आज या लिखूं,

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प्यार, संगीत, कि़ताब, खुशी,दुख या निराशा।
या लिख दूंजीवन की नयी कोई आशा।।
मन में है झील सा ठहराव,
ये जड़ता है या संतुष्टि नहीं है पता।
तो क्या इसे कह दूँ संवेदनहीनता।।
शायद सभी भावों का मिश्रण हुआ है एक ख़ास
अनुपात में।
जैसे प्राण वायु बनती है कायनात में।
उस श्वास का नहीं होता है एहसास।
ठीक वैसे ही अभी हूँ मैं शांत।
ना दुख का अनुभव, ना खुशी है कोई।
ना है किसी से अपेक्षा।।
ना माजी से शिकायतए ना जीवन का है पता।।
ये माहौल का है असर, या है कोई
आध्यात्मिकता। मैं भावहीन हो रही हूं, या सभी भावों
से युक्त,जिसमे नहीं है किसी भाव के लिए खाली
जगह। लाऊं कहां से अलफाज क्या लिखूं नहीं है पता,

-पूनम भास्कर पाखी
पीसीएस
डिप्टी कलेक्टर सीतापुर।

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