भारत-अमेरिकी रिश्ते खतरनाक दौर में

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यह कहा जा सकता है कि भारत और अमेरिका के संबंधों में ऐसा नया क्या है, जो इसे दोनों देशों के संबंधों का नया दौर कहा जाए। यह दौर तो पिछले कई दशक से चल रहा है। मनमोहन सिंह ने अपनी अल्पमत सरकार को दांव पर लगा कर अमेरिका के साथ परमाणु संधि की थी।उससे पहले अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार का भी अमेरिका के साथ वैसा ही अच्छा संबंध था। अब नरेंद्र मोदी की सरकार में भी भारत और अमेरिका के संबंध दोस्ताना ही हैं। पिछले अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के बारे में तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद ही बताते हैं कि उनके साथ दोस्ताना संबंध थे। सो, इस आधार पर दोनों देशों के संबंधों के मौजूदा स्वरूप को नया दौर नहीं कहा जा सकता है। पर बारीकी से देखें तो दोस्ताना संबंधों में जो तनाव और अमेरिका का एक तरफा रवैया दिख रहा है वह भारत के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। अमेरिका लगातार भारत पर अपनी शर्तें थोप रहा है। उसने ईरान पर पाबंदी लगाई है इसलिए वह चाहता है कि भारत ईरान से तेल नहीं खरीदे।

वह चाहता है कि भारत रूस से एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली नहीं खरीदे। अमेरिका चाहता है कि भारत चीन की कंपनी हुवावे को अपने यहां 5जी के परीक्षण की अनुमति नहीं दे। अमेरिका खुद तो भारत के उत्पादों पर दस तरह के शुल्क लगाए और भारत को मिला विशेष दर्जा खत्म कर दे पर भारत उसके उत्पादों पर शुल्क घटाए और वह ये भी तय करना चाहता है कि भारत अपने यहां धार्मिक समूहों के साथ कैसा बरताव करे। अमेरिका के इस रुख के साथ भारत कैसे संबंधों को सामान्य रख सकता है? अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो भारत के दौरे पर आए थे तो उन्होंने उससे पहले मोदी है तो मुमकिन है का नारा दिया पर साथ ही जाते जाते भारत के धार्मिक समूहों को अपनी स्वतंत्रता के लिए खड़े होने की नसीहत भी दी गई। उन्होंने इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में एक सम्मेलन में कहा कि भारत दुनिया के चार बड़े धर्मों की जन्मस्थली है और यहां सब लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता के लिए एक साथ खड़े होना चाहिए। इससे पहले अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय धार्मिंक स्वतंत्रता पर एक रिपोर्ट पेश की थी।

जिसमें उसने कहा था कि भारत में अल्पसंख्यकों की धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान नहीं होता है। भारत ने इस रिपोर्ट को खारिज किया था पर पोम्पियो इसे दोहरा कर चले गए। पोम्पियो के भारत आने से पहले अमेरिका ने कहा था कि भारत को रूस से एस- 400 मिसाइल रक्षा प्रणाली नहीं खरीदनी चाहिए। भारत ने इसे साफ शब्दों में ठुकरा दिया। विदेश मंत्री एस जय़शंकर ने कहा कि भारत वहीं करेगा, जो देश के हित में होगा। ऐसा नहीं है कि भारत सिर्फ रूस से हथियार खरीद रहा है। वह अमेरिका से भी बड़े रक्षा सौदे कर रहा है पर अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में रूस के अमेरिका विरोध में होने की वजह से अमेरिका ऐसे दबाव बना रहा था। भारत ने इसे ठुकरा कर अच्छा किया है। सबकी नजरें जापान के ओसाका जी-20 सम्मेलन पर हैं। इस सम्मेलन से इतर शुक्र वार की सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से हुई है। ट्रंप ने जापान के लिए रवाना होने से पहले एक ट्विट किया, जिसमें कहा कि अमेरिकी उत्पादो पर भारत में बहुत शुक्ल लगता है, उसे कम किया जाना चाहिए। इस पर वो समझौता नहीं करेंगे।

ध्यान रहे वे पहले भी अमेरिका की हार्ले डेविडसन बाइक पर 50 फीसदी से ज्यादा शुल्क लगाने के लिए भारत और प्रधानमंत्री मोदी दोनों का मजाक बना चुके हैं। उसके बाद दोनों के कारोबारी संबंधों में और बदलाव आया है। अमेरिका ने विकासशील देश के नाते भारत को कारोबार में मिलने वाली प्राथमिकता खत्म कर दी है। इसके बाद अमेरिका में भारतीय उत्पादों पर भारी भरक म शुल्क लग गया और इसके जवाब में भारत ने भी अमेरिका के 30 के करीब उत्पादों पर शुल्क बढ़ा दिया। एक तरह से कारोबारी के मैदान पर दोनों देशों में जंग छिड़ी है। बाकी बातें अलग हैं। आतंक वाद के मसले पर अमेरिका भारत के साथ है। इसलिए जी-20 में अगर आतंक वाद के खिलाफ कोई प्रस्ताव आता है तो अमेरिका की वहीं लाइन होगी, जो भारत की होगी। पर कारोबार के मामले में अमेरिका और भारत दूर हुए हैं।

प्रधानमंत्री मोदी को इस बारे में खुल कर राष्ट्रपति ट्रंप से बात करनी होगी। अगर अमेरिका भारत से छूट चाहता है तो उसे भी छूट देनी होगी। दूसरे, भारत के अंदरूनी मामलों में दखल देना बंद करना होगा। वह अपने यहां संरक्षणवादी रवैया अपना रहा है। अपने पेशेवरों को संरक्षण देने के लिए ट्रंप ने भारत सहित दुनिया भर की कंपनियों से नियम बदलवाएं हैं। उसने एच1 बी वीजा के नियम बदले हैं, जिसका सबसे ज्यादा असर भारत पर हुआ है। अमेरिका चाहता है कि भारत उसका दोस्त रहे और दोनों के बीच कारोबार फले फूले तो उसे बराबरी का मैदान बनाना होगा। राष्ट्रपति ट्रंप के मनमाने रवैए से दोनों के संबंध बेहतर नहीं होंगे, उलटे बिगड़ेंगे।

अजित कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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