बात निकली है तो अंजाम तक जरूर पहुंचेगी। दिल्ली व दिल वालों की दूरी अवश्य कम होगी। जमू-कश्मीर में जमी सियासी बर्फ पिघलनी की चाहिए। अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधान हटने के बाद केंद्र सरकार के साथ जमू-कश्मीर के नेताओं की पहली बैठक के कई सकारात्मक संदेश हैं। इस बैठक में शामित आठ दलों के 14 नेताओं में से किसी नेता ने भी सीधे तौर पर धारा 370 पर बात नहीं की। गुपकार अलायंस के एजेंडे में रहे अनुच्छेद 370 की बहाली को लेकर गुपकार नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह जमू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा, एनएसए अजित डोभाल के साथ राष्ट्रीय राजधानी में करीब तीन घंटे की बैठक में सहयोगी पॉचर दिखाए। बैठक के बाद कश्मीरी नेताओं के यान भी तल्ख नहीं थे। ऐसा इसलिए हो सकता है कि अनुच्छेद 370 को खत्म करने का विषय उच्चत्तम न्यायालय में विचाराधीन है। शायद अब कोर्ट में ही कोई फैसला हो।
इस बैठक से एक बात साफ हुई कि जमू कश्मीर में परिसीमन के बाद विधानसभा चुनाव होंगे। परिसीमन का कार्य इस साल के अंत तक पूरा हो जाना चाहिए। परिसीमन में बाद ही दिक्कतों को दूर करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर के सभी राजनीतिक दलों व उनके नेताओं को सहयोग करने को कहा है। उन्हें सहयोग करना चाहिए। इस बैठक से यह भी संदेश निकाला है कि जमू-कश्मीर को जल्द ही राज्य का दर्जा फिर से दे दिया जाएगा। संभवत: विधानसभा चुनाव से पहले ही पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया जाए। जमू-कश्मीर अभी विधानसभा के साथ केंद्र शासित प्रदेश है। 370 हटने के बाद से चुनाव नहीं हुए हैं। पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने से दिल्ली व श्रीनगर की दूरी कम करने में मदद मिलेगी व कश्मीरी नेताओं में विश्वास जगेगा। अभी उनमें केंद्र सरकार के प्रति विश्वास की कमी है। इस तरह के कदमों से जमू-काश्मीर के लोगों का घाव भरने में मदद मिलेगी। केंद्र सरकार 370 की मांग को कमजोर करने के लिए जमू-कश्मीर के लिए 371 जैसे स्पेशल स्टेटस देने पर विचार कर सकती है।
अभी हिमाचल प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड, मिजोरम समेत 11 राज्यों में अलग-अलग प्रावधानों के साथ यह स्टेटस है। इसमें 370 की मांग कमजोर पड़ेगी। कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने मांग की है कि जमीन की गारंटी व रोजगार की सुविधा राज्य के पास रहे। हालांकि ग्लोबल दौर में ऐसी मांग राज्य के विकास के साथ ही बेमानी है। इस बैठक में शामिल कुछेक नेताओं की संपत्ति देश के दूसो भागों व विदेशों में है, इसलिए उनके लिए कश्मीर के लिए मांग करने का कोई औचित्य नहीं है।
इस बैठक में हुर्रियत नेताओं को नहीं बुलाकर सरकार ने कई संदेश दिए हैं। पहला, सरकार ने अलगाववादी व पाक परस्त व स्वतंत्र कश्मीर के विचारों वाली ताकतों को खारिज कर दिया है। पूर्वर्वी कांग्रेस सरकार इस बात को समझ पाई थी कि भारत सरकार के प्रति विरोधी मानसिकता वालों से वार्ता करने का कोई मतलब नहीं है। दूसरा, सरकार कश्मीर को लेकर मूव फारवर्ड की सोच से आगे बढ़ रही है। यह बहुत जरूरी भी है। जमू-कश्मीर को लेकर लकीर का फकीर बने रहने कोई जरूरी नहीं है। भारत में विलय से लेकर अब तक बहुत कुछ बदल चुका है। लेकिन अलगाववादियों व पाकिस्तान की हरकतों में कोई बदलाव नहीं आया है। उन्होंने हमेशा कश्मीर व भारत की राहों में कांटें ही बिछाए हैं। निश्चित रूप से केंद्र सरकार को कश्मीरियत, कश्मीरियों की भावनाओं और जुहूरियत का ख्याल रखना चाहिए। सरकार वार्ता के जरिए उस रास्ते पर बढ़ती दिख रही है। उमीद है, कि लोकतांत्रिक विश्वास के फूल जल्द खिलेंगे।