सार्वजनिक धर्मशाला बनाना

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वे एक सार्वजनिक कार्यकर्ता हैं। वैसे उनका राजनीति में भी थोड़ा दखल है। वे भैयासाहब के गुडबुक में माने जाते हैं। उन्होंने अपने सामाजिक व राजनीतिक जीवन के बलबूते पर अपने समाज के लिए ‘एक धर्मशाला’ बनाने के लिए जमीन ले ली है। अब उनकी इच्छा है कि उस प्लाट पर समाज के लिए एक धर्मशाला का निर्माण किया जाए। इस कार्य की स्वीकृत्ति के लिए एक निर्धारित दिन उन्होंने समाज को साधारण सभा का आयोजन किया और उसमें समस्त समाज बंधुओं-बहनों से निवेदन किया कि हम लोगों ने समाज की धर्मशाला बनाने के लिए जमीन तो हासिल कर ली है और अब हमें उस पर एक सर्वसुविधायुत धर्मशाला बनवानी है। जब धर्मशाला बन जाएगी तो वह हम लोगों को अपने घर के अपने लड़के लड़कियों की शादी, बच्चों को बर्थ-डे पार्टियां आदि… आदि कार्यक्रम करने में बहुत उपयोगी होगी। हम अपने समाजजनों के लिए धर्मशाला रियायती दरों पर उपलध कराएंगे। साथ ही जब जिस दिन किसी समाज जन की बुकिंग नहीं होगी, उन तारीखों में अन्य लोगों को भी किराए पर धर्मशाला दे सकेंगे। ऐसा करने से हमें जो आय होगी वह धर्मशाला के रखरखाव के काम आ सकेगी। उनके इस शानदार लुभावने प्रस्ताव को बहुमत से तत्काल स्वीकृत्ति मिल गई।

वे बहुत सजग हैं। उन्होंने एक कमेटी बनाई और उसके मुखिया के बतौर धर्मशाला बनाने के लिए एक करोड़ रुपये का लोन स्वीकृत करवा लिया। जैसे ही धर्मशाला के निर्माण का कार्य शुरू हुआ, वैसे ही उन्होंने अपने स्वयं के मकान निर्माण का मुहूर्त भी करा लिया। अब र्धमशाला और उनके मकान का काम साथसाथ चलने लगा। वे बहुत ही सजग व चतुर हैं। जब धर्मशाल के लिए पचास हजार ईंट मंगवाई गई, तब उन्होंने बीस हजार ईंट अपने मकान के प्लाट पर डलवा ली। इसी प्रकार जब सीमेंट की तीन सौ बोरी धर्मशाला निर्माण के नाम पर मंगवाई गई, तब सीमेंट की पचास बोरी उन्होंने अपने मकान के प्लाट पर पटकवा ली। इसी प्रकार निर्माण में लगने वाली हर सामग्री की जो भी चीजें आती, उसका कुछ हिस्सा वे अपने मकान के प्लाट पर पटकवा लेते। यकीन मानिए, उनका शानदार बंगलेनुमा मकान पहले तैयार हो गया, लेकिन धर्मशाला का काम अधूरा ही पड़ा है और उन्होंने फिर से समाज की साधारण सभा बुलवाकर धर्मशाला का अधूरा पड़ा काम निपटाने के लिए पचास लाख रुपये का अतिरित लोन लेने का प्रस्ताव समाजजनों के सामने रखने की योजना बनाई है। समाजजन सोच में डूबे हुए हैं कि उनका बंगला बिना कोई लोन लिए धर्मशाला बनने से पहले कैसे बनकर तैयार हो गया?

डॉ.विलास जोशी

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