अक्सर शराब के समर्थक यह कहते सुने गए हैं कि देवता भी तो शराब पीते थे। सोमरस क्या था] शराब ही तो थी। प्राचीन वैदिक काल में भी सोमरस के रूप में शराब का प्रचलन था या शराब जैसी किसी नशीली वस्तु का उपयोग करते थे देवता। कहीं वे सभी भंग तो नहीं पीते थे जैसा कि शिव के बारे में प्राचलित है कि वे भंग पीते थे। वैदिक काल में आचार&विचार की पवित्रता का इतना ध्यान रखा जाता था कि जरा भी कोई इस पवित्रता को भंग करता था उसका बहिष्कार कर दिया जाता था या फिर उसे कठिन प्रायश्चित करने होते थे। यह सामान्य सी बात है कि कोई भी धर्म कैसे शराब पीने और मांस खाने की इजाजत दे सकता है क्योंकि धर्म-अध्यात्म की पुस्तकों में हम जगह जगह पर नशे की निंदा या बुराई सुनते हैंए तब धर्म के रचनाकर और देवता कैसे शराब पी सकते हैं।
रामराज में दूध मिला] कृष्णराज में घी और कलयुग में दारू मिली जरा सोच-समझकर पी। हमें यह बात कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि आज जो समय चल रहा है वह घोर कलयुग है। वैसे भी आप देख ही रहे हैं कि जिस प्रकार से आज का इंसान प्रकृति के सारे नियम कायदे कानून को ताक पर रखकर सिर्फ अपना भला सोच रहा है। ठीक उसके विपरीत प्रकृति भी समय-समय पर अपना चमत्कार दिखाती है। चमत्कार भी ऐसे कि मानवजाति को हिलाकर रख देती है। परंतु फिर भी इंसान अपने ठाठबाट के लिये जी जोर से लगा हुआ है। कहने को कहते नहीं थकते कि हम इक्कीसवी सदी की ओर बढ़ रहे हैं। परंतु उन्हें अपना भविष्य नहीं दिखाई दे रहा है। आज उदाहरण हम सबके सामने है। क्योंकि अभी कुछ महीनों पहले सहारनपुर में सैंकड़ो लोग जहरीली शराब पीकर मौत के काल में समा गये।
पड़ताल के नाम पर सिर्फ और सिर्फ जैसा होता आया है आपके सामने है। अब जब पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक जिले में जहरीली शराब का सेवन करने से दर्जनों लोग अकाल मौत ने अपने आगोस में ले लिया। कार्रवाई हुई पर क्या ऐसा ही होता रहेगा। यह एक विचारणीय प्रश्न है। वैसे भी हमारी सरकारों को शराब की बिक्री से टैक्स के रूप में 60 फीसदी तक पैसा राजस्व को आता है। परंतु जितना पैसा दारू की बिक्री से राजस्व सरकार को मिलता है उससे कई गुना हमारे सरकारी अस्पतालों में ऐसे मामलों में पीड़ित लोगों के ईलाज पर धन अधिक खर्च होता है। और इससे भी बड़ी बात तो यह है कि जो लोग जहरीली शराब के शिकार होते हैं उनके परिवार का क्या होता होगा। यह एक बड़ा ही सोचनीय प्रश्न है। इससे तो यही बात साबित होती है। वाकई हमारी सरकारें गरीब लोगों का कितना ख्याल रखती हैं। तभी तो आपको देखने को मिल ही जायेंगे कि जो संसाधन एक मानव जाति के विकास के लिये होने चाहिएं उनसे कई गुना ज्यादा हर चैराहे पर मदीरा के स्टेशन आपको मिल ही जायेंगे। यानी इन्हें लेने के लिये किसी भी ग्राहक को लाइन में लगने की आवश्यकता नहीं होगी।
परंतु यह हमारे देश का दुर्भाग्य होगा कि जिस तरह से हर चैराहे पर मदीरा की दुकानें मिल जायेंगी। लेकिन यदि किसी भी जनमानस को मंदिर] गुरूद्वारा] मस्जिद] चर्च या अन्य किसी धार्मिक स्थल पर जाना हो तो वह घर से कोसों दूर हो सकता है। जहां भीड़ होनी चाहिए वहां आपको भीड़ नहीं मिलेगी। और तो और यदि आप गरीब परिवार से ताल्लुक रखते है। तो अपने बच्चे की पढ़ाई के लिये आपको दूर किसी स्कूल में जाना पड़ेगा। यानिके देश के हर गरीब बस्ती] आबादी के पास इतने शराब के ठेके मिलेंगे कि आपको इनके लिये भटकना न पड़े। और तो और देश में अभी ऐसी सुविधाएं मिलने लगने की संभावना है कि आपको ऐसी वस्तुओं की होम डिलिवरी मिल सकती है। क्योंकि अब हम आधुनिक भारत में प्रवेश कर रहे हैं। यहां एक बात तो बिल्कुल साफ है कि देश की गरीब जनता को शिक्षा] स्वास्थ्य] रोजगार को लेकर आने वाले दिनों में रोने की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि जब शायद कोई ऐसा दिन जाता होगा जब देश में जहरीली शराब पीने से कोई गरीब न गया हो। वैसे भी हमारे देश के गरीबी जनता के आंकड़े कम होते जा रहे हैं। यानिके अगली-पिछली सरकारों ने अपना ध्यान केंद्रीत कर देश की गरीबी दूर की है। यदि ऐसा ही हाल रहा तो वास्तव में ही देश की गरीबी अपने आप ही दूर जायेगी। यहां एक मुहावरा बिल्कुल शाश्वत होता दिखा रहा है कि ‘न रहेगा बांस न बजेगी बांसूरी।
सुदेश वर्मा
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये अपने निजि विचार हैं