अमेरिकी आर्थिक ‘पुनर्जागरण’ की उम्मीद नहीं

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बड़े -बड़े सरकारी प्रोत्साहनों और टीकाकरण की सफलता की बदौतल अनुमान है कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था इस साल 7% की दर से बढ़ेगी और यह अभी वैश्विक रिकवरी की अगुवाई कर रहा है। टिप्पणीकार ‘अमेरिकी पुनर्जागरण’ की बात कर रहे हैं। समस्या यह है कि अमेरिका हाल ही में आर्थिक पुनर्जागरण से गुजरा है। इसके दोबारा होने की उम्मीद कम है। एक दशक पहले, 2008 के वित्तीय संकट में, ‘स्टैंडर्स एंड पूअर्स’ ने पहली बार अमेरिकी सरकार के कर्ज को घटाया था, जिससे अमेरिकी गिरावट के भयानक अनुमान लगाए गए थे।

इसकी बजाय 2010 के दशक में अमेरिकी आर्थिक शक्ति का विस्तार हुआ। वैश्विक जीडीपी में अमेरिकी हिस्सेदारी 2011 की 21% से बढ़कर पिछले साल 25% तक पहुंच गई। औसत आयें भी यूरोप की तुलना में कहीं ज्यादा हो गईं। 2020 की शुरुआत तक, बेरोजगार मध्यमवर्ग में ‘निराशा’ के बावजूद, अमेरिकी उपभोक्ता और लघु व्यापारों का आत्मविश्वास नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया।

वित्तीय महाशक्ति के रूप में अमेरिका और भी ऊंचाई पर पहुंचा। वैश्विक स्टॉक मार्केट में उसकी 2010 के दशक की 42% हिस्सेदारी, 58% तक पहुंच गई। अमेरिकी डॉलर सबसे मजबूत होकर उभरा, जिससे अमेरिका को विकसित देशों में बढ़त मिली। 2019 के अंत तक लोगों तथा कॉर्पोरेशन को 75% विदेशी कर्ज डॉलर में दिया जाने लगा था। हर दस में से 6 देशों ने डॉलर का ‘सहारा’ लिया। डॉलर को रिजर्व करंसी के रूप में चुनौती देने के चीन के प्रयास भी 2010 के दशक में असफल हो गए।

वापसी वाले दशक के बाद इसकी उम्मीद कम है कि 2020 के दशक में अमेरिका का फिर उदय हो। जैसा कि मैंने महामारी की शुरुआत में भी कहा था कि शक्तिशाली उछाल के बाद हमेशा लंबे समय तक बुरे असर रहते हैं। अमेरिकी अर्थव्यवस्था ने 1960 के दशक में दुनिया का नेतृत्व किया, लेकिन 70 के दशक में उसे तेल से चलने वाले सोवियत संघ से पीछे रहने की चिंता रही। 80 के दशक में बढ़ते जापान से परेशान रहा। अमेरिका ने 90 के दशक में टेक बूम के दौरान जोरदार वापसी की, लेकिन 2000 का दशक चीन के नेतृत्व में उभरते बाजारों का रहा।

अमेरिकी बढ़त का अनुमान इस विश्वास पर आधारित है कि वह टेक्नोलॉजी में आगे बना रहेगा। लेकिन अमेरिकी इंटरनेट कंपनियां एशिया से लेकर अफ्रीका तक, उभरते बाजारों में चुनौतियों का सामना कर रही हैं, जहां स्थानीय उद्यमी स्थानीय मार्केट लीडर बना रहे हैं। यूरोप भी रोबोटिक्स व एआई के क्षेत्र में तेजी से बढ़ रहा है।

उछालों को अक्सर संतोष मार देते हैं, जिसने फिलहाल अमेरिका को जकड़ रखा है। दोनों पार्टियों में लोगों का तर्क है कि अमेरिका खुलकर उधार लेना और खर्चना जारी रख सकता है क्योंकि डॉलर की स्थिति को दुनिया में कोई चुनौती नहीं है। लेकिन फेडरल बैंकों से निकलते आसान पैसे (ऋण), जो ऐसी ‘जॉम्बी’ कंपनियों को जा रहे हैं, जो ब्याज चुकाने लायक भी नहीं कमातीं, इससे डॉलर के कमजोर होने का खतरा है। अमेरिकी सरकार और कॉर्पोरेशन अब इतने कर्ज में डूबे हैं कि यह कल्पना करना मुश्किल है कि वे अर्थव्यवस्था को आगे बूस्ट कैसे करेंगे।

2010 में अमेरिका पर दुनिया का 2.5 ट्रिलियन डॉलर कर्ज था, जो अमेरिकी जीडीपी का 17% था। पिछले साल की शुरुआत में यह देनदारी 10 ट्रिलियन डॉलर यानी जीडीपी की 50% से भी ज्यादा तक पहुंच गई। यह ऐसी सीमा है जिससे अतीत में मौद्रिक संकट आए हैं। अभी यह देनदारी 14 ट्रिलियन डॉलर (जीडीपी की 67%) पर है।

इस सबका मतलब यह नहीं है कि अमेरिकी पतनवादी अंतत: सही साबित होंगे। पतनवादी अब भी मानते हैं कि चीन अमेरिका से आगे निकल जाएगा, लेकिन वे भूल जाते हैं कि चीन को भी भारी कर्ज की समस्याएं हैं। इसकी संभावना ज्यादा है कि अमेरिका के लिए यह एक औसत दशक हो, जिसपर हालिया अतिरिक्त उछाल का बोझ होगा।

अन्य बाजारों के मुकाबले अमेरिकी स्टॉक्स 100 साल के शिखर पर हैं। इतनी ऊंचे वैल्यूएशन नया आशावाद दर्शाते हैं कि एक दशक की अप्रत्याशित अमेरिकी सफलता के बाद, कई विश्लेषकों को आगे भी सफलता की ही उम्मीद है। दुख यह है कि अमेरिका के लिए शायद इससे अच्छा और कुछ न हो।

रुचिर शर्मा
(लेखक ग्लोबल इन्वेस्टर, बेस्टसेलिंग राइटर और द न्यूयॉर्क टाइम्स के स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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