पीएम की सख्त नसीहत

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नेता पुत्रों के दुर्व्यवहार पर सख्त नाराजगी जताई और चेतावनी भी दी, कहा कि जो भी हो, चाहे वह किसी का भी बेटा हो, मनमानी नहीं चलेगी। दरअसल भाजपा के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के विधायक पुत्र आकाश ने बीते दिनों इंदौर में नगर निगम के एक अफसर को क्रिकेट बैट से पीट दिया था, इसके लिए उन्हें जेल की हवा भी खानी पड़ी पर जेल से लौटने के बाद उन्हें अपने कृत्य का तनिक भी मलाल नहीं हुआ। इसको लेकर सियासी जगत में भाजपा की काफी किरकिरी हो रही थी। सत्रहवीं लोकसभा में संसदीय दल की पहली बैठक में मोदी ने सख्त संदेश देकर साफ कर दिया है कि पार्टी की छवि को बिगाड़ने की इजाजत किसी को नहीं है। उनके ऐतराज के तापमान को समझा जा सकता है।

उनकी कोशिश पार्टी को विनम्र, निरंकारी और जनसेवी बनाने की है पर आकाश जैसे लोग उस पर पानी फेरने का काम करते है। शायद इसीलिए उन्होंने ऐले लोगों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने की बात कही है। कार्रवाई होती है या नहीं, आगे की बात है लेकिन यह पद का अहंकार तकरीबन सभी सत्ताधारी पार्टियों में मौजूद है। इसको लेकर किसी का दामन साफ नहीं है। सत्ता की दबंदई का ऐसा ही एक मामला तेलांगना राज्य में भी देखने को मिला, जहां एक टीआरएस मंत्री ने वनधिकारी की धुनाई कर दी। सत्ता की मदान्धता एक तकह से स्वीकृत अपसंस्कृति के तौर पर बरसों से मौजूद है। जनतंत्र का एक चेहरा यह भी है कि जहां जनप्रतिनिधि, प्रतिनायक की भूमिका में दिखने लगते हैं। हालांकि ऐसी प्रवृत्ति का अब जोरदार विरोध भी होता है।

सिविल सोयासटी के मुखकर होने से कई बार मदान्ध माननीयों को बैकफुट पर जाना पड़ता है। आश्वास्त करने वाली बात यही है कि जन प्रतिरोध भी बढ़ रहा है। विशिष्ट बोध की मानसिकता के शिकार लोगों का समाजिक विरोध होना बेशक पहली शर्त है लेकिन व्यापक प्रभाव के लिए पार्टियों के भीतर ऐसे लोगों का प्रतिरोध हो तो सूरत बदल भी सकती है। प्रधानमंत्री तो अपने संबोधनों के जरिये सत्ता प्रतिष्ठानों की सूरत संवेदनशील और अति मानवीय बनाना चाहते हैं लेकिन साथ के कुछ लोग हैं, जो मानते ही नहीं। पहले भी प्रधानमंत्री ने नेताओं और तथाकथित गोरक्षकों को अनुचित गतिविधियों के लिए नसीहत दी थी। पिछले साल मोदी ने कहा था गोरक्षा के नाम पर गुंडागर्दी बर्दाश्त नहीं।

लेकिन उस नसीहत के बाद भी देश में कई जगह गोरक्षा के नाम पर निर्दोष लोगों की हत्याएं हुई। इसीलिए यह आरोप भी विपक्ष की तरफ से सामने आया कि प्रधानमंत्री की उन्हीं के लोग नहीं सुनते या सिर्फ औपचारिकता के लिए ऐसे बयान सामने आते हैं जो जुबानी जमा खर्च की तरह है। बावजूद इसके सबसे बड़ी सत्ताधारी पार्टी होने के नाते भाजपा से ही बदलाव की उम्मीद करना स्वाभाविक है। केन्द्र के साथ ही 17 राज्यों में शासन कर रही भाजपा नई लकीर खींचे तो बाकी दल स्वयं उसकी कॉपी करेंगे। बदलाव होता दिखे तो उसका सभी पर असर पड़ता है। जनतंत्र की बेहतरी के लिए भी जरूरी है कि विशिष्ट बोध की मानसिकता से इतर हमारे माननीय जन की फिक्र करें। सत्ता, आक्रामकता पैदा करने के लिए नहीं बल्कि लोगों की सेवा करने के लिए होती है।

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