बुद्धिजिवियों की तकलीफ!

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कश्मीर पर आए फैसले के बाद कुछ लोगों को तकलीफ है कि इस पर इतने जोक क्यों बनाए जा रहे हैं? इनका मानना है कि ऐसा करने से हम आम कश्मीरी की भावनाएं आहत कर रहे हैं। वहीं कुछ लोग इस फैसले को लोकतंत्र की हत्या बता रहे हैं। उनका कहना है कि कश्मीर की जनता की भावनाओं का ख्याल नहीं रखा गया। दरअसल दिक्कत ये है कि जब भी इंसान खुद को बुद्धिजीवी मान लेता है तो उसे मुख्यधारा से जुड़ी हर चीज से नफरत हो जाती है। अगर राष्ट्रप्रेम मुख्यधारा है, तो बुद्धिजीवी राष्ट्रहहित से जुड़ी हर बात के खिलाफ जाकर अपना अहम तुष्ट करता है। लोग क्रिकेट की जीत पर खुश होते हैं। बुद्धिजीवी कहता है कि क्रिकेट कोई खेल ही नहीं है। बुद्धिजीवी को राष्ट्रप्रेम बहुत मेनस्ट्रीम लगता है। इसलिए वो खेलों की जीत पर लोगों की खुसी को उग्र राष्ट्रवाद बताता है।

वो गौमूत्र पर जोक बनाता है। पुलवामा में भारतीय सैनिकों की शहादत पर कश्मीरियों के हाऊ इज द जोश जैसे जोक्स शेयर करता है मगर उसे कश्मीर में प्लॉट खरीदने वाले जोक उसे इनसेंसेटिव लगते हैं! उसे एक खास नेता से नफरत होती हैं और जब-जब उस विचारधारा से जुड़े लोग क्रिकेट से लेकर कश्मीर तक किसी भी चीज का जश्न मनाते हैं तो बुद्धिजीवी के मन में वो खीझ होती हैष यही वो बुद्धिजीवी है जो गली में गुबारे के लिए बच्चों के झगड़े में भी प्रधानमंत्री को संविधान की याद दिलाना नहीं भूलता लेकिन अपने लिए अगल देश मांग रहे कश्मीरियों के मामले में वो संविधान की किताब को चेतन भगत का नॉवेल मानकर इग्नोर कर देता है। वो इस फैसले से पहले कश्मीरियों से बात न करने का रोना रोता है। मगर ये नहीं बताता कि उनसे बात क्या की जा सकती है?

बुद्धिजीवी कहता है कि सरकार जनता की भावनाओं का सम्मान करे। जनता की भावना तो भारत का झंड़ा जलाने की है, तो क्या जलाने दिया जाए? जनता की भावना सेना पर पत्थर बरसाने की है, तो क्या बससाने दिया जाए । जनता की भावना कश्मीर को पाकिस्तान बनाने की है, तो क्या बनाने दिया जाए? क्या आप इतने मूर्ख हैं कि पिछले 30 सालों में वहां की जनता की भावनाएं नहीं समझ पाए? और आज उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए उन्हें पाकिस्तान में जाने दिया जाए, तो कल को देश को हिन्दू राष्ट बनाने की मांग उठेगी, तब क्या करेंगे? क्या ऐसे लोग भी अगर बहुसंख्याक हो गए, तो क्या तब भी जनता की भावनाओं को सम्मान करने को कहेंगे?

क्या आप नहीं जानते जिन कथित हिन्दूं कट्टारपंथियों को आप देश के कथिथ सेक्युलर ढाचें के लिए सबसे बड़ा खतरा बताते हैं, कश्मीरियों की भावनाओं का सम्मान करवे के बाद आपके उसी कथित हिन्दू कट्टरपंथ को सबसे ज्यादा बढ़ावा मिलेगा। आप 370 हटाने पर खतरनाक अंजाम की चेतावनी देते हैं। खून-खराबे की आशंका जाहिर करते हैं। मैं पूछता हूं जिस कश्मीर में पिछले 30 सालों से 40 हजार लोग अपनी जवान गवां चुके हैं, वहां इससे बुरा और क्या हो सकता है? जिस राज्य से 5 लाख कश्मीरी अपेन हिन्दू होने के कारण निकाले जा चुके हैं उससे ज्यादा खतरनाक अंजाम और क्या होगा? धरती सूरज के चारों तरफ घूमती है तो दिन रात बनते हैं। मगर आप किसी समस्या के चारों तरफ 70 साल तक घूमते रहें, तो वहां सिर्फ रात बनती है। अंधेरा छाता है। जैसा अंधेरा कश्मीर में 70 सालों से छाया हुआ था और आज अगर धुरी बदली है, तो इंतजार कीजिए वहां उजाला भी होगा।

नीरज बधवार
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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