दोस्ती का नया दौर

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तमिलनाडु के मल्लापुरम में चीन और भारत के बीच अनौपचारिक दो दिवसीय आयोजन से कई बाते स्पष्ट हो गयीं। अपने हितों को लेकर कई मामलों में मतभेद के बावजूद चीन के राष्ट्राध्यक्ष शिन जिनपिंग और भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए एक आम सहमति बरकरार है। ऐसा इसलिए कि भारत की यात्रा से पहले चीन में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ बातचीत में चीनी राष्ट्रपति ने कश्मीर को लेकर अपनी राय जताई थी। हालांकि भारत की तरफ से उस पर यह स्पष्ट कर दिया गया था कि कश्मीर को लेकर बदली परिस्थितियां उसका आंतरिक मामला है। यही वजह रही कि दो दिन के भीतर हुई बातचीत में कश्मीर के अलावा बाकी बातें विस्तार से हुईं। इसका एक मतलब यह भी हुआ कि कश्मीर चीन की प्राथमिकता में उतना पुरअसर नहीं है जितनी उम्मीद पाकिस्तान ने उससे लगा रखी है।

यह बात और है कि चीन का आर्थिक गलियारा पाक अधिकृत कश्मीर के एक हिस्से में बन रहा है। यह ठीक है कि चीन के लिए पाकिस्तान की अपनी एक अहमियत है जिसे भारत भी खूब समझता है पर इस सबके बीच रिश्तों को आगे बढ़ाने की गुंजाइश भी है, यह इस यात्रा से स्पष्ट हुई है। बुहान समिट के बाद अनौचारिक वार्ता का दूसरा अध्याय चेन्नई कनेक्ट के तौर पर कूटनयिक जगत में व्याख्यायित हो रहा है। तब जरूरी है यह समझना कि कारोबारी मांग बढ़ाने के लिए दोनों देशों को एक —दूसरे की कि तनी जरूरत है। इसीलिए इस बार की मुलाकात से दूसरी बात यह स्पष्ट हो गयी कि मतभेदों के लिए भी एक सीमा है, उसे इससे ज्यादा अहमियत नहीं दी जा सकती। दशकों से दोनों देशों के बीच सीमा विवाद है। कई बार दोनों तरफ से तरफ से सैन्य घुसपैठ की खबरें चिंता बढ़ाने वाली होती हैं।

पर अच्छी बात यह है कि डोक लाम विवाद के बाद बुहान में हुई वार्ता से ऐसे मसलों पर दोनों देशों के शीर्ष अफसरों की एक समन्वय समिति बनी जो ऐसी परिस्थिति में समाधान प्रस्तुत करती है। अभी पिछली बार उत्तराखण्ड के इलाके में चीनी सैनिकों के भारतीय सीमा में घुसने की सूचना थी जिसमें भारतीय सैनिकों से गुत्थमगुत्था भी हुई थी लेकिन उसके बाद शीर्ष स्तर पर मामले को निपटा दिया गया। इस लिहाज से भी उम्मीद है कि इस दूसरी अनौपचारिक बातचीत के बाद सीमा विवाद निपटारे की दिशा में और तेजी से काम होगा। यह सच है कि आर्थिक महाशक्ति के तौर पर स्थापित होने के बाद चीन का सैन्य महाशक्ति बनने का सपना नई चुनौती के रूप में सामने आ रहा है। उसको लेकर भारतीय पक्ष को सतर्क रहने की जरूरत है। पर इस सबके बीच विकराल होती मंदी की समस्या से चीन भी जूझ रहा है।

उसे भारत में अपने कारोबार को और बढ़ाने की चिंता है। कई और क्षेत्रों में वह पांव पसारना चाहता है। ट्रेड वार के चक्कर में कई अमेरिकी कंपनियों ने भी चीन से बोरिया—बिस्तर समेट लिया है। बताया जाता है कि तकरीबन दो सौ कंपनियां स्विच ओवर के मूड में हैं, ऐसे में भारत इस स्थिति का कितना फायदा उठा पाता है, यह यहां के कारोबारियों पर निर्भर है। चीन से अभी कारोबार में भारत को 58 अरब डॉलर का घाटा हो रहा है। इस घाटे को पाटने की दिशा में चीन के राष्ट्रपति ने सकारात्मक संदेश दिया है। आने वाले दिनों में इसकी वास्तविकता सामने होगी। फिलहाल तो चीन और भारत दोनों तरफ से इस अनौपचारिक बातचीत को बुहान स्पिरिट का विस्तार बताया जा रहा है। ऐसा ही हो, यही उम्मीद की जानी चाहिए।

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