के निकट के समुद्री इलाके में, लेकिन अमेरिका को दोस्त और दुश्मन में भेद करना सीखना होगा। भारत ने अमेरिकी नौसेना की इस हरकत पर केवल चिंता ही जाहिर की, विरोध नहीं किया। शायद भारत की प्राथमिकता अभी अपने सामने खड़े दुश्मन चीन से निबटने की है।
इसलिए वह अमेरिका के साथ सामरिक साझेदारी और क्वाड में अपनी भागीदारी को अधिक अहमियत देता है भले ही अमेरिकी हरकत के बाद वह क्वाड में अमेरिका का जूनियर पार्टनर दिखे। अमेरिका के इस कदम के बाद भविष्य में क्वाड की सामूहिक गतिविधियों के दौरान यह सवाल पीछा नहीं छोड़ेगा कि अमेरिका ने क्वाड में अपने अहम सामरिक साझेदार को दुनिया की नजरों में नीचा दिखाया। चीन की आर्थिक और सामरिक दादागीरी से मुकाबला करना है तो भारतीय सुरक्षा कर्णधारों के सहयोग के साथ भारतीय जनमानस का भी नैतिक समर्थन लेने की जरूरत होगी। अमेरिका को यह देखना होगा कि भारत अब 1971 वाला देश नहीं रहा। भारत के साथ सामरिक साझेदारी का रिश्ता बराबरी की भावना के तहत ही विकसित किया जा सकता है। वास्तव में अमेरिका के इस कदम से चीन की दादागीरी के खिलाफ लडऩे की मुहिम पर भी चोट पहुंचेगी। चीन से अमेरिका सहित विश्व समुदाय यह अपेक्षा करता है कि वह अंतरराष्ट्रीय समुद्री नियमों एवं व्यवस्थाओं का पालन करे तो अमेरिका से भी वही अपेक्षा की जाएगी। अमेरिका को भी खुद समुद्री नियम तय करने वाली संधि का पालन करना होगा, तभी क्वाड जैसे गुट की सार्थकता दिखाई देगी। अमेरिका द्वारा अपने दोस्त भारत के साथ की गई इस बदसलूकी से दुश्मन चीन को भी दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीपों को बनाने वाले विस्तारवादी कारनामों पर पर्दा डालने का बहाना मिलेगा।
रंजीत कुमार
(लेखक रक्षा व विदेश नीति के विश्लेषक हैं ये उनके निजी विचार हैं)