दिलचस्प त्रिकोण : शारदा, राजीव और ममता

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कभी-कभार जब कौन बनेगा करोड़पति देखता हूं तो मन करता है कि अमिताभ बच्चन प्रतियोगिता में एक सवाल जरूर पूछे कि इस देश में सबसे ज्यादा शक्तिशाली अफसर कौन है व चार विकल्पों में कैबिनेट सचिव, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, प्रधान सचिव व कोलकता के पूर्व पुलिस आयुक्त राजीव कुमार के पदो और नामों का विकल्प दे दें? मेरा दावा है कि सही उत्तर राजीव कुमार ही होगा क्योंकि उनके बचाव में जिस तरह से पश्चिम बंगाल की तेज तर्रार मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उतरी है वैसा कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलेगा और अब वह देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई द्वारा की जाने वाली पूछताछ का सामना न करने के लिए बचते-बचाते अदालतों की शरण में जा रहे हैं।

इसकी वजह है कि खुद पुलिस अधिकारी होने के कारण उन्हें पूछताछ के पुलिसिया हथकंडों का पता है और फिर जिस सीबीआई का निदेशक खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दरोगा हो उससे उनकी मुलाकात कैसी रहेगी? इसकी कल्पना की जा सकती है। जिस मामले में उनको एजेंसी ने वांछित किया है वह बड़ा दिलचस्प है। कांग्रेस व वामपंथी दलों को गरियाते हुए व उसकी सरकारों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में वामपंथी सरकार को उखाड़ फेंका था वहीं अब उनके कार्यकाल में हुआ भ्रष्टाचार का कथित मामला उनके गले पड़ गया है।

अपना मानना है कि बंगाली लोग बहुत विद्धान व जोड़-तोड में माहिर होते हैं। शायद यही वजह रही होगी कि अंग्रेजो ने राज करने के लिए कोलकता को अपनी राजधानी बनाया था। बंगाली भद्रजन साहित्य से लेकर पढ़ने-लिखने और दूसरों को प्रभावित करने में बहुत होशियार व कामयाब होते हैं। खासतौर से जब मामला रुपए पैसों को हो तो पूछना ही क्या। शायद यही कारण है कि तमाम बड़ी चिटफंड कंपिनयां व उनके घोटालों की शुरुआत कोलकता से ही हुई। इनमें पियरलेस से लेकर संचिता कंपनी तक शामिल रही और कुछ वर्ष पहले हुए शारदा रोज वैली कंपनियेां ने आम आदमी को ठगने के सारे रिकार्ड ही नहीं तोड़े बल्कि यह साबित कर दिया कि वे लोग तो इतने प्रभावशाली थे कि ताकतवर सत्तारूढ़ नेताओं को अपनी जेब में लेकर चलते थे।

शारदा कंपनी की स्थापना सुदीप्तो सेन नामक एक 50 वर्षीय व्यक्ति रामकृष्ण परमहंस की माता शारदा देवी के नाम पर की थी। उन्होंने आम आदमी को लुभाने के लिए उन्हें उनके द्वारा जमा की गई राशि पर बहुत मोटा ब्याज देना शुरू किया। आम चिटफंड कंपनियों की तरह उनका धंधा कोलकता के मध्यम व लघु वर्ग तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि पड़ोस के उड़ीसा, झारखंड आदि राज्यों तक फैल गया। पैसा जमा करवाने वाले एजेंटो को वे जमा कराने वाली राशि का 25-40 फीसदी हिस्सा तक कमीशन के रूप में दे देते थे।

उन्होंने अपने हाथ पैर पसारते हुए तृणमूल कांग्रेस के नेताओं, सांसदों को भी अपने लालच में लेना शुरू कर दिया। उन्होंने असम के मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा शर्मा से भी नाता बनाया। आधा दर्जन मंत्री व सांसद उसके द्वारा पैसा दिए जाने वालों की सूची में थे। इनमें से कुछ अपनी जान बचाने के लिए अब भाजपा में शामिल हो गए हैं। वे अपने प्रचार-प्रसार के लिए कोलकता के प्रसिद्ध फुटबाल मैचों को प्रायोजित करते।

उन्होंने मिथुन चक्रवती को करोड़ो रुपए की रकम देकर अपना ब्रांड एंबेस्डर बनाया था। सांसद शताब्दी राय फिल्म निर्माण के प्रभारी थे। उन्होंने लोगों को प्रभावित करने के लिए बंगला फिल्मो का निर्माण करना शुरू कर दिया। अपना मीडिया एंपायर स्थापित किया। सात विभिन्न भाषाओं के अखबार निकाले व टीवी-10 के नाम से अपना चैनल शुरू किया। इनके नाम संकल्प, वेलकम, अजीर दैनिक, तारा न्यूज, तारा बांग्ला आदि थे ताकि मीडिया के जरिए लोगों को आसानी से प्रभावित किया जा सके। उन्होंने ममता बनर्जी द्वारा तैयार की गई पेटिंग को बडी कीमत पर खरीदा। जलमहल के उनके इलाके में लोगों के काम करने के लिए सीएसआईआर के तहत उन्हें एंबुलेंस व कार्यकर्ता को मोटर साईकिले दी।

दुर्गा पूजाओं को वे जमकर प्रायोजित करते थे। उनकी ताकत इतनी बढ़ गई कि ममता बनर्जी सरकार ने अपने सभी सरकारी स्कूलों व पुस्तकालयों में इस कंपनी के अखबार खरीदने व उन्हें विज्ञापन देने का आदेश जारी कर दिए। वे पैसा पानी की तरह से बहा रहे थे। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने इस कंपनी को 2012 में धंधा बंद कर देने के आदेश दिए थे मगर वे कानूनी खामियों का फायदा उठाते हुए खुद की चिटफंड कंपनी माने जाने से बचते रहे। कभी वृक्ष लगाने की योजनाएं बनाते तो कभी कहते कि वे मोटर साईकिल बनाने की फैक्टरी लगा रहे हैं।

लोगों को प्रभावित करने के लिए कंपनी ने 2000 एकड़ जमीन खरीदी। घाटे में चलने वाली एक मोटर सामान निर्माता कंपनी को खरीदा। उसने लोगों को प्रभावित करने के लिए उनसे निवेश करवाने के पहले इस फैक्टरी में ले जाते थे। वहां उत्पादन पहले ही बंद हो चुका था मगर उसके 150 कर्मचारियों को महज इसलिए नौकरी पर रखा गया था ताकि निवेशको को लगे कि वे लोग मोटर साइकिलें बना रहे हैं। सेबी ने भी इस कंपनी पर अपना शिकंजा कसना शुरू किया। वहीं हुआ जिसका की डर था।

कंपनी के मालिक सुदीप्तो सेन अपनी निदेशक देवयानीको लेकर फरार हो गए। वह पहले एयर होस्टेस थी। कुछ दिनो बाद उन्हें कश्मीर से पकड़ लिया गया। कंपनी की वित्तीय हालात खराब हो गई। वह लोगों को उनके निवेश पर ब्याज तो क्या मूलधन तक देने के काबिल नही रही। कुल मिलाकार उस पर 60,000 करोड़ रुपए का घोटाला करने का अनुमान है। खुलासा होने पर ममता बनर्जी ने एक रिटायर जस्टिस के नेतृत्व में पहले आयोग बैठा दिया व इस मामले में सीबीआई, ईडी सरीखी किसी केंद्रीय एजेंसी से जांच न करवाने पर अड़ते हुए कोलकता के तत्कालीन पुलिस आयुक्त राजीव कुमार के नेतृत्व में एसआईटी गठित कर दी।

बाद में सुप्रीम कोर्ट से यह मामला सीबीआई को सौंपा गया। जब सीबीआई इस सिलसिले में कोलकता के तत्कालीन पुलिस आयुक्त राजीव कुमार को हिरासत में लेने गई तो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसके विरोध में उनके घर के बाहर अपने मंत्रियों के साथ धरना दिया। देश के इतिहास में इस तरह की यह एकमात्र घटना थी। ध्यान रहे कि उनके विरोधी वामपंथी बुद्धदेव भट्टाचार्य की सरकार में गुप्तचार शाखा के प्रमुख रहे इसी अधिकारी पर ममता बनर्जी ने तत्कालीन सरकार के लिए अपने फोन टैप करने का आरोप लगाया था। सीबीआई का कहना है कि उन्होंने कुछ अहम दस्तावेजों वाली वह डायरी गायब कर दी जिसमें तृणमूल कांग्रेस के अहम नेताओं को पैसा दिए जाने का जिक्र था। राहत पाने के लिए राजीव कुमार हाईकोर्ट गया मगर राहत नहीं मिली। अब वह छुपता घूम रहा है। सीबीआई द्वारा उसकी गिरफ्तारी तय मानी जा रही है। देखें वह पकड़े जाने पर क्या कहता है?

विवेक सक्सेना
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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