लिंचिंग रोकने को नीयत चाहिए

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भीड़ की हिंसा का रूप बदल रहा है। पांच साल पहले दिल्ली से सटे नोएडा के दादरी में अखलाक की पीट पीट कर हत्या किए जाने के बाद काफी समय तक सिर्फ एक ही कारण से मॉब लिंचिंग होती रही थी वह कारण था गौरक्षा का। गौवंश के पशु लाते, ले जाते अनेक लोगों पर हमले हुए। पर पिछले कुछ दिनों से इसका रुप बदल गया है। अब गौरक्षा एकमात्र कारण नहीं रह गया है। कई इलाकों में गौरक्षा के नाम पर भी हिंसा हुई है पर अब ज्यादातर हिंसा बच्चा चोरी रोकने के नाम पर हो रही है।

देश के अलग अलग हिस्सों से ऐसी खबरें आई हैं कि बच्चा चोर के शक में लोगों ने किसी शख्स की पीट पीट कर हत्या कर दी। ऐसी हिंसा इतनी बढ़ी है कि अपनी भतीजी को इलाज के लिए ले जा रहे एक व्यक्ति पर भीड़ ने हमला कर दिया था और अपनी बेटी के साथ जा रहे एक पिता पर भी लोगों ने हमला किया था। ताजा मामला झारखंड के मिहिजाम का है, जहां उग्र भीड़ ने एक व्यक्ति को बच्चा चोरी के शक में पकड़ कर पीटना शुरू किया और इतना पीटा कि वह मर गया।

इस दौरान पुलिस वहां पहुंच गई थी पर लोगों का गुस्सा और भीड़ देख कर उसकी हिम्मत नहीं हुई कि वह कार्रवाई करे। पुलिस के जवान और अधिकार हाथ जोड़ कर लोगों के विनती करते रहे और लोग पिटाई करते रहे। अंततः लोगों ने उस शख्स की जान ले ली। इस घटना की खबर के साथ ही दूसरी खबर यह है कि राजस्थान और पश्चिम बंगाल ने मॉब लिंचिंग रोकने के लिए जो कानून बनाया है, केंद्र सरकार उसकी समीक्षा करेगी। ध्यान रहे कई राज्य भीड़ की हिंसा की बढ़ती घटनाओं को रोकने के लिए कानून बनाने पर विचार कर रही हैं या बना दिया है। पर सवाल है कि क्या सिर्फ कानून बना देने से इस तरह की हिंसा रूक जाएगी?

राजस्थान और पश्चिम बंगाल ने मॉब लिंचिंग रोकने के कानून बनाए हैं। केंद्र सरकार इन कानून की समीक्षा करेगी कि ये कानून केंद्र के कानूनों के मुताबिक हैं या नहीं। इनकी संगति केंद्र के कानून से बैठती है या नहीं। इनके प्रावधानों की भी समीक्षा की जाएगी। इसके लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई है। सो, ये कानून कब से लागू होंगे यह नहीं कहा जा सकता है। पर उससे पहले जांच की प्रक्रिया और कानूनी प्रक्रिया की जो कमजोरियां सामने आई हैं उनको ठीक करना पहली जरूरत है।

ध्यान रहे राजस्थान के अलवर में भीड़ की हिंसा का शिकार हुए पहलू खान मामले में सारे आरोपी निचली अदालत से बरी हो गए हैं। अब सरकार ने इसकी जांच के लिए एसआईटी बनाई है और ऊपरी अदालत में अपील की है। इस बीच खबर है कि झारखंड में भीड़ द्वारा मारे गए तबरेज अंसारी के मामले में आरोपियों पर से हत्या का आरोप हटा दिया गया है। जिन मामलों में पर्याप्त सबूत और गवाह हैं उन मामलों में अगर पुलिस और कानून प्रवर्तकों का यह रवैया है तो दूसरों मामलों के बारे में क्या कहा जा सकता है। सबसे पहले तो सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह इस तरह के मामलों के आरोपियों को किसी किस्म की राहत देती नहीं दिखाई दे। इससे सिर्फ एक मामला कमजोर नहीं होता है, बल्कि ऐसे अपराध करने वालों को यह मैसेज जाता है कि उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा। पहलू खान और तबरेज अंसारी मामले का बड़ा सबक यह है कि इस तरह के मामलों को प्राथमिकता से और ज्यादा गंभीरता व संवेदनशीलता से संभालना होगा।

सबसे पहले तो सरकारों को यह समझना होगा कि यह सामान्य आपराधिक घटना नहीं है क्योंकि इसमें किसी तरह के लाभ की तात्कालिक इच्छा शामिल नहीं है और न ही आपराधिक प्रवृत्ति के लोग शामिल हैं। इसके लिए कोई साजिश रचे जाने या पहले से तैयारी करने जैसी भी कोई बात आमतौर पर नहीं होती है।

असल में यह कानून के साथ समाज और राजनीति की भी समस्या है। तभी अगर कोई राज्य सरकार सिर्फ कानून बना कर इसे रोकने का प्रयास करती है और समझती है कि उसे सफलता मिल जाएगी तो वह गलती कर रही है। उससे सबसे पहले इसके राजनीतिक व सामाजिक पहलुओं को समझना होगा। राजनीतिक इच्छा शक्ति दिखानी होगी और समाज में बढ़ रहे विभाजन को कम करने का प्रयास करना होगा। इसमें राज्य सरकारों को हर पार्टी को साथ लेना होगा और सामुदायिक स्तर पर भी प्रयास करना होगा।

भीड़ की हिंसा पहले भी होती रही है पर पिछले पांच साल में इसमें अचानक बहुत बढ़ोतरी हुई है। इसका कारण रोजमर्रा के राजनीतिक व सामाजिक विमर्श में हिंसा का शामिल होना है। चाहे वह जिसके विरूद्ध हो पर उसने समाज को हिंसक बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है। राजनीतिक फायदे के लिए हिंदू-मुस्लिम, दलित-सवर्ण, अगड़ा-पिछड़ा, देशभक्त-देशद्रोही या हिंदुस्तान-पाकिस्तान का जो नैरेटिव बनाया गया है वह इस तरह की घटनाओं के बढ़ने की जड़ है। सबसे पहले इस जड़ को काटना होगा। जो हमारे जैसा नहीं है वह हमारा विरोधी है, इस राजनीतिक व विमर्श को खत्म करना होगा।

इसके लिए पार्टियों और सरकारों को राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखानी होगी। चुनावी लाभ हानि से ऊपर उठ कर साफ नीयत से काम करना होगा। सिर्फ कानून बनाने से काम नहीं चलने वाला है। सबसे पहले कानून पर सख्ती से अमल की जरूरत है और उसके साथ ही समाज में सद्भाव, भाईचारे के प्रसार का अभियान चलाने की भी जरूरत है।

तन्मय कुमार
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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