केले का छिलका

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उन्नति के पथ पर
उन्नति के पथ पर

बृजमोहन स्टेट बैंक में एक छोटे अधिकारी हैं, ईमानदार हैं। पत्नी का नाम सुलेखा है। दो बच्चे हैं- बड़े का नाम बिट्टू व छोटे का नाम पिन्टू है। बिट्टू दसवीं कक्षा का छात्र है तथा पिन्टू तीसरी कक्षा में पढ़ता है।

आज राम नवमी का त्यौहार है। बैंक व स्कूल की छुट्टी है। बृजमोहन बैठक में बैठे नॉवेल पढ़ रहे हैं। सुलेखा भी पास बैठी बुनाई कर रही हैं। पिन्टू नीचे बैठा कोई गेम खेल रहा है। बिट्टू के किसी दोस्त के जन्म दिन की पार्टी है। वह वहीं गया हुआ है। शाम तक सभी बच्चे खेलेंगे फिर केक काटा जाएगा। केक! यह अंग्रेजों से सीख लिया। उनकी समय-बद्धता और उनके अनुशासन को नहीं सीखा।

सिर नीचे किए सुलेखा ने स्वेटर बुनते-बुनते बृजमोहन से पूछा, “तुम तो बड़ी किताबें पढ़ते रहते हो, यह तो बताओं राम ने सिता को क्यों निकाला?”

बृजमोहन एक जासूसी उपन्यास पढ़ रहे थे। बात क्लाईमैक्स पर आ रही थी। कातिल की पकड़ होने की वाली थी। ऐसे में भला कोई भी व्यक्ति क्या जवाब देता। वे चुपचाप अ़पना नॉवेल पढ़ते रहे।

सुलेखा ने भी शायद जवाब की अधिक परवाह नहीं की। वह स्वेटर बुनती रहीं। थोड़ी देर बाद पहले प्रश्न का उत्तर न मिलने पर भी उन्होंने दूसरा प्रश्न पूछा, “अच्छा यह बताओं गौतम ऋषि ने अहिल्या को पत्थर क्यों बना दिया?”

अब भी जवाब नहीं मिला। अबकी बार सुलेखा ने सिर उठाया। बृजमोहन की तरफ देखा और उनकी किताब हाथ से छीनते हुए बच्चों की तरह बोलीं, “पहले मेरी बातों का जवाब दो तब पढ़ने दूंगी।”

केले का छिलका
केले का छिलका

बृजमोहन गुस्सा करना तो जानते ही नहीं थे। फिर भी झुंझलाहट से बोले, “इस उम्र में भी बच्चों की तरह ज़िद करती हो मुझे तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर नहीं पता। अच्छा किताब दो। बस पांच मिनट में पकड़ा जाएगा।”

”कौन पकड़ा जाएगा?” सुलेखा ने पूछा। बृजमोहन बड़ी उत्तेजना से बोले, ‘अरे कातिल और कैन।’

”तुम जानो और जाने तुम्हारा कातिल। मैं तो किताब तब दूंगी जब मेरे सवालों का जवाब दोगे।”

“मैंने कहा न कि तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर मुझे नहीं पता।”

“तुमने सुना भी था कि मैंने तुमसे क्या पूछा था?”

“अच्छा बाबा! पूछो फिर से। क्या जानना है?” “देखो, भगवान राम ने सीता जी को घर से निकाल दिया। लक्ष्मण भैया, सीता जी को चुपचाप बिना बताए जंगल ले गए और छोड़ आए। क्या यह भगवान राम के लिए ठीक था?”

“भगवान राम को हम मर्यादा पुरुषोत्तम करते हैं। यह ठीक ही होगा।”

“इसका तो यह अर्थ हुआ कि कल कोई उल्टी-सीधी बात मेरे विषय में तुमसे कह दे तो तुम मुझे भी…..”

सुलेखा की बात को काटते हुए बृजमोहन बोले, “जंगल अब बचे ही कहां हैं जो तुम्हें जंगल छोड़ आऊँगा। अवैध रूप से सारे जंगल काट डाले गए। लाओ किताब दोत “बात को टा
लो मत, बताओं तुमसे यदि…” अभी सुलेखा ने बात समाप्त नहीं की थी कि बृजमोहन फिर बोल पड़े, “देखो किताब दे दो नहीं तो….”

साभार
उन्नति के पथ पर (कहानी संग्रह)
लेखक
डॉ. अतुल कृष्ण

(अभी जारी है… आगे कल पढ़े)

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