सियासत में शिष्टाचार

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याद नहीं, इतना तीखा और बेतरतीब चुनाव कभी रहा है। बार-पलटवार की जुबानी जंग में नेताओं से सारी मर्यादा ताक पर रख दी है। लेकिन इन सबके बीच सियासत के गलियारे से दिल को राहत देने वाली एक तस्वीर सामने आई है जो शिष्टता की अहमियत को दर्शाती है। हुआ यूं कि इसी सोमवार को कांग्रेस के दिग्गज नेता शशि थरूर को मंदिर दर्शन के दौरान चोट लग गई थी और अस्पताल में उन्हें भर्त्ती होना पड़ा। उन्हें वहां देखने भाजपा नेता निर्मला सीतारमण पहुंची और कुशल क्षेम पूछा। इस बाबत थरूर ने ट्वीट किया- निर्मला सीतारमण का यहां आना दिल को छू गया। केरल में अपने व्यस्त चुनावी कार्यक्रम के बीच मंगलवार सुबह अस्पताल पहुंच कर उन्होंने मेरा हाल जाना। भारतीय राजनीति में शिष्टाचार एक दुर्लभ गुण है। उन्हें इसका बेहतरीन उदाहरण पेश करते देखकर अच्छा लगा।

जिस मानवीय अन्तरिम संवेदना को शशि थरूर ने ट्वीट किया है, क्या उस पर नेतागण ध्यान देंगे। सत्ता संघर्ष में शहुर गंवाते नेताओं से किस बात की उम्मीद की जा कसती है, यह समझा जा सकता है। शायद पहली बार चुनाव आयोग ने भड़काऊ भाषा का इस्तेमाल करने वाले नेताओं पर कार्रवाई की है। मायावती योगी आदित्यनाथ, आजम खान और मेनका गांधी पर आचार संहिता के उल्लंघन की गाज गिरी है। पर लगता है इस तरह की सख्ती भी बिगड़ैल नेताओं पर लगाम लगाने की लिए अपर्याप्त नहीं है। तभी तो राहुल गांधी के कृपा पात्र नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने भी चुनावी मंच से मुस्लिम समाज को एकजुट होने की अपील की है। उन्होंने कहा मुस्लिम एकजुट हुए तो मोदी सुलट जाएंगे। हो सकता है कि इन महाशय पर भी चुनाव आयोग की तरफ से प्रचार पर रोक जैसी कार्रवाई हो।

लेकिन यह सिलसिला सिर्फ इस तरह की कार्रवाई से नहीं रुकने वाला। लगभग तय सिलसिला सिर्फ इस तरह की कार्रवाई से नहीं रुकने वाला लगभग तय लग रहा है। पहले से निशाने पर रहा आयोग नये आरोपों का सामना कर रहा है। मायावती ने कहा कि मोदी सरकार के दबाव में चुनाव आयोग ने एक्शन लिया है। योगी आदित्यनाथ ने चुनाव आयोग को जो जवाब दिया है, उसका सार यह है कि बजरंग बली उनके आराध्य हैं, उनका नाम लेने के पीछे किसी का अपमान ध्येय नहीं होता और हरा वायरस को उमपा बताते हुए अपना पक्ष रखते हुए खुद को दोषी नहीं मानते।

मंगलवार को उन्होंने हनुमान सेतु जाकर सुंदर कांड का पाठ भी किया है। अपने-अपने ढंग से आयोग निशाने पर है। सियासी पार्टियां वोटों के ध्रवीकरण के लिए किसी भी हद से गुजरने को आमदा हैं। ऐसी स्थिति में केरल से आई तस्वीर भरोसा दिलाती है कि उम्मीद बाकी है और किसी को जोड़ने या उसके ह्रदय तक पहुचने के लिए बदजुबानी नहीं, आपका सौम्य व्यवहार पर्याप्त होता है। किसी को अपमानित करने वाली भाषा आखिरकार खुद पर बोझ बन जाती है। यब बात और कि कुछ वक्त के लिए उसका कोई प्रतिक्रियात्मक फायदा मिलता दिखता है। लेकिन लम्बी राजनीति के लिए गाली-गलौज और भड़काऊ तौर-तरीकों से बात नहीं बनती। इसके लिए जन अपेक्षाओं को रेखांकित करती नीतियुक्त योजना चाहिए।

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