अक्षय तृतीया एवं भगवान परशुराम जयन्ती – 14 मई , शुक्रवार को

0
268

भगवान श्रीविष्णु – लक्ष्मीजी की होती है विशेष पूजा – अर्चना अक्षय पुण्यफल की प्राप्ति के लिए किया जाता है व्रत – उपवास और दान – पुण्य अक्षय तृतीय पर किए गए दान-पुण्य से जीवन में मिलती है सुख-समृद्धि, खुशहाली


भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में अक्षय पुण्यफल की कामना के लिए मनाये जाने वाला पर्व अक्षय तृतीया वैशाख शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि के दिन हर्षोल्लास के साथ मनाने की धार्मिक परम्परा है। पौराणिक मान्यता के अनुसार अक्षय तृतीया से ही तायुग का प्रारम्भ हुआ था। इस दिन भगवान परशुराम जी भगवान विष्णु के अंश के रूप में अवतरित हुए थे, जिसके फलस्वरूप भगवान परशुराम जयन्ती मनाने की पौराणिक परम्परा है। प्रख्यात् ज्योतिषविद् श्री विमल जैन ने बताया कि अक्षय पुण्यफल की कामना के संग मनाये जाने वाला पर्व अक्षय तृतीया 14 मई, शुक्रवार को मनाया जाएगा। वैशाख शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि 14 मई, शुक्रवार को प्रात: 5 बजकर 39 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 15 मई, शनिवार को प्रात: 8 बजकर 00 मिनट तक रहेगी। फलस्वरूप 14 मई, शुक्रवार को उदया तिथि में तृतीया तिथि होने से अक्षय तृतीया का पर्व इसी दिन मनाया जाएगा। इस दिन भगवान श्री लक्ष्मीनारायण की प्रसन्नता के लिए व्रत एवं उपवास रखकर यह पर्व मनाने की धार्मिक व पौराणिक मान्यता है। ‘अक्षय’ का वास्तविक अर्थ है, जिसका कभी क्षय न होता हो। इस तिथि के दिन किए गए समस्त कार्यों का प्रभाव अक्षय हो जाता है। ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि अक्षय तृतीया को ‘अबूझ मुहुर्त की मान्यता प्राप्त है। इस दिन नवीन व्यवसायिक प्रतिष्ठान के शुभारम्भ, मांगलिक आयोजन, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत, नामकरण संस्कार, वैवाहिक एवं समस्त मांगलिक व धार्मिक आयोजन की परम्परा है। पूजा का विधान-ज्योतिर्विद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि विष्णु धर्मोत्तर पुराण के मुताबिक जो व्यक्ति अक्षय तृतीया का व्रत करता है, उसे सभी तीर्थों का फल प्राप्त हो जाता है। भगवान श्रीकृष्ण का कथन है कि अक्षय तृतीया के दिन स्नान-दान, जप-तप, पितृ तर्पण, हवन आदि जो भी धार्मिक कृत्य किया जाता है, वह सब अक्षय हो जाता है। इस दिन व्रतकर्ता को चाहिए कि प्रात:काल स्नान ध्यान करके अक्षय तृतीया के व्रत का संकल्प लेकर विधि-विधान से पूजा-अर्चना करना चाहिए। अक्षय तृतीया के दिन भगवान नर नारायण, श्री परशुराम, हयग्रीव जी भूलोक (पृथ्वी) पर अवतरित हुए थे। इनकी महिमा में व्रत उपवास रखकर विधि-विधानपूर्वक पूजा अर्चना करने से अक्षय पुण्यफल की प्राप्ति होती है। किस भगवान की होगी पूजा-इस दिन भगवान श्री विष्णु, लक्ष्मीजी तथा कृष्णजी की पंचोपचार या दशोपचार अथवा षोडशोपचार पूजन करने का विधान है। किस पुष्प से प्रसन्न होंगे भगवान-शिवपुराण में बताया गया है कि भगवान शिव और माता पार्वती जी की मालती, मल्लिका, जवा, चम्पा एवं कमल के पुष्पों से पूजा-अर्चना करने पर मनुष्य के कोटि-कोटि जन्म के तन-मन-वचन से किए गए महापाप भी नष्ट हो जाते हैं। किस देवी-देवता को क्या-क्या करें अर्पित-श्री विमल जैन जी के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन भगवान श्रीपरशुराम को ककड़ी, हयग्रीवजी को चने की भीगी दाल, नर-नारायणजी को भुने हुए सत्तू से निर्मित नैवेद्य अर्पित करके धूप-दीप के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए। ब्राह्मण को किन वस्तुओं का करें दान-पूजा-अर्चना के पश्चात् भूदेव (ब्राह्मण) को जल से भरा हुआ कलश, नवीन वस्त्र, पंखा, खड़ाऊं, छाता, चावल, दही, सत्तू, खरबूजा, तरबूज, जौ, गेहूँ, चना, दूध, गुड़ तथा अन्य उपयोगी वस्तुएँ नकद दक्षिणा के साथ दान देने से अक्षय पुण्यफल की प्राप्ति होती है। अक्षय तृतीया के दिन स्नान, ध्यान के बाद दोपहर से पूर्व दान करना चाहिए। दान की वस्तुओं के साथ नकद द्रव्य (दक्षिणा) भी देना चाहिए। इसके अतिरिक्त स्वर्ण एवं रजत धातु की वस्तुएँ तथा ग्रीष्म ऋतु में प्रयोग में आनेवाली अन्य वस्तुओं का गुप्त दान करने का विशेष महत्व है। अक्षय तृतीया के दिन पीले रंग के परिधान एवं आभूषण धारण करना विशेष लाभकारी रहता है।

अक्षय पुण्यफल की प्राप्ति के लिए राशि के अनुसार करें दान

मेष-भूदेव (ब्राह्मण) को जौ एवं सत्तू से निर्मित पदार्थ, गेहूँ एवं सत्तू।

वृषभ-ब्राह्मण (भदेव) को ऋतुफल जैसे-तरबूज, खरबूजा, ककड़ी एवं अन्य फल तथा जल से पूरित तीन घट एवं दूध।

मिथुन-ब्राह्मण को हरा मूंग, खीरा, ककड़ी, सत्तू एवं अन्य हरे रंग के पदार्थ ।

कर्क-साधु को जल से पूरित घट, दूध, मिश्री का दान तथा किसी गरीब व्यक्ति को छाता।

सिंह-शिव मंदिर में सत्तू, जौ एवं गेहूँ के आटे से निर्मित पदार्थ।

कन्या-किसी मंदिर के पुजारी को खीरा, तरबूज, ककड़ी।

तुला-ब्राह्मण को श्वेत पदार्थ जैसे-मिश्री, दूध एवं खोवे से निर्मित मिष्ठान्न ।

वृश्चिक-ब्राह्मण को जल से भरा हुआ घट, पंखा, लाल रंग के मिष्ठान्न ।

धनु-शिव मंदिर में चने की दाल से निर्मित पदार्थ, बेसन से बने पदार्थ, सत्तू तथा ऋतुफल।

मकर-ब्राह्मण को जल से पूरित घट, मिष्ठान्न एवं दूध।

कुम्भ-गरीब व्यक्ति को जल से पूरित घट, ऋतुफल एवं गेहूँ व सत्तू तथा चना।

मीन-किसी ब्राह्मण या मंदिर के पुजारी को बेसन से बने पदार्थ, सत्तू, पीले रंग के मिष्ठान्न तथा खड़ी हल्दी की गाँठ।
ज्योतिर्विद श्री विमल जैन

– ज्योतिर्विद् श्री विमल जैन

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here