मनुष्य के जीवन में बहुत से अवसर ऐसे आते हैं, जब हम अनायास या आवेश में ऐसी बात बोल जाते हैं कि, जिसका पछतावा ताउम्र रहता है। न शब्द वापस लिए जा सकते हैं, न अफसोस जाहिर करने से बात संभलती है। इसलिए पश्चाताप की अग्नि में जलने के सिवाय कोई चारा नही रहता है। महाभारत में कुछ ऐसी ही अनन्त यात्रा की बात को हम आपको जीवन की सीख देने वाली कहानियों को पेश करते हैं। एक ऐसे ही प्रेरक प्रसंग की हम बात कर रहे हैं, जिससे सीख लेकर आप अपनी जिंदगी को सही दिशा का राही बना सकते हैं।
यह कथा श्रीकृष्ण और उनके प्रिय सखा कर्ण से जुड़ी है। कैसे एक शब्द ने कर्ण को पश्चाताप के आग में झोंक दिया और उसी अग्नि में वह जिंदगी भर जलते रहे और लाख चाहते हुए भी क्षमा के लिए उनके पास न शब्द थे न ही शरीर से वह अपने आपको कभी तैयार कर सके। प्रसंग उस समय का है, जब हस्तिनापुर के द्वुत क्रीड़ाघर में पांडवों के पराजित होने पर द्रौपदी को चीर हरण के लिए सभागृह में लाया गया था। उस वक्त द्रौपदी ने कुरू राजवंश के वरिष्ठजनों से भरी सभा में अपनी लाज बचाने के लिए गुहार लगाई थी। द्रौपदी ने कर्ण की ओर भी एक क्षणमात्र के लिए देखा था। महावीर कर्ण उस वक्त दुर्योधन के लिए मित्र धर्म निभा रहे थे। मित्रता का पर्दा उनकी आंखों पर पड़ा हुआ था इसलिए भरी सभा में वह अर्थ और अनर्थ के भेद को समझ नहीं पाए। कुरु सभागृह में उस वक्त भारी वाद-विवाद चल रहा था।
कुरुवंश के महारथी दुर्योधन को हर तरीके से समझाने का प्रयत्न कर रहे थे, कि यह अधर्म कुरू राजवंश के विनाश की वजह बन सकता है, लेकिन उस वक्त वरिष्टजनों के अमृतवचनों को दुशासन और शकुनी जैसे लोगों के विष वचन काट रहे थे। उसी वक्त आवेश में आकर कर्ण ने द्रौपदी के लिए ऐसा शब्द बोल दिया, जिसकी कल्पना द्रौपदी और कुरू राजवंश तो क्या स्वयं कर्ण को भी नहीं थी। जब द्रौपदी ने कहा कि ‘‘भरी राजसभा में कुरू राजवंश के वरिष्टजनों के सामने जब उनकी पुत्रवधु का इस तरह से अपमान किया जाएगा, तो राजवंश हमेशा के लिए कलंकित हो जाएगा। “इस बात पर कर्ण आवेश में आ गए और कहा कि ‘‘पांच पतियों वाली पत्नी वेश्या के समान होती है उसका मान क्या और अपमान क्या।” इसके बाद जो कुछ हुआ वह इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। रात को जब कर्ण अपनी पत्नी के साथ बैठे, तो उन्होने कर्ण के चेहरे पर कुछ चिंता के बादल देखे और पूछा कि “आज आप थके हुए से चिंतित लग रहे हैं। आज राजदरबार में कुछ खास बात हुई क्या, तब कर्ण ने वृषाली की बात को टाल दिया।
वृषाली ने भी इस बात का अंदाज लगा लिया कि हो न हो कोई वजह है जो कर्ण आज परेशान है। तब वृषाली ने कहा कि “मैं आपको कई दिनों से एक खास बात बताना चाहती हूं, लेकिन समय नहीं मिल पाता इसलिए मैं बता नहीं पाती हूं। मेरी प्रिय सहेली द्रौपदी आपकी बहुत इज्जत करती है और अक्सर मुझसे कहती है कि तुम बड़ी भाग्यवाली हो की तुमको कर्ण जैसा शूरवीर पति मिला। मैं भी यह सोचती हूं यदि कर्ण मेरे भी पति होते, तो कितना अच्छा होता। इतना सुनते ही कर्ण के पैरो तले जमीन खिसक गई और वह स्तब्ध रह गए कि जिस नारी के सतित्व पर आज उसने दाग लगाया, वह उसकी इस हद तक इज्जत करती है। लंबे समय तक वह इस अवसर की तलाश में रहे कि कोई ऐसा व्यक्ति मिल जाए, जिससे वह अपने दिल की बात कहकर अपनी भड़ास निकाल सके।
यह मौका उनको तब मिला जब श्रीकृष्ण कौरवसभा में शांतिदूत बनकर आए और शांति संधि न होने पर राज दरबार के बाहर चले गए। उस समय वो अपने साथ कुछ दूरी तक कर्ण को भी साथ में लेकर गए और कर्ण को यह बताया कि कुंती उनकी मां है और पांडव उनके भाई है इसलिए वह दुर्योधन को छोड़कर पांडवों के खेमें की ओर प्रस्थान करे। तब कर्ण ने कहा कि वह मित्रता के वचन से बंधे हुए हैं इसलिए युद्ध दुर्योधन की ओर से ही लड़ेंगे। मगर, यह राज आप मेरी मृत्यु तक किसी को भी मत बताना और मेरी मृत्यु के बाद महासती द्रौपदी से मेरे वचनों के लिए माफी भी मांग लेना। इस कहानी का सार यही है कि बगैर सोच-विचार या आवेश में बोले गए शब्द आपके लिए बड़ी मुसीबत की वजह बन सकते हैं। आपको ऐसे आत्मग्लानी के दलदल में धकेल देते हैंए जहां से बाहर निकलना मुश्किल ही नहीं लगभग असंभव होता है।
परंतु आजकल जिस प्रकार से विश्व के सबसे बड़े और गुरू कहे जाने वाले लोकतंत्र के चुनावी संग्राम में एक-दूसरे पर कटाक्ष करते हुए ऐसे बोल बोल रहे हैं न तो उनके सिर और पैर और न ही उनमें कोई सरोकार है। एक बहुत बड़ा सोचनीय प्रश्न यह है कि ऐसे लोगों पर किसी प्रकार का कोई डर-भय नहीं दिखता। यानिके देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट हो या फिर चुनाव आयोग। महाभारत में तो द्रौपदी का एक बार चीरहरण हुआ था और उस समय कर्ण ने कोई ऐसी बात आवेश में कह डाली थी कि जन्म-जन्मों तक भी उन्हें उस बात का पाश्चाताप करना पड़ा।
देश की जनता के इतने मुद्दे हैं कि यदि गिनने बैठे तो कई महीनें लग जायेंगे परंतु यह बातें खत्म नहीं होंगी। परंतु इन सबको भुलाकर जनता को गुमराह करना तो इन देश के रहनुमाओं से सीखें। शायद वे इस बात को भूल गये कि जनता जर्नादन होती है। वह सब जानती है। अब उन्हें मूर्ख नहीं बनाया जा सकता।
सुदेश वर्मा