पूर्वोत्तर को कैसे देखें?

0
250

गृह मंत्री अमित शाह के नजरिए से या बतौर एक नागरिक के? बतौर नागरिक में दिक्कत यह है कि उत्तर भारत का हिंदूजन उबलते असम, पूर्वोत्तर के लोगों के ठीक विपरीत नजरिया लिए हुए है। ऐसे में खांटी हिंदू के नाते सोचना या पूरे देश के प्रतिनिधि हिंदू के नाते सोचना व असम के हिंदू के नाते सोचना बहुत फर्क लिए हुए है। उस नाते अपना मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के लिए यह मसला ‘ट्राईड एंड टेस्टेड’ श्रेणी का है। असम और पूर्वोत्तर में लोग नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ जितना खदबदाएंगे उतना ही उत्तर भारत का हिंदू मनोभाव मुस्लिम एंगल बूझेगा। और ‘मुस्लिम’ शब्द मोदी-शाह के लिए राजनीति में वह पारस पत्थर है जिसे किसी भी रूप में आजमाया जाए, (कश्मीर, नागरिकता बिल, तलाक, एनआरसी, सेकुलर बहस) उससे उनके हिंदू वोट खरे बनते हैं। असम या पूर्वोत्तर प्रदेशों की 25 लोकसभा सीटों की भला क्या चिंता करनी जब यूपी-बिहार-उत्तर भारत में वाहवाह बढ़ेगी। तभी तय माने कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह की चिंता सिर्फ हेडलाइन प्रबंधन की है। असम, पूर्वोत्तर में लोगों का गुस्सा फूटे तो फूटता रहे मगर दिल्ली में, देश के नैरेटिव में सुर्खियां या तो बने नहीं या मनमाफिक बने।

तभी आज यह जान आश्चर्य नहीं हुआ कि भारत सरकार ने टीवी चैनलों से कहा है कि ऐसी कोई सामग्री (फुटेज, रिपोर्ट, खबर) न दिखाएं जिससे लोगों का गुस्सा नजर आए। मतलब लोगों की नाराजगी, प्रदर्शन, विरोध न दिखलाई दे। सरकार ने इस बात पर ‘राष्ट्रविरोधी’ सामग्री का मुलम्मा चढ़ाया है। इसके खुलासे में कहा है कि वह सामग्री प्रसारित नहीं होनी चाहिए जिससे कानून-व्यवस्था बनाए रखने, हिंसा भड़कने और लोगों का राष्ट्र विरोधी व्यवहार बने!

अब इसके दो अर्थ हैं। एक, पूर्वोत्तर में नागरिक संशोधन बिल पास होने के खिलाफ जो स्वंयस्फूर्त विरोध फूटा है उसका मोदी सरकार को, गृह मंत्रालय को अनुमान नहीं था। यह पर इसलिए अधिक चिंता है क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी ने जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ गुवाहाटी में चर्चा करने, पूर्वोत्तर में दो दिन गुजारने का प्रोग्राम बनाया हुआ है। इसी 15-17 दिसंबर को मोदी-आबे की पूर्वोत्तर में शिखर वार्ता है तो जैसे भी हो राष्ट्रीय मीडिया, टीवी चैनलों पर हालात सामान्य दिखलाया जाना जरूरी है। जापानी यों भी बहुत संवेदनशील होते हैं। कर्फ्यू के बावजूद गुवाहाटी में लोग सड़कों पर उतरे हुए हैं तो इसकी फुटेज देख कर ही जापानी सरकार के हाथ -पांव फूल सकते हैं। तभी सरकार हाइपर एक्टिव हो कर गुवाहाटी में सबकुछ सामान्य बनाने-दिखाने की जुटी हुई है अन्यथा प्रोग्राम रद्द करना होगा।

दूसरा अर्थ है कि सरकार को स्वयंस्फूर्त विरोध से नब्बे के दशक वाले असम आंदोलन जैसे जनआंदोलन के बनने का खटका भी बना हो। तभी टीवी चैनलों को सलाह जारी हुई और यह कश्मीर घाटी की रणनीति को पूर्वोत्तर में आजमाया जाना है। मतलब कर्फ्यू लगा रहे, खबरों का प्रसारण न हो, घटनाओं से मीडिया दूर रहे और इंटरनेट बंद रहे तो धीरे-धीरे सबकुछ सामान्य होने लगेगा या सामान्य दिखेगा। पिछले तीन-साढ़े तीन महीने से कश्मीर घाटी में इसी नीति पर चला गया है। मगर कश्मीर घाटी और पूर्वोत्तर में फर्क है। असम-त्रिपुरा और बाकी राज्यों में कश्मीर की तरह सुरक्षा बल तैनात नहीं किया जा सकता है। तभी असम में कर्फ्यू प्रभावी नहीं हुआ है। 6 अगस्त को कश्मीर घाटी में कर्फ्यू से लोग जैसे घरों में बंद हुए और सड़कें सुनसान हुई वैसे गुवाहाटी या पूर्वोत्तर में सड़के नहीं हुई और कर्फ्यू के बावजूद लोग सड़कों पर उतरे और प्रदर्शन-विरोध जारी है तो केंद्र सरकार के लिए खबरों का प्रबंधन भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण है।

बहरहाल, लाख टके का सवाल है कि पूर्वोत्तर में विरोध कितना लंबा चलेगा? जिस तेजी से भाजपा पूर्वोत्तर के राज्यों में काबिज हुई क्या उतनी तेजी से नागरिक संशोधन बिल उसे लील नहीं लेगा? यह संभव ही नहीं है कि मोदी-शाह बिल को वापिस लें। बिल न सुप्रीम कोर्ट में खारिज होना है और न सरकार पुनर्विचार करने वाली है। इसलिए क्योंकि यह बिल और उसके बाद एनआरसी मोदी-शाह के लिए 2014 का तुरूप कार्ड है। बावजूद इसके पूर्वोत्तर में बिल से मनौवैज्ञानिक घाव गहरे बनेंगे। पहली बार पूर्वोत्तर के सभी राज्य, अरूणाचल प्रदेश से लेकर त्रिपुरा में मूल लोग समान रूप से गुस्से में है। जाहिर है चीन सहित सभी पड़ोसियों की दुश्मन लॉबी लोगों के गुस्से को हवा देने में पीछे नहीं रहेगी। असम में आंदोलन इसलिए गंभीर होना है क्योंकि यही से बांग्लादेश से आए बांग्लाभाषी घुसपैठियों के खिलाफ लंबा-सघन आंदोलन चला था। पूर्वोत्तर के सभी जनजातीय इलाकों में बाहरी लोगों के खिलाफ मनोविज्ञान क्योंकि घर-घर पैठा हुआ है तो नागरिक संशोधन बिल की चिंगारी तुरत-फुरत बूझ जाए यह संभव नहीं है। उलटे असम ही वह स्थायी रणक्षेत्र होता लगता है जिसकी लड़ाई से दुनिया जानेगी कि भारत राष्ट्र राज्य में क्या मतलब है नागरिकता का?

हरिशंकर व्यास
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here