कुश्ती में फिर होगा विवाद ?

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नए साल की शुरुआत के साथ ही देश में तोक्यो ओलिंपिक की तैयारी ने जोर पकड़ ली है। इस बार भी पिछली बार की तरह इंडियन ओलिंपिक असोसिएशन और विभिन्न खेल फेडरेशन मेडल की भविष्यवाणी करने में लग गए हैं। इन सबके बीच एक चीज जो कॉमन है वह है ओलिंपिक से पहले होने वाला विवाद। दिलचस्प है कि एक बार फिर इसके केंद्र में देश के सबसे सफल ओलिंपियन सुशील कुमार आते हुए दिख रहे हैं। खेल में रुचि रखने वाले देशवासियों को 2016 रियो ओलिंपिक से पहले सुशील कुमार और नरसिंह यादव के बीच हुआ विवाद जरूर याद होगा। तब मामला यह था कि सुशील चोटिल होने की वजह से मैट से दूर थे। इसी बीच नरसिंह यादव ने देश के लिए ओलिंपिक कोटा हासिल कर लिया। इस बार भी परिस्थितियां वैसी ही बनती दिख रही हैं। सुशील चोटिल होने की वजह से 3 जनवरी को आयोजित ट्रायल में हिस्सा नहीं ले पाए।

उनके वर्ग में जितेंदर ने टीम में जगह बना ली। पहले ऐसा कहा जा रहा था कि ट्रायल में चयनित खिलाड़ी ओलिंपिक क्वॉलिफाइंग टूर्नामेंट में भी देश का प्रतिनिधित्व करेंगे, लेकिन जब ट्रायल चल रहा था तभी फेडरेशन ने ऐलान कर दिया कि क्वॉलिफाइंग टूर्नामेंट से पहले होने वाली दो प्रतियोगिताओं में अगर खिलाड़ी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहता है तो फिर से ट्रायल आयोजित करवाए जा सकते हैं। फेडरेशन के इस ‘अच्छे’ शब्द ने विवाद की नींव रख दी है। सवाल यह उठता है कि अगर जितेंदर ने 74 किग्रा में ‘अच्छा’ कर लिया तो क्या सुशील की वापसी नहीं होगी? दूसरा सवाल यह भी उठता है कि ‘अच्छे’ प्रदर्शन का मानक क्या है? केवल मेडल क्या कुछ और भी? फेडरेशन ने यह स्पष्ट नहीं किया है। रेसलिंग एक ऐसा खेल है जहां चोट की आशंका हमेशा बनी रहती है। अभी वर्ल्ड चैंपियनशिप में ही हमने देखा कि देश के युवा पहलवान दीपक पूनिया चोट की वजह से फाइनल में नहीं उतर पाए।

अगर जितेंदर के साथ भी कुछ ऐसा हो जाए कि सेमीफाइनल या फाइनल में उन्हें वॉकओवर मिल जाए और बिना लड़े ही उनके हिस्से मेडल आ जाए तो क्या इसे ‘अच्छे’ प्रदर्शन में गिना जाएगा? अगर फेडरेशन इसे ‘अच्छा’ प्रदर्शन मान भी ले तो क्या सुशील मान लेंगे? वह पिछली बार की तरह फिर से ट्रायल की जिद पर उतर आए तो क्या होगा? साफ है कि फेडरेशन की अस्पष्ट नीति के चलते एक बार फिर विवाद की गुंजाइश बनी हुई है। सुशील की ही तरह साक्षी मलिक भी ऐसी पहलवान हैं जिनके पास अभी ओलिंपिक मेडल है। विडंबना यह है कि साक्षी भी फिलहाल ओलंपिक की होड़ से बाहर हो गई हैं। उन्हें लखनऊ में आयोजित ट्रायल में युवा सोनम मलिक ने हराकर उलटफेर किया। साक्षी का प्रदर्शन वैसे भी पिछले कुछ समय से ठीक-ठाक नहीं था, लेकिन फेडरेशन ने ‘अच्छे’ प्रदर्शन की जो शर्त रखी है उसके मुताबिक उनके लिए भी दरवाजे पूरी तरह बंद नहीं हुए हैं।

इसमें दो राय नहीं कि रेसलिंग में इस बार फिर से देश को मेडल की सबसे ज्यादा उम्मीद है। हमारे चार पहलवानों ने देश के लिए कोटा भी हासिल कर लिया है। इनमें से बजरंग पूनिया और विनेश फोगाट ने पिछले कुछ टूर्नामेंटों में जिस तरह का प्रदर्शन किया है, उसे देखते हुए इन दोनों पर सबकी नजरें हैं। युवा दीपक पूनिया का जोश भी सिर चढ़कर बोल रहा है। देश को अभी कुछ और कोटा भी मिल सकता है। अब ओलिंपिस में ज्यादा समय नहीं बचा है। अगर फेडरेशन अभी से ‘अच्छे’ शब्द का अर्थ स्पष्ट कर दे तो असमंजस और सुविधा की स्थिति दूर हो सकती है। पहलवान भी उत्साह के साथ अपनी अच्छी तैयारी में जुट जाएंगे। उन्हें अपना टारगेट पता चल जाएगा। अगर ऐसा नहीं होता है तो यह डर बना रहेगा कि कहीं पिछली बार की तरह इस बार भी आखिरी समय में देश को नुकसान के साथ बदनामी का दोहरा झटका न झेलना पड़ जाए।

रौशन कुमार झा
(लेखक खेल पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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