गन्ना खराब कर देगा पन्ना

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मीडिया में छपे और लखनऊ में गन्ना आयुक्त कार्यालय से इकट्टा किए गए आंकड़ों के अनुसार मौजूदा 2018-19 पेराई सीजन (अक्टूबर-सितंबर) के दौरान 22 मार्च तक राज्य की चीनी मिलों ने 24,888.65 करोड़ के गन्ने खरीदे थे। राज्य सरकार द्वारा विर्धारित सामान्य गन्नों के लिए 315 रुपये प्रति क्विंटन और समय से पहले तैयार हो जाने वाले गन्नों को 325 रुपये प्रति क्विंटल पर गन्ना खरीदा गया।

उत्तर प्रदेश के किसानों से यह नरेन्द्र मोदी का खास वादा था। पहली बार उन्होंने ये वादा 2014 के आम-चुनाव से पहले किया। दूसरी बार 2017 में उत्तर प्रदेश की विधानसभा के चुनाव से पहले। कहा था कि भाजपा सरकारें बनी तों किसी गन्ना किसान की कोई रकम बकाया नहीं रहेगी। गन्ना किसानों का बकाया 10,000 करोड़ रुपये से अधिक हो गया है। अधिकतर ये बकाया पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसानों का है। मीडिया में छपे और लखनऊ में गन्ना आयुक्त कार्यालय से इकट्टा किए गए आंकड़ो के अनुसार मौजूदा 2018-19 पेराई सीजन (अक्टूबर-सितम्बर) के दौरान 22 मार्च तक राज्य की चीनी मिलों ने 24, 888.65 करोड़ के गन्ने खरीदे थे। राज्य सरकार द्वारा निर्धारित सामान्य गन्नों के लिए 315 रुपये प्रति क्विंटल और समय से पहले तैयार हो जाने गन्नों को 325 रुपये प्रति क्विंटल पर गन्ना खरीदा गया।

चीनी मिलों को गन्ने की खरीददारी के 14 दिनों के भीरत 22,175.21 करोड़ रुपये का भुगतान करना था, लेकिन वास्तविक भुगतान राशि सिर्फ 12,339.04 करोड़ रुपये रही। उसमें से 9,836.17 करोड़ रुपये बकाया है। पिछले 2017-18 सीजन के 238.81 करोड़ रुपये के बकाया के साथ किसानों का कुल बकाया धनराशि 10,074.98 करोड़ रुपये है। इन 10,074.98 करोड़ रुपये में से 4, 547.97 करोड़ रुपये (यानी 45 फीसदी से अधिक) सिर्फ मेरठ, बागपत, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर और सहारनुरके कारखानों पर बकाया हैं। 2017 में विधानसभा चुनाव के घोषणापत्र में भाजपा ने वादा किया था कि उनकी, सरकार गन्ने की बिक्री के 14 दिनों के भीरत गन्ने का पूरा भुगतान किसानों को करेगी।

मौजूदा उत्तर प्रदेश गन्ना (आपूर्ति और खरीद विनिमयन) अधिनियम 1953 में यह प्रावधान पहले से ही है। मिल मालिकों का कहना है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ने का भुगतान बड़ी समस्या है, जहां सिंभावली, शुगर्स, यूके मोदी, मवाना, राणा और बजाज हिदुस्तान जैसे मसूहों की मिले हैं, जिनका पैसा सर्वाधिक फंसा हुआ है। दूसरी तरफ, डीसीएमश्रीराम, डालमिया भारत, बलरामपुर चीनी, त्रिवेणी इंजीनियरिंग, धामपुरशन और द्वारीकेशशुगर इंडस्ट्रीज 80 फीसदी या इससे अधिक भुगतान करने में सफल रही हैं। ये मुद्दा अब बड़ा राजनीतिक रूप ले चुका है। विपक्षी दल इस पर सरकार को घेर रहे हैं। जबकि उत्तर प्रदेश सरकार इस समस्या के लिए पिछली सरकारों को दोषी ठहरा रही है। असल बात यह है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान अधिक संगठित है। ये मुद्दा यहां राजनीतिक रूप से संवेदनशील साबित हो सकता है।

रविन्द्र कुमार
लेखक पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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