इतिहास का कूड़ेदान बड़ा होता है मंत्रियो से काम लेना उनका काम

0
141

विदेशी भाषा के माध्यम पर कड़ा प्रतिबंध हो। विदेशी भाषाएं जरुर पढ़ाई जाएं लेकिन सिर्फ ऊंची कक्षाओं में स्वैच्छिक तौर पर और कम समय के लिए। तीसरा, जातीय आरक्षण खत्म किया जाए और राजनीतिक दल ऐसा माहौल बनाएं कि लोग जातीय उपनाम लगाना बंद करें।छठा, पुराने आर्यावर्त्त का जो सपना महावीर स्वामी, महर्षि दयानंद और डॉ. लोहिया ने देखा था, उसे साकार करने के लिए दक्षिण और मध्यएशिया के देशों का महासंघ खड़ा किया जाए, जिसका साझा संविधान, साझी संसद, साझा बाजार और सांझी संस्कृति हो। यदि इस नए मंत्रिमंडल को लेकर यह सरकार इन कामों को पूरा कर सके या इस दिशा में आगे बढ़ सके तो इतिहास उसे याद रखेगा वरना इतिहास का कूड़ेदान तो काफी बड़ा होता ही है।

उनकी लोकप्रियता थोड़ी घटी जरुर है, कोरोना की वजह से लेकिन आज भी उनकी आवाज पर पूरा देश आगे बढऩे को तैयार है। इस नए मंत्रिमंडल का पहला लक्ष्य तो यह होना चाहिए कि देश में प्रत्येक व्यति को शिक्षा और चिकित्सा मुफ्त मिले। शिक्षा मन और बुद्धि को मजबूत बनाए और चिकित्सा तन को। देश का तन और मन स्वस्थ रहे तो धन तो अपने आप पैदा हो जाएगा। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निजी अस्पतालों और शिक्षा-संस्थाओं पर पूर्ण प्रतिबंध लगे या उन्हें नियंत्रित किया जाए। देश में शत-प्रति-शत लोगों को शिक्षा और चिकित्सा उपलब्ध हो। शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में भारत, यूनान और चीन की प्राचीन पद्धतियों का लाभ बेखटके उठाया जाए। दूसरा, उच्चतम स्तर तक शिक्षा का माध्यम स्वभाषा हो।

स्वतंत्र भारत में इंदिराजी के ‘कामराज प्लान’ के बाद सबसे बड़ी साहसिक पहल पीएम नरेंद्र मोदी ने की है। नए और युवा मंत्रियों को अपने अनुशासन में रखना और उनसे अपने मन मुताबिक काम करवाना आसान रहेगा लेकिन उनसे कौन से काम करवाना है, यह तो प्रधानमंत्री को ही तय करना होगा। पिछले सात वर्षों में इस सरकार ने कुछ भयंकर भूलें की हैं तो कई अच्छे कदम भी उठाए हैं, जिनका लाभ जनता के विभिन्न वर्गों को बराबर मिल रहा है। जैसा राष्ट्र गांधी, लोहिया और दीनदयाल उपाध्याय बनाना चाहते थे, वैसा राष्ट्र बनाना तो दूर रहा, उस लक्ष्य के नजदीक पहुंचना भी हमारी कांग्रेस, जनता पार्टी और भाजपा सरकारों के लिए मुश्किल रहा है। इस समय नरेंद्र मोदी चाहें तो उक्त महापुरुषों के सपनों को कुछ हद तक साकार कर सकते हैं। क्योंकि इस वत पार्टी, सरकार और देश में उनका एकछत्र राज है। उनकी पार्टी और विपक्ष में उनके विरोधियों के हौंसले पस्त हैं।

डा. वेद प्रताप वैदिक
(लेखक भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here