ह्यूस्टन में नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप की संयुक्त सभा ने जो जलवा पैदा किया है, उससे इन दोनों नेताओं के अंदरुनी और बाहरी विरोधी-सभी हतप्रभ हैं। दोनों नेता प्रचार-कला के महापंडित हैं। दोनों एक-दूसरे के गुरु-शिष्य और शिष्य-गुरु हैं। लेकिन अंतरराष्ट्रीय राजनीति का विद्यार्थी होने के नाते मैं कल जिस अदृश्य तथ्य को समझ रहा था और जिसके बारे में पहले भी लिख चुका हूं, अब वही होने जा रहा है।
दो देशों के नेता परस्पर कैसा भी व्यवहार करें लेकिन उन दोनों देशों के संबंधों का निर्धारण उनके राष्ट्रहित ही करते हैं। ट्रंप ने ह्यूस्टन में मोदी और भारत के लिए तारीफों के पुल बांध दिए लेकिन क्या यही उन्होंने इमरान खान के साथ नहीं किया ? कल जब इमरान उनसे न्यूयार्क में मिले तो उनकी हर अदा ऐसी थी, जैसे कि वे भारत और पाकिस्तान में कोई फर्क ही नहीं करते।
जो लोग ह्यूस्टन की नौटंकी देखकर फूले नहीं समा रहे थे, वे ट्रंप की इस अदा से पंचर हो गए। ट्रंप ने मोदी और इमरान दोनों को महान बताकर भारत-पाक के बीच मध्यस्थता करने का राग दुबारा अलाप दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने ह्यूस्टन में मोदी के भाषण को काफी ‘आक्रामक’ बता दिया।
यह तो उन्होंने पत्रकारों को बताया लेकिन पत्रकारों को जो पता नहीं है याने इमरान को, पता नहीं, उन्होंने क्या-क्या उल्टा-सीधा घुमाया होगा जबकि ह्यूस्टन में मोदी ने पाकिस्तान के खिलाफ किसी आक्रामक शब्द का इस्तेमाल तो किया ही नहीं, घुमा-फिराकर उसका नाम लिये बिना उसकी कुछ आक्रमक प्रवृत्तियों का और उसकी मुश्किलों का जिक्र किया। जबकि खुद ट्रंप महाशय ने ‘इस्लामिक टेररिज्म’ शब्द का इस्तेमाल किया। याने तालियां बजवाने के खातिर ट्रंप कुछ भी बोल सकते हैं।
ट्रंप के इस तेवर का साफ-साफ विरोध इमरान खान ने ‘कौंसिल आफ फारेन रिलेशंस’ (न्यूयार्क) के अपने भाषण में कर दिया। इमरान को ट्रंप का रवैया इतना अजीब लगा है कि उन्होंने यहां तक कह डाला कि (ट्रंप को क्या पता नहीं है कि) ‘इस्लाम सिर्फ एक प्रकार का है। वह नरम या गरम नहीं है।’ जब ट्रंप और इमरान संयुक्त राष्ट्र संघ भवन में पत्रकारों के साथ खड़े थे तो ट्रंप अपनी ही हांकते चले जा रहे थे। बेचारे इमरान खान चुपचाप खड़े रहे। ट्रंप ने कश्मीर के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा।
जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि आतंकवाद के हिसाब से क्या पाकिस्तान सबसे खतरनाक देश नहीं है तो उन्होंने झट से ईरान का नाम ले दिया। वे भारत और पाकिस्तान दोनों को खुश करने में लगे हुए हैं। देखना यह है कि वे भारत-अमेरिका व्यापार के उलझे हुए सवालों पर क्या रवैया अपनाते हैं। ट्रंप अमेरिका को बार-बार दुनिया का सबसे बड़ा महाशक्ति राष्ट्र घोषित करते रहते हैं तो फिर क्या वजह है कि वह सारे दक्षिण एशिया को महासंघ के एक सूत्र में बांधने का व्रत क्यों नहीं लेते ? सिर्फ अमेरिका के संकीर्ण और क्षुद्र स्वार्थों को सिद्ध करने में ही वे लीन क्यों हैं ?
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकरा हैं, ये उनके निजी विचार हैं