सावधानी हटी-दुर्घटना घटी

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पिछले 15 महीनों में लॉकडाउन के दौरान मेरे एक करीबी मित्र की दिनचर्या बदल गई और उन्हें यह पसंद आई। उनका दिन सूर्योदय से बिल्कुल पहले शुरू होता था, जब आसमान नारंगी होता है। वे हरे-भरे मैदान में खड़े होकर, नंगे पैर जमीन की नमी महसूस करते थे और ओस की बूंदों से चमकती पत्तियां देखने का आनंद लेते थे। फिर वे आधे घंटे तक ऊंचे पेड़ों के ऊपर से ऊगते सूरज को देखकर घर लौट जाते थे। फिर शाम को सूरज से फिर मुलाकात होने तक, 10 घंटे लैपटॉप पर काम करते थे। पिछले हफ्ते उनके बॉस ने पूछा, ‘ऑफिस कब वापस आओगे?’ अगली सुबह वे मुंबई आए, तीन घंटे के लिए ऑफिस गए, जिसमें पांच मिनट बॉस को यह बताने में खर्च किए कि वे नौकरी छोड़ रहे हैं और बाकी समय सामान समेटने में लगाया। फिर ये बेरोजगार दोस्त मेरे पास आए और जब मैंने पूछा, ‘आगे क्या’ तो बोले, ‘मैं तुहारे पास इसी पर चर्चा करने आया हूं कि मैं क्या कर सकता हूं। लेकिन मुझे यह तनावभरा शहरी माहौल पसंद नहीं, आरामदायक ग्रामीण माहौल पसंद है।

‘ मैं देख सकता था कि उनके चेहरे का आत्मविश्वास कह रहा है, ‘कम पैसे और ज्यादा खुशी के साथ अति उपभोक्तावाद के ढांचे से दूर खुशी-खुशी रहना संभव है।’ हमने लगभग 6 घंटे भविष्य की योजनाओं पर चर्चा की। इनमें से कई खारिज कर दीं और 15 दिन बाद दूसरों के अनुभव जानने के बाद फिर मिलने का फैसला लिया। मैंने उन्हें अगली मुलाकात से पहले दो किताबें पढऩे का सुझाव दिया। 1. मुनाफ कपाडिय़ा की ‘हाऊ आई क्विट गूगल टू सेल समोसा’ 2. वेंकट अय्यर की ‘मूंग ओवर माइक्रोचिप्स’। मुनाफ की किताब गूगल इंडिया में अकाउंट स्ट्रैटिजिस्ट के पद से समोसा मैन बनने तक की उनकी यात्रा बताती है। अगस्त 2015 में मुनाफ ने गूगल में चार साल लंबा कॅरिअर छोड़कर मां के साथ बिजनेस शुरू किया। दो साल बाद उनका फूड टेक स्टार्टअप ‘द बोहरी किचन’, जो अब टीबीके नाम से मशहूर है, चल पड़ा और उन्होंने फोर्स इंडिया की 30 अंडर 30 में सूची में जगह बनाई। वे अलग तरह के सीईओ बने। इसका मतलब है ‘चीफ ईटिंग ऑफिसर’। छह साल में उनका बोहरी खाना, उनके मुंबई स्थित घर से शुरू हुआ स्वादिष्ट मटन समोसा, आज 4 करोड़ रुपए टर्नओवर वाली कंपनी बन गया है।

वेंकट अय्यर आईबीएम में वरिष्ठ पद पर थे। फिर उन्होंने किसान बनने का फैसला लिया और आखिरकार इतने सफल किसान बने कि 2018 में महाराष्ट्र राज्य सरकार ने 11वीं कक्षा की किताब में उनकी सफलता की कहानी शामिल की। शहरी बाजार या लोगों द्वारा ‘जरूरी’ मानी जाने वाली कई चीजों के बिना रहने के मेरे दोस्त के आत्मविश्वास की मैं सराहना करता हूं। यकीन मानिए जिन भौतिक चीजों और उत्पादों से बचा जा सकता है, उन्हें जिंदगी से हटाकर आपको बेहतर नतीजे मिल सकते हैं। वास्तव में इसे ही जीवन की गुणवत्ता कहते हैं। क्या आप अभी ग्रामीण जिंदगी का आनंद ले रहे हैं और ऑफिस लौटने, वैक्सीन न लगवाने वाले सहकर्मियों और वायरस को लेकर चिंतित हैं क्योंकि कर्मचारी धीरे-धीरे ऑफिस लौट रहे हैं? बॉस तो पहले ही ऑफिस लौट चुके हैं। वे आपको ग्रामीण जिंदगी का आनंद नहीं लेने देंगे। अगर आप कुछ और करना चाहते हैं तो उसकी योजना अभी बनाना शुरू कर दें। फंडा यह है कि आप भी नौकरी छोड़कर कुछ बेच सकते हैं, लेकिन बिना सावधानी और उचित विशेषज्ञ की सलाह के साथ सोच-विचार के बिना ऐसा न करें।

एन. रघुरामन
(लेखक मैनेजमेंट गुरु हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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