करवा चौथ (करक चतुर्थी)

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अखण्ड सौभाग्य के लिए सुहागिन महिलाएं रखेंगी व्रत
चन्द्रोदय होगा रात्रि 06 बजकर 41 मिनट पर

हिन्दू धर्म में कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ (करक चतुर्थी) का व्रत रखा जाता है। हिन्दू सनातन धर्म में पौराणिक मान्यता के अनुसार देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करके व्रत-उपवास रखने की विशेष महत्ता है। करवा चौथ व्रत से विशिष्ट कामना की पूर्ति होती है। यह सुहागिन महिलाओं का अत्यधिक लोकप्रिय व्रत है। यह व्रत हर्ष, उल्लास व उमंग के साथ अपने पति की दीर्घायु के लिए रखा जाता है। प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन ने बताया कि इस बार यह व्रत गुरुवार, 17 अक्टूबर को रखा जाएगा। करवा चौथ की पूजा चन्द्रोदय व्यापनी चतुर्थी तिथि में की जाती है। कार्तिक कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि गुरुवार, 17 अक्टूबर को प्रातः 6 बजकर 48 मिनट पर लगेगी जो अगले दिन शुक्रवार, 18 अक्टूबर को प्रातः 7 बजकर 29 मिनट तक रहेगी। चन्द्रोदय रात्रि 6 बजकर 41 मिनट पर होगााा। फलस्वरूप गुरुवार, 17 अक्टूबर को करवा चौथ का व्रत रका जाएगा।

व्रत रखने का विधान – प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि सुहागिन व्रती महिलाएं प्रातःकाल अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर अपने देवी-देवता की आराधना के पश्चात अखण्ड सौभाग्य, यश-मान, प्रतिष्ठा, सुख-समृद्धि, खुशहाली एवं पति की दीर्घायु के लिए करवा चौथ के व्रत का संकल्प लेनी लेती है। यह व्रत निराहार व निराजल रहते हुए किया जाता है।

ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि सौभाग्यवती महिलाए कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन सुख-समृद्धि व अखण्ड सौभाग्य के लिए व्रत-उपवास रखकर देवाधिदेव भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान श्रीगणेश एवं श्रीकार्तिकेयजी की पूजा-अर्चना करती हैं। करवा चौथ से सम्बन्धित वामनपुराण में वर्णित व्रत कथा का श्रवण करने का भी विधान है। व्रत के दिन सुहागनि महिलाएं नव-परिधान व आभूषण धारण करके पूजा-अर्चना करती हैं। पूजा क्रम में करवा जो कि सोना, चांदी पीतल या मिट्टी का होना चाहिए। लोहे या अल्युमीनियम धात का नहीं होना चाहिए। करवा में जल भरकर सौभाग्य व श्रृंगार की समस्त वस्तुएं थाली में सजाकर रखी जाती है। व्रती महिलाएं अपने पारिवारिक परम्परा व धार्मिक विधि-विधान के अनुसार रात्रि में चन्द्र उदय होने के पश्चात चन्द्रमा को अर्घ्य देकर उनकी पूजा-अर्चना करती हैं। तत्पश्चात चन्द्रमा को चलनी से देकर उनकी आरती उतारती हैं। घर-परिवार में उपस्थित सास-श्वसुर, जेठ एवं अन्य श्रेष्ठजनों को उपहार देकर उनसे आशीर्वाद लेती हैं। साथ ही सुहाग की समस्त वस्तुएं अन्य सुहागिन महिलाओं को देकर उनका चरण स्पर्श कर खुशहाली जीवन का आशीर्वाद लेती हैं। अपने खुशहाल जीवन के लिए तथा पति-पत्नी के रिश्ते को और अधिक मधुर व प्रगाढ़ बनाने के लिए करवा चौथ का व्रत विशेष लाभदायी बतलाया गया है।

महिलाएं राशि के अनुसार करें परिधान धारण – करवा चौथ के पर्व को और अधिक खुशनुमा बनाने के लिए राशियों के रंग के मुताबिक महिलाएं परिधान धारण करें तो सौभाग्य में वृद्धि तो होगी ही साथ ही उनको अन्य लाभ भी मिलेगा। सामान्यतः सुनहरा, पीला और लाल रंग के परिधान धारण करना शुभ माना गया है। लाल रंग से ऊष्मा व ऊर्जा का संचार होता है, वही पर सुनहले व पीले रंगों से जीवन प्रसन्नता मिलती है। आजकल राशि के अनुसार आभूषण व परिधान धारण करने का प्रचलन बढ़ रहा है। कौन-सा रंग किस राशियों के लिए लाभदायक रहेगा। मेल-लाल, गुलाबी एवं नारंगी। वृषभ – सफेद एवं क्रीम। मिथुन – हरा व फिरोजी। कर्क – सफेद व क्रीम। सिंह केसरिया, लाल व गुलाबी। कन्या – हरा व फिरोजी। तुला – सफेद व हल्का नीला। वृश्चिक – नारंगी, लाल व गुलाबी। धनु – पीला व सुनहरा। मकर व कुम्भ – भूरा, स्लेटी व ग्रे। मीन – पीला व सुनहरा।

ज्योतिषविद् श्री विमल जैन ने बताया कि ज्योतिषशास्त्र के मुताबिक अपनी जन्मतिथि व राशि के अनुसार अपने परिधान धारण करके पूजा करना और अधिक भाग्यशाली रहता है।

जन्मतिथि के अनुसार रंगों का चयन – जिनका जन्म 1, 10, 19 या 28 को हुआ हो, उनके लिए – लाल, गुलाबी, नारंगी। 2, 11, 29 के लिए- चमकीला सफेद और क्रीम। 3, 12, 21 एवं 30 के लिए – पीला या सुनहला पीला। 4, 13, 22, 31 के लिए – चमकीला तथा मिश्रित रंग। 8, 17, 26 के लिए – नीला व भूरा रंग। 9, 18, 27 के लिए – लाल गुलाबी, नारंगी।

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