प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी ने ‘सबका साथ सबका विकास’ के साथ ‘सब का विश्वास’ जोड़कर पूरे देश का विश्वास जीतने का अभियान तो शुरू किया है, किन्तु मुस्लिमों के विश्वास अभियान में सबसे अधिक बाधक भारतीय जनता पार्टी की ‘हिन्दूवादी’ छवि बाधक बन सकती है। भाजपा व उसके संरक्षक संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने काफी पहले से ‘हिन्दू राष्ट्र’ का नारा दे रखा है और इस पार्टी और संगठन के वाचाल सदस्य समय-समय पर मुस्लिमों के प्रति आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग कर उनके प्रति नफरत पैदा करने की भी कोशिश करते रहे है, अब ऐसे माहौल में अकेले नरेन्द्र भाई मोदी मुस्लिम समुदाय का विश्वास कैसे अर्जित कर सकते है? ऐसा कतई नही है कि मोदी जी सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए यह मशक्कत कर रहे है।
वे तो चाहते है कि हर वर्ग, समुदाय, जाति, साम्प्रदाय का हर शगस उनके (मोदी के ) साथ रहे, इसीलिए मोदी जी ने अल्पसंख्यक वर्गों के लिए भी कई कल्याणकारी कदम उठाए जैसे तीन तलाक का खात्मा, मदरसों में पढऩे वाले बच्चों के लिए हितकारी योजनाएं, मदरसों की किताबों के पाठ्यक्रमों व शिक्षकों की मानसिक ता में परिवर्तन के प्रयास, मदरसों व छात्रों को आर्थिक मद्द आदि किंतु इतना सब होने के बाद भी मुस्लिम समुदाय के विश्वास में कोई परिवर्तन परिलक्षित नहीं हो रहा है, इसका कारण सिर्फ और सिर्फ यही है कि भाजपा की हिन्दूवादी छवि बाधक बनी हुई है, अब यदि इस छवि को किसी भी तरह बदलने का प्रयास किया जाए तो उसकी प्रक्रिया काफी लम्बी होगी और इतना वक्त किसी के भी पास नहीं है। पीएम को पता है कि इस समस्या की जड़ क हां है और उसका निदान क्या है?
किंतु यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि आम गरीब और आम मुस्लिम में काफी फर्क है, जहां तक गरीब का सवाल है यद्यपि उसे ‘ऊँट के मुंह में जीरे’ जितना ही लाभ पहुंचाया गया, क्योंकि 2014 के चुनावी वादों को जुमलों में बदल दिया गया था, किंतु यह सही है कि गरीबों की मद्द चाहे उतनी नहीं की गई हो, किंतु चिंता अवश्य की गई। अब जहां तक मुस्लिम समुदाय का सवाल है, गरीब का कोई धर्म नहीं होता किंतु मुसलमान का धर्म होता है और यह कौम अपने धर्म और उसके रीति-रिवाजों के प्रति काफी संवेदनशील रहती है, जिसे ‘कट्टरपंथ’ कहा जाता है, इसलिए बिना इनकी धार्मिक संवेदनाओं को आह्त किए, इनका विश्वास अर्जित करना पड़ेगा और यह हूनर शायद पीएम भी अजमाने की कोशिश कर रहे है। किंतु उनके मुस्लिम पुरूष वर्ग नाराज है, वहीं मदरसों में ‘शिक्षा क्रांति’ लाने के प्रयास से आम मुस्लिम वर्ग नाराज बताया जा रहा है।
चूंकि मुस्लिम समुदाय उनके एक मात्र पवित्र ग्रंथ ‘कुरान’ की आयातों से बंधा है, और भारत में मुस्लिम समुदाय के मदरसें कुरान व धार्मिक ज्ञान पर केन्द्रित है, जहां आधुनिक शिक्षा पद्धति का लोप है, इसलिए धार्मिक मामलों में यह कट्टरपंथी समुदाय मदरसों की शिक्षा पद्धति में किसी भी तरह की छेड़छाड़ पसंद नहीं करेगा, चाहे आप या सरकार कितनी ही आर्थिक सहायता का प्रयास क्यों न कर लें? इसलिए मुस्लिमों का विश्वास अर्जित करना भाजपा की हिन्दूवादी छवि और मुस्लिमों की धार्मिक कट्टरता के चलते काफी टेढ़ी खीर है। फिर कई अन्य अयोध्या राम मंदिर, जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील मामले भी है जो मुस्लिम कौम से जुड़े है, इसलिए आज मोदी जी के इरादे चाहे कितने ही नैक क्यों न हो? किंतु जब तक मुस्लिम समुदाय को सोच की इन सीमाओं के बंधन मुक्त नही किया जाएगा, तब तक ये प्रयास सफल नहीं हो पाएगें।
ओमप्रकाश मेहता
(लेखक स्तंभकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं )