मेरठ। कहावत है कि इंसान कोई गलत नहीं होता, वक्त खराब होता है। वक्त जब सही हो तो हाथ में रेत भी सोना बन जाता है, खराब हो तो फिर ऊपरवाले की बिना आवाज की लाठी सारा साज बिगाड़ देती है। अब चाहे मेरठ के लोग जो कहें लेकिन क्रिकेट जगत में शहर का नाम सबसे ज्यादा प्रवीण कुमार ने ही रोशन किया था। अब उन्हीं प्रवीण कुमार को बुरा-भला कहने वालों की भी कमी नहीं लेकिन हर किसी के लिए ये खबर धक्का पहुंचाने वाली जरूर रही और किसी को भी भा नहीं रही है कि प्रवीण कुमार आत्महत्या की सोचने व ऐसा करने के लिए घर से निकल गए थे। शहर के हर तबके के लोग यही चाहते हैं कि वो फिर से लौटें और फिर अच्छे कामों से शहर की जनता का दिल भी जीतें और बाकी युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बनें। खुद पी के ने भी कहा है कि वो लौटकर आएगा। स्विंग के लिए मशहूर प्रवीण कुमार ने भारत के लिए 68 वनडे, छह टेस्ट और 10 टी20 इंटरनेशनल मैच खेले थे। प्रवीण कुमार ने अपना आखिरी मुकाबला 2012 में खेला था। 2018 में उन्होंने हर तरह की क्रिकेट से संन्यास ले लिया था।
प्रवीण कुमार के हाथ में गेंद, हवा में घूमी और बल्लेबाज के स्टंप उड़ गए। साल 2008 में ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर ऐसी कमेंट्री दुनिया ने सुनी और मजबूत ऑस्ट्रेलियाई बैटिंग ऑर्डर को घुटने टेकते देखा। प्रवीण कुमार की कहर बरपाती स्विंग गेंदों ने भारत को ऑस्ट्रेलिया में ऐतिहासिक सीबी सीरीज जिताई। दूसरे फाइनल मैच में प्रवीण कुमार चार विकेट लेकर मैन ऑफ द मैच भी बने। टूर्नामेंट के चार मैचों में 10 विकेट। 2011 में वनडे वल्र्ड कप था। टीम में जगह पाने के दावेदार थे। लेकिन टूर्नामेंट से ठीक पहले डेंगू की वजह से बीमार हो गए। बाद में प्रवीण डेंगू से तो उबर गए लेकिन उनका कैरियर इस झटके से नहीं उबर पाया। प्रवीण कुमार एक समय इंडियन पेस अटैक की जान हुआ करते थे। शुरुआती ओवरों में विकेट निकालने का उनका टैलेंट बेजोड़ था। लेकिन इसके बाद ये होनहार क्रिकेटर खोता चला गया। प्रवीण कुमार ने भारतीय टीम के साथ-साथ आईपीएल में भी कई फ्रैंचाइजी टीमों के साथ खेला है।
प्रवीण कुमार फिलहाल इस वजह से चर्चा में हैं क्योंकि मेरठ के इस स्विंग के बादशाह के बारे में मीडिया में सोमवार को ये खबर तैरती रही कि उन्होंने एक मीडिया इंटरव्यू में दिल के सारे राज भी खोले और साथ में ये भी बोले कि वो आत्महत्या करने की सोचने लगे थे। प्रवीण कुमार ने वो वाकया भी बताया, जब वे अपना रिवॉल्वर लेकर सुसाइड करने निकल गए थे। कुछ महीने पहले की बात है, एक सुबह जब मेरठ में उनकी फ़ैमिली सोई थी, प्रवीण कुमार ने मफ़लर बांधा, रिवॉल्वर रखा और अपनी कार लेकर हरिद्वार के रास्ते निकल गए। इंडिया के लिए खेले लंबा वक्त गुजऱ चुका था। शोहरत अचानक से खत्म हो गई थी। यकायक भुला दिए जाने की कसक प्रवीण कुमार के मन में घर कर गई थी। उन्होंने अपने मन में कहा कि अब पूरा किस्सा खत्म करते हैं। फिर उनकी नजऱ कार में लगी अपने बच्चों की तस्वीर पर गई। बच्चों का ख्याल आया तो प्रवीण कुमार होश में आए। उन्होंने सुसाइड का इरादा छोड़ा और वापस लौट आए। जिस उम्र में क्रिकेटर खुद को साबित करने के लिए मैदान पर अपनी जान लगा देते हैं, प्रवीण कुमार दवाईयों के सहारे अपनी जि़ंदगी संवारने की कोशिश कर रहे हैं।
किससे क्या कहें: भारत में डिप्रेशन का कॉन्सेह्रश्वट ही कहां होता है? इसके बारे में कोई नहीं जानता और मेरठ में बिलकुल भी नहीं। मैं किसी से बात नहीं कर सकता था, मुझे हमेशा चिड़चिड़ापन महसूस होता था। मैंने
अपने कॉउन्सलर को बताया कि मैं अपने विचारों पर नियंत्रण नहीं कर पा रहा हूं। उन्होंने कहा कि एक दौर में मैं अच्छी गेंदबाजी कर रहा था। इंग्लैंड में सबने मेरी तारीफ की। मैं टेस्ट करियर के बारे में सोचने लगा था।
अचानक सब कुछ गया। मुझे लगा कि सबने यही सोचा कि पीके रिटायर हो गया था, वह फ्री नहीं है। क्या किसी को पता है कि उत्तर प्रदेश रणजी टीम के पास कोई बोलिंग कोच नहीं है? मुझे टीम के साथ होना चाहिए था
ना कि यहां मेरठ में बैठा होना चाहिए था।
परेशान हो गया था: विराट कोहली के कैरियर में भी एक ऐसा दौर आया था। उनके बल्ले से रन नहीं निकल रहे थे। वो मेंटली परेशान थे। लेकिन अपना दर्द शेयर नहीं कर पाए और खेलना जारी रखा।नवंबर 2019 में जब
ऑस्ट्रेलिया के स्टार ऑलराउंडर ग्लेन मैकसवेल ने डिप्रेशन की वजह से क्रिकेट से ब्रेक लिया, उनके इस कदम की विराट कोहली ने तारीफ की थी। कुमार बताते हैं कि अवसाद के लक्षण 2014 के आस-पास ही दिखने लगे थे। टीम इंडिया से ड्रॉप किए गए और बीसीसीआ ई का कॉन्ट्रेक्ट भी नहीं मिला था। वो मेरठ के अपने घर में चुपचाप रहने लगे थे। अपने कमरे में बंद। अकेले ही अपनी गेंदबाजी के वीडियोज देखा करते थे। घंटों तक पंखे को एकटक घूरते हुए लेटे रहते थे। अपना दुखड़ा किसी से बांट भी नहीं पाते थे।
लौटूंगा जरूर: अपनी बात आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा, कुछ महीने पहले तक मुझे अपने आप से डर लगता था। बुरे वक्त का आप पर यही असर होता है। अगर कोई मेरे फोन का जवाब नहीं देता था तो मुझे बहुत बुरा लगता था। मैं खुद को निगलेक्टेड समझता था। यह मुझे अंदर ही अंदर खा जाता था। 2019 में मुझे उत्तर प्रदेश अंडर-23 टीम का गेंदबाजी कोच बनाया गया लेकिन स्थिति मुताबकि नहीं थी, तो वो पोस्ट भी छोडऩी पड़ी। कोई अपनी फैमिली से कितनी बातें कर सकता है? मैं हमेशा से लोगों से घिरा रहा हूं। सड़क पर चलते हुए सलाम दुआ हो गई। अब मुझे किसी से बात करनी होती है तो अपने रेस्टोरेंट जाना पड़ता था। अच्छी बात यह है कि बुरा वक्त बीत चुका है। वादा करता हूं कि पीके फिर वापस आएगा।
इनकी किस्मत खराब थी: प्रवीण कुमार की किस्मत अच्छी थी कि उन्होंने खुद पर काबू कर लिया, लेकिन कुछ क्रिकेटर खुशकिस्मत नहीं रहे। एक क्रिकेटर ने तो डिप्रेशन की वजह से अपनी जान दे दी और कईयों के
क्रिकेट कैरियर के डिप्रेशन की वजह से मौत हो गई।
बेयरस्टो की खुदकुशी: जॉनी बेयरस्टो ये एक ऐसा नाम है जिसने साल 2019 वल्र्ड कप में रनों का अंबार लगा दिया और इंग्लैंड को पहली बार वल्र्ड चैंपियन भी बनाया। लेकिन आपको पता है कि बेयरस्टो के पिता का जीवन डिप्रेशन ने ही छीन लिया। डेविड बेयरस्टो ने इंग्लैंड के लिए क्रिकेट खेला वो बेहतरीन खिलाड़ी थे लेकिन पत्नी जैनेट की बीमारी की वजह से वो डिप्रेशन का शिकार हो गए। डिप्रेशन की वजह से डेविड बेयरस्टो शराब पीकर गाड़ी चलाते हुए पकड़े गए, उनके घर में आर्थिक तंगी आ गई और 1997 में उन्होंने खुद को फांसी पर लटका दिया।
मार्कस ट्रेसकॉथि: इंग्लैंड के लिए 76 टेस्ट मैच और 123 वनडे मैच खेलने वाले मार्कस ट्रेस्कॉथिक अपने जमाने के बेहतरीन ऑलराउंडर्स में से एक थे लेकिन अचानक साल 2006 में उन्होंने महज 32 साल की उम्र में
इंटरनेशनल क्रिकेट को अलविदा कह दिया, जिसकी वजह था डिप्रेशन।