किताबों से ज्यादा असली दुनिया के अनुभव ज्यादा जरूरी है

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भारत में शिक्षा को लेकर अद्‌भुत रुचि है। कई लोग हर वक्त पढ़ाई के बारे में बातें करते रहते हैं। पैरेंट्स भी बच्चों की पढ़ाई को लेकर चिंतित नजर आते हैं। इस तरह का माहौल हमारे देश में मजबूत नींव बनाने का काम करता है। मुझे लगता है कि एजुकेशन में भी दूसरे क्षेत्रों की तरह विकास होना चाहिए।

भारत में मेरी पढ़ाई का अनुभव कहता है कि यहां ज्यादा वक्त किताबें पढ़ने में बीतता है, अध्ययन को यहां सबसे ऊपर रखा गया है। जब दुनिया में व्यावहारिक काम करने की बात आती है तो यह जरूरी होता है कि आपके पैर जमीन पर रहें और नई चीजें करते रहें, रिस्क लें, लोगों को अपने सपनों के पीछे जाने को प्रोत्साहित करते रहें।

भारतीय एजुकेशन सिस्टम में इस बात का भी भारी दबाव होता है कि आप तयशुदा रास्तों पर ही चलें। जब आप हाई स्कूल में होते हैं तो कॉलेज के बारे में सोचने लगते हैं। मुझे यह देखकर बेहद आश्चर्य होता है कि लोग आईआईटी में पढ़ने आते हैं और तुरंत ही आईआईएम और उसके आगे के बारे में सोचने लग जाते हैं। मुझे लगता है कि असली दुनिया के अनुभव लेना ज्यादा जरूरी है।

हम अमेरिका का ही उदाहरण लें तो स्टैनफोर्ड जैसी जगहों पर भी ज्यादातर छात्र जब तक फाइनल ईयर में नहीं पहुंच जाते, अपना रास्ता नहीं चुनते। यहां लोग दूसरी चीजें चुनते हैं और अपना पूरा वक्त यह ढूंढने में लगाते हैं कि उनको किस चीज का जुनून है। मुझे लगता है कि यह कुछ अच्छी चीजें हैं जिनकी तरफ देखा जाना चाहिए। मैं चाहूंगा कि यहां भी लोग क्रिएटिविटी की कद्र करें। चीजों को करने की अहमियत को समझें। पढ़ाई जरूरी है लेकिन इतनी भी नहीं, जितना इसे बनाया गया है। जिंदगी एक लंबा सफर है। इसे आपको सही गति देना है और जो भी करें उसमें मजा आना बेहद जरूरी है।

आजकल के सिस्टम में जबरदस्त प्रेशर है। आठवीं क्लास से ही बच्चे आईआईटी की तैयारी में लग जाते हैं। यह मेरे लिए शॉकिंग है। मैं उम्मीद करता हूं कि लोग गहराई से इस बात को समझें कि कर-करके सीखना ही सबकुछ है। सफर लंबा है, असफलताएं भी आएंगी जो वाकई कोई मायने नहीं रखतीं। जिंदगी उससे काफी अलग है, जिसकी योजना आप स्कूल में, अपना कॉलेज तय करके बनाते हैं।

अपनी आशाएं जिंदा रखिए, सपने देखते रहिए और उनके पीछे जाइए। जिंदगी में आप क्या हैं या बनेंगे, आपसे ही तय होगा ना कि उससे जो आपसे इतर हो रहा है। मुझे लगता है कि मेरा आईआईटी से होना या ना होना कोई मायने नहीं रखता है क्योंकि मैं अपने आसपास उन बेहतरीन लोगों को देखता हूं जो छोटे शहरों या दूसरे संस्थानों से आए हैं और बढ़िया काम कर रहे हैं।

लीडरशिप के बारे में…

गूगल में हमारे साथ हजारों काबिल लोगों की टीम है। आपको दूसरे मजबूत लीडर्स पर भरोसा करना ही होता है। हर स्तर पर लोगों में विश्वास पैदा करना होता है कि वो सही तरीके से काम कर रहे हैं। बतौर लीडर मेरा यह काम होता है कि ये सभी लोग सफल हों। दरअसल सफलता पर भी इतना जोर नहीं है, यह हर इंसान को अहसास दिलाना है कि आपके साथ काम कर रहे लोग बेहद अच्छे हैं। किसी भी संस्था के लिए यह बेहद अहम है कि वहां लोग मिलकर काम करें।

सुंदर पिचाई
(लेखक गुगल के सीईओ हैं ये उनकी स्पीच का सार है)

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