आजाद कश्मीर में मेरे कुछ अनुभव

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रक्षा मंत्री राजनाथसिंह को मैं हार्दिक बधाई देता हूं कि कश्मीर पर उन्होंने मेरी ऐसी बात का समर्थन कर दिया है, जो पिछले 50 साल से प्रायः मैं ही लिखता और बोलता रहा हूं। मैं हमेशा कश्मीर पर पाकिस्तान से बातचीत का समर्थक रहा हूं लेकिन पाकिस्तान के कई विश्वविद्यालयों, शोध-संस्थानों और पत्रकारों के बीच बोलते हुए मैंने दो-टूक शब्दों में कहा है कि सबसे पहले हम आपके ‘आजाद कश्मीर’ के बारे में बात करेंगे।

मैंने प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो और मियां नवाज शरीफ से ही नहीं, राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ से भी पूछा कि आपने कश्मीर के बारे में सयुक्त राष्ट्र संघ का प्रस्ताव पढ़ा है, क्या ? क्या उसके पहले अनुच्छेद में यह नहीं लिखा है कि आप अपने कब्जाए हुए कश्मीर की एक-एक इंच जमीन खाली करें। उसके बाद वहां आप जनमत संग्रह करवाएं। आपने अभी तक क्यों नहीं करवाया ?

मैंने उनसे पूछा कि क्या आप अपने कश्मीरियों को ‘तीसरा विकल्प’ देंगे ? याने वे भारत या पाकिस्तान में मिलने की बजाय पृथक राष्ट्र बन जाएं ? इस पर सभी पाकिस्तानी नेता मौन हो जाते हैं। याने वे संपूर्ण कश्मीर को अपना गुलाम बनाकर रखना चाहते हैं। पाकिस्तान की यह नीति कश्मीर के कई उग्रवादी और आतंकवादी नेताओं को भी पसंद नहीं है। जब वे मुझसे कहते कि आप अपना कश्मीर हमारे हवाले क्यों नहीं करते तो मैं उनसे पूछता हूं कि जो कश्मीर आपके पास है, उसका क्या हाल है ?

आपके ही लेखकों और कश्मीरी पत्रकारों ने लिखा है कि हमारा ‘आजाद कश्मीर’ गर्मियों में एक विराट वेश्यालय में परिवर्तित हो जाता है। मैं अपनी कश्मीरी माताओं-बहनों को किस मुंह से आपके हवाले करुं ? इसके अलावा हमारे कश्मीर में तो धारा 370 और 35 ए लगी हुई है। आपके यहां तो ऐसा कुछ नहीं है। आपके कश्मीरियों और गिलगिट-बालटिस्तानियों पर पठानों और पंजाबियों की जनसंख्या भारी पड़ती जा रही है।

चीन को आपने 5000 वर्ग किमी कश्मीरी जमीन 1963 में तश्तरी पर रखकर दे दी है और आपका कश्मीर उसकी जागीर बनता जा रहा है। तथाकथित ‘आजाद कश्मीर’ के तीन प्रधानमंत्रियों से मेरी लंबी बातें हुई हैं। जब बेनजीर भुट्टो से मैंने कहा कि आपका कश्मीर तो आजाद है, अलग देश है। वहां जाने का ‘वीजा’ कहां से मिलेगा ? उसके प्रधानमंत्री से भेंट कैसे होगी ? वे हंसने लगी। उन्होंने अपने गृहमंत्री जनरल नसीरुल्लाह बाबर से कहा। जनरल बाबर ने नाश्ते पर मुझे अपने घर बुलाया और कहा कि ‘कौन गधा वहां वजीरे-आजम है?’ उसे आप फोन करें। वह ‘मुनसीपाल्टी का सदर’ है। वह खुद आपसे मिलने यहां (इस्लामाबाद) चला आएगा। दूसरे दिन यही हुआ।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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