प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यों तो पहले भी कई मुस्लिम देशों की यात्रा कर चुके हैं लेकिन इस बार उनका संयुक्त अरब अमारात (यूएई) और बहरीन जाना विशेष महत्व का है। बहरीन जानेवा ले वे पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं। असली बात यह है कि इन दोनों मुस्लिम देशों में वे गए हैं, दो प्रमुख घटनाओं के बाद ! पहली घटना पुलवामा-बालाकोट कांड और दूसरी कश्मीर से धारा 370 और 35 ए को खत्म करने के बाद !
इन दोनों घटनाओं के बाद पाकिस्तान समझ रहा था कि दुनिया के मुस्लिम देश भारत की भर्त्सना करेंगे और उसके आंसू पोछेंगे लेकिन कश्मीर के मामले में सबसे पहले दो देशों ने भारत का समर्थन किया। वे थे, यूएई और मालदीव। इन दोनों मुस्लिम देशों का समर्थन पाकिस्तान के मनोबल के लिए बड़ा धक्का था। अब यह धक्का और भी गहरा हो गया है।
अबू धाबी के शेख मुहम्मद नाह्यान ने न सिर्फ मोदी को वहां का सर्वोच्च सम्मान (आर्डर आफ जायद) दिया बल्कि उन्हें अपना ‘भाई’ कहा और ‘अपने दूसरे घर में’ उनका स्वागत किया। यह सम्मान पहले रुस और चीन के पुतिन और शी को दिया गया था। इस अवसर पर महात्मा गांधी की स्मृति में डाक टिकिट भी जारी किया गया। बहरीन ने भी अपना सर्वोच्च सम्मान मोदी को दिया और 200 साल पुराने श्रीजी मंदिर के पुनर्निर्माण की भी घोषणा की।
क्या इससे पाकिस्तान के घावों पर नमक नहीं छिड़क गया होगा ? बिल्कुल छिड़क गया है। पाकिस्तान की सीनेट के अध्यक्ष सादिक संजरानी ने गुस्से में आकर अपनी दुबई-अबूधाबी यात्रा रद्द कर दी। पाक विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने भी इस्लामी संगठन में इसलिए भाग नहीं लिया था कि भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज वहां पुलवामा-बालाकोट पर बोलने वाली थीं। पाकिस्तान के इन तेवरों का इन प्रमुख मुस्लिम देशों पर कोई असर नहीं हो रहा है।
मोदी को घोर सांप्रदायिक और फाशीवादी कहने वाला पाकिस्तान यह क्यों भूल गया कि उन्हें सउदी अरब, फलीस्तीन और अफगानिस्तान भी अपने सर्वोच्च पुरस्कार दे चुके हैं। पाकिस्तान की शै पर जिंदा रहने वाले अलगाववादी और आतंकवादियों को क्या यह पता नहीं चल रहा है कि अब सारी दुनिया कश्मीर को भारत का आंतरिक मामला मान रही है ? उन्हें अब ऐसा ही समझकर कश्मीरियों की खुशहाली, सुरक्षा और संपन्नता की भरपूर कोशिश करनी चाहिए।
डॉ वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं…